माननीयों के चाबुक से प्रेस की स्वतंत्रता पर हो रहा कुठाराघात

माननीयों के चाबुक से प्रेस की स्वतंत्रता पर हो रहा कुठाराघात

इस देश मे माननीय कुछ भी मांगे वह उनका मुंह है कि बेसुरा का ताल

पत्रकारों ने हकीकत लिख दी तो माननीय की इज्जत हो हो जाएगी खराब

कौशाम्बी आजादी के 75 साल बाद भी अभिव्यक्ति की आजादी पर गुंडों माफियाओं और माननीयों का चाबुक लगातार चल रहा है भ्रष्टाचार अपराध में लिप्त लोग सच्चाई स्वीकार नहीं करना चाहते हैं मानहानि और मर्यादा का हवाला देकर सच्चाई लिखने और बोलने पर रोक लगाने का पूरा प्रयास हो रहा है चोर को चोर कहना भ्रष्ट को भ्रष्ट कहने पर भी क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक है हकीकत सुनने और समझने की शक्ति माननीय में खत्म हो गई है केवल उनके अंदर धन की लोलुपता बढ़ती जा रही है माननीय कुछ भी बोलें ढोल नगाड़े की तरह उनका मुँह बोलता है बेसुरा ताल की तरह माननीय मांग करते रहे वह जायज है लेकिन जनता ने यदि कोई न्याय की आवाज उठा दी पत्रकारों ने सच्चाई लिख दी तो उनकी इज्जत खराब हो जाएगी आपके खिलाफ मुकदमा लिखा देंगे आप को जेल भेजने की धमकी देने लगेंगे इतना ही नहीं सच्चाई लिख कर समाज को आईना दिखाने वाले पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया जाता है यही अभिव्यक्ति की आजादी है माननीयों का यह दोहरा चरित्र जनता जान चुकी है बीते दिनों एक माननीय ने खुलकर हत्यारे की सिफारिश शुरू कर दी थी लेकिन वह माननीय है तो उनके सारे गुनाह माफ हैं यहां तक की माननीय ने मांग किया कि 60 साल से ऊपर उम्र पार कर चुके जघन्य अपराध के अपराधियों को जेल से बाइज्जत रिहा कर दिया जाए इसके पीछे भी जघन्य अपराध के अपराधियों को जेल से बाहर कराने की उनकी बड़ी साजिश थी लेकिन उनकी मांग पर विचार नहीं हुआ लेकिन यदि आम जनता इसी बात पर आवाज बुलंद की होती तो उस पर यही माननीय मुकदमा दर्ज कराने की मांग करने लगते आखिर इतना दोहरा चरित्र लाते कहां से हो

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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