
बास्तबिक अपराधी अगर अंदर होते तो बाहर आवाम भय मुक्त होती,और लासों से जेवर नहीं उतरते आखिर दोषी कौन है–
दुवारा सरकार बनने के बाद सरकार ने आवाम की भय मुक्ति रिलीज नहीं की–
आज स्वतंत्रता,और सौतेला पन,गरीब असहायों के अधिकार,और प्रशासन को,आवाम की निष्पक्षता से सुरक्षा करने के वहां से निर्देश जारी सायद नही किये है,और अगर किये है तो प्रशासन की जिम्मेदारी मे आते है जिला स्तर की ये सब चीजे जो आजकल अपराधों की भरमार दुवारा शुरू हो गई और सुरक्षा कर्मियों की पौबारह हाँ यह खुलकर कहने मे कोई गुरेज नही होगी कि आजकल भय ब्याप्त माहोल बना हुआ है गरीब आदमी की बात कोई नहीं सुन रहा जिसकी लाठी उसकी भैंस मे——मै सरकार से अनुरोध के साथ कहना चाहती हूँ कि अखबारों मे आपके द्वारा दिये हुये ऐजेंडे पढकर जितना सुकून मिलता है उतनी ही रियलिटी दुखदाई क्यों है,सोरी यातो रूलों की खिल्लियां उड़ाई जा रही है,या सरकार की दिखावे परस्ती लेकिन इस करनी कथनी, को भोगने के बाद हर विद्वान सोचने को बिवस जरूर हो रहा है।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।