
अगर सरकार ने पुलिस को स्वतंत्रता दी है तो सिर्फ वह स्वतंत्रता वर्दी के लिये ही होनी चाहिये–
मजदूर गरीब की गर्दन को बकरा की गर्दन समझकर—-तो यह बात भी याद रखनी होगी पुलिस को,कि यह मजदूर और गरीब दो जून की रोटी बड़े बड़े घरानों मे मेहनत करके ही परिवार और पेट पाल रहे है और यह सोचकर भी चलना चाहिये कि अभी भी मानवता पूरी तरह से नहीं मरी है जहन मे पुलिस को बैठाकर रखना होगा कि गरीब की हाय से कोई बुरी हाय नहीं होती है यह न्यूज पढने बालों को जरूर हवा मे फायर जैसा लगेगी लेकिन मुझे इतना विस्वास जरूर हैकि जहां पहुंचनी चाहिये वहां अवश्य पहुंचेगी वर्दी की सौगंध खाकर जन सेवा और सुरक्षा का संकल्प लेने बालो सारा न्याय और कानून एक जगह पर ही नहीं सिमटा हुआ है यह कभी भी भूलने की भूल किसी को भी नहीं करनी चाहिये।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।