प्रिंट मीडिया की इस विषय में प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से समझौता नहींं किया..!

बहस की आंधी में व अर्थ का अनर्थ कर बैठते..!!

सोशल मीडिया और कुछ टीवी चैनलों पर चलने वाली बहसें कहीं न कहीं लोगों में असंतोष पैदा करती..!!

कुछ प्रिंट मीडिया की इस विषय में प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से समझौता नहींं किया..!

आजकल सोशल और इलेक्ट्रानिक मीडिया किसी भी मसले पर अपनी समांतर अदालतें चला रहे हैं! जहां कुछ पार्टी प्रवक्ता कुछ धर्मगुरुओं और कुछ विशेषज्ञों को किसी विषय पर बहस के लिए आमंत्रित किया जाता है और बहस का मुद्दा होता है!

सोशल मीडिया और कुछ टीवी चैनलों पर चलने वाली बहसें कहीं न कहीं लोगों में असंतोष पैदा करती है! टीवी चैनलों के एंकर मुद्दे को और ज्वलनशील बनाने का भरसक प्रयास करते हैं!

ताकि प्रवक्ता जोश में कुछ ऐसा बयान दे दें जो आगे चल कर एक नई बहस का मुद्दा बन पाए!

कुछ प्रिंट मीडिया की इस विषय में प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से समझौता नहींं किया है!जबकि इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारियों से दूर होता दिख रहा है!
जरूरत एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की है!

हमारा मानना है कि न्यायालय में विचाराधीन मामलों पर टीवी चैनलों को अपनी अलग से अदालत या बहस नहींं बैठानी चाहिए! हमें कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिए!

कई बार यह बहस इतनी बढ़ जाती है कि बोलने वाले भूल जाते हैं कि व किसी दल या संस्था के आधिकारिक प्रवक्ता हैं और उनके द्वारा कहे गए शब्द एक विशेष स्थान रखते हैं!

बहस की आंधी में व अर्थ का अनर्थ कर बैठते हैं! अगर हम चाहते हैं कि हमारे देश जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में सभी धर्मों के लोग अमन चैन से रह सकें तो टीवी चैनलों पर चलने वाली ऐसी बहसों पर कुछ अंकुश तो जरूर लगना चाहिए।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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