वीर भूमि बुंदेलखंड, 1857 क्रांति से 15 साल पहले आजाद हो गया था बुंदेलखंड, अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल बुन्देलियों ने फूंका

वीर भूमि बुंदेलखंड, 1857 क्रांति से 15 साल पहले आजाद हो गया था बुंदेलखंड, अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल बुन्देलियों ने फूंका
!!.बुंदेली वीरों ने अंग्रेज अफसरों को बंधक बनाकर और जनता अदालत में दे दी फांसी.!!

देश में इतिहास के पन्ने भले ही गवाह न हो लेकिन वर्ष 1857 की क्रांति के 15 साल पहले बुंदेलखंड आजाद हो गया था लेकिन उस क्रांति को जल्द ही अंग्रेजों ने कुचल दिया था। वह एक जनांदोलन था जो प्रभु श्रीराम की तपोभूमि से गोकशी को लेकर खड़ा हुआ था और उसकी आग पूरे बुंदेलखंड में फैल गई थी लेकिन दुर्भाग्य है कि कोई नेता न होने के कारण आजादी की इस लड़ाई को इतिहास में जगह नहीं मिली।
भले ही इतिहास में बुन्देलियों की इस लड़ाई का जिक्र न हो लेकिन गजेटियर जरूर गवाह है। मंगल पाण्डेय से पहले अंग्रेजों के खिलाफ चित्रकूट में साधू, संत और आमजन खड़ा हो गए थे। यह विद्रोह वर्ष 1857 की प्रथम क्रांति से 15 साल पहले मंदाकिनी तट से शुरू हुआ था। बताते हैं कि यहां पर अंग्रेज गोकशी कराते थे और गौमास बिहार और बंगाल में भेजते थे। धर्मनगरी में गायों की हत्या से आमजन विचलित था पर अंग्रेजों के डर से कोई जुबान खोलने का तैयार नहीं था। आलम यह था कि लोगों की गुहार के बाद भी मराठा शासक ने अंग्रेजों की मुखालफत करने की हिम्मत नहीं जुटाई। बुन्देलियों के अंदर गौकशी के खिलाफ धधक रही आग अभी ठंडी नहीं हुई। उन्होंने गांव गांव जाकर लोगों को जाग्रत करते हुए एकजुट करना शुरू किया। 6 जून 1842 को हजारों निहत्थे क्रांतिकारियों ने मऊ तहसील को घेर लिया और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने पांच अंग्रेज अफसरों को बंधक बना लिया और जनता अदालत लगा उन्हें फांसी दे दी।
जनक्राति की आग यहीं ठंडी नहीं हुई। क्रांतिकारियों ने गोस्वामी तुलसीदास की जन्म स्थली राजापुर से भी अंग्रेजों को खदेड़ दिया। देखते ही देखते आजादी की लड़ाई में मर्का और समगरा के जमींदार भी कूद पड़े। 8 जून को बबेरू (बांदा) का बाजार भी अंग्रेजों से आजाद हो गया। इसके बाद आंदोलनकारियों ने तिंदवारी तहसील में कब्जा कर लिया और सरकारी रिकार्ड जला दिए व तीन हजार रुपये भी लूट लिए। लोगों के तेवर देख अंग्रेज थर्रा गए । उन्होंने इस जनांदोलन की कुचलने के लिए आसपास के राजाओं को आदेश दिया। जिस पर पन्ना, छतरपुर, गौरिहार और अजयगढ़ आदि के नरेश ने अपनी सेना के साथ चित्रकूट को कूंच किया। वहीं बादा छावनी में छुपे अंग्रेज अफसरों ने बादा के नवाब से जान की गुहार लगाई। वैसे तमाम राजाओं के सैनिक भी क्रांतिकारियों के साथ इस आंदोलन में आ गए थे। जिससे 15 जून को हरबोलों ने बादा में अंग्रेज अफसर काकरेल को पकड़ सिर कलम कर दिया और उसके सिर को पूरे शहर में घुमाया, ताकि लोगों में अंग्रेजों का खौफ खत्म हो जाए। काकरेल की हत्या से दो दिन बाद क्रांतिकारियों ने युद्ध परिषद का गठन कर बुंदेलखंड को आजाद घोषित कर दिया था लेकिन उस समय कोई सशक्त नेतृत्व न होने के कारण जल्द ही अंग्रेजों ने इस आंदोलन को खत्म कर दिया था।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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