खरी – अखरी
अजानबाहु गाँधी और गांधीवादी विचारधारा आज भी जीवित है

आज देश गांधी को उनके 74 वें शहादत दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है । जो गांधी की हत्या में प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर सहभागी थे वे भी और गांधी के हत्यारे को महिमामण्डित करने वाले भी गांधी के विचारों से पराजित होकर गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए विवश हैं । यह सब सत्ता प्राप्ति के दबाव में हैं ।
विंस्टन चर्चिल के अर्द्ध नग्न फकीर और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के राष्ट्रपिता की समाधी पर जब हत्यारे की विचारधारा के अनुयायी जब फूल चढ़ाते हैं तो तय है कि अहिंसा के पुजारी को अकल्पनीय वेदना सहनी पड़ती होगी ।
गाँधी की हत्या होने पर वायसरॉय लॉर्ड माउन्ट बेटन ने कुछ इस तरह कहा था कि कोई कौम इतनी कृतघ्न और खुदगर्ज कैसे हो सकती है जो अपने पितातुल्य मार्गदर्शक की छाती छलनी कर दे । ऐसा तो नृशंस, बर्बर, नरभक्षी क़बीलों में भी नहीं होता और उस पर निर्लज्जता इतनी कि इस कृत्य का अफसोस तक नहीं है ।
“गाँधी के बारे में आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली नस्लें शायद ही यकीन करें कि हाड़मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता – फिरता था” ब्रिटिश हुकूमत अपने काल पर्यन्त तक गांधी की हत्या के कलंक से बची रही । आपकी हत्या, आपके देश, आपके राज्य, आपके लोगों ने की है । यदि इतिहास आपका निष्पक्ष मूल्यांकन कर सका तो वो आपको ईसा और बुद्ध की कोटि में रखेगा ।
यह सही है कि गांधी का कराधरा सब कुछ सही नहीं रहा । गांधी का जिद्दीपन, भगतसिंह की फाँसी के दौरान निकम्मापन, ब्रायलर मुर्गे को बाज की तरह पेश करने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सुभाष को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करना, 1930 में असहयोग आंदोलन वापिस लेना तथा भारत विभाजन की सहमति देने की कीमत देश आज भी भुगत रहा है ।
गाँधी ने हमेशा अपने आदर्शों को आम गरीब हिंदुस्तानियों की मौत से बहुत ऊपर रखा है । कहा जा सकता है कि मुस्लिम तुष्टीकरण की खातिर ही शुद्धानन्द के शुद्धिकरण अभियान को असफल किया गया ।
यह कहना गलत नहीं होगा कि गाँधी की अहिंसा देश पर बहुत भारी पड़ी है । उसी का प्राश्चितिकरण है कि आज देश में गाँधी के हत्यारे के अनुयायी राज कर रहे हैं ।
गाँधी की शहादत की हीरक जयंती के आसपास का सफ़र तय होने को है । इस बीच ऐसा क्या हुआ कि गाँधी के नाम पर राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टी की कुल जमा पूंजी सवाई शताब्दी के बाद भी 588.16 करोड़ रुपये ही है जबकि गोड़से पूजक पार्टी ने मात्र तकरीबन 41 साल में ही 4847.78 करोड़ रुपये की जमा पूंजी बना ली है ।
जो विचार मंथन के लिए कहीं न कहीं कचोटता है कि आने वाले समय में भी भले ही गाँधी के विचार समसामयिक बने रहें मगर देश के भीतर एक वर्ग गोटसेवादियों से प्रभावित होकर गोटसेवादी विचारधारा को फलने फूलने की जमीन तैयार कर रहा है ।
गाँधी को सशरीर बिदा करने वाले गांधीवादी विचारधारा से हर बार पराजित होने के बाद भी जीत की आशा लिए नई ऊर्जा के साथ गांधीवादी विचारधारा को गोटसेवादी विचारधारा से लड़ाने खड़े हो जाते हैं ।