
#फिसलन, उपहास,अभद्रता, क्या यही राजनीति की परिभाषा है—
आज हर पार्टी से नेताओं का पलायन हो रहा है तब जब कार्यकाल पूरा होने को था,पाँच साल तक किसी तरह की कोई आहट नहीं हुई कि पार्टियों के अंदर क्या चल रहा है क्यों कि वह पब्लिक का समय था और अब नेताओं का तब साफ साफ नजर आरहा हैकि अब सत्ताभोगियो मे सिर्फअपने अपने बर्चस्व की चिंता जाग उठी है पब्लिक और धर्म तब कहीं किसी के अंदर नहीं जागा,जैसे ही कार्ड रिनूवल का समय आया सबको अपना अपना भविष्य नजर आने लगा बगावत बेसर्मी की हद पार जा रही है भाषा इतनी अभद्र कि जख्मों को चीर रही है,सरकार किसी की भी बने कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन भविष्य के लिये हिंसक माहौल बनाने मे कोई कमी नहीं हो रही है सरकारे भूल रही हैकि हर कुर्सी का निर्माण, और रिनूवल, पब्लिक के हाथों से ही होता है पब्लिक सौ सुनार एक लुहार की ताकत मे सुमार है अब वह अनपढ भोलीभाली पब्लिक नहीं है जो अपना हित अहित समने मे अक्षम थी अब आप चाहे धर्म का कार्ड -कार्ड खेले या ताकत का जनता जबाब देने और पाँच सालतक आपके अच्छे बुरे कार्यकाल का आपके द्वारा दिया हुआ भोगने को तैयार है,जब कर्म को ब्यापार बनाया जाएगा तो इंसानियत कहां सुरक्षित रह पाएगी जिंदगी रोटी, कपड़ा, और मकान, मे ही नहीं पलती है,इसपर स्वाभिमान का आँचल और कफन जरूरी है,अमर्यादित जुवानी जंग इतना तो आगाज हो चला हैकि समाज को भी अपनी नई उर्जा तैयार करनी होगी जब कुर्सियों का रंगरोगन समाज के खून से तैयार किया जाएगा तब,जब राजा और जनता की राजनीति को सर्मसार करने बाली राजनीति हो रही है सिर्फ अपना अपना हित देखने मे सक्षम पार्टियां न युवा सोच रखती है न महिला सुरक्षा न गरीब दर्द और अधिकारों की पार्दर्शिता वही घिसेपिटे और बंसवाद मौहरों का नवीनीकरण और पढे़ लिखे योग्य इंसानों का उपहास राजनीति मे बर्चस्व कायम किये हुये है कौन क्या कर रहा है कौन कर चुका है पब्लिक को बेवकूफ समझकर सत्ताऔं पर कायम होने की राजनीति है,पता नहीं आयोग के रूल भी क्या हैकि अपराध कुर्सियों तक कायम है और इंसान को स्वतंत्रता तक नशीव नहीं है,जबतक कानून, और आयोग मे रूल परिवर्तन नहीं होगें तबतक पब्लिक के अधिकार और स्वतंत्रता पर इसी तरह के भय के बादल मंडराते रहेगे इंसानियत का मखौल और सोषण होता रहेगा सर्मसार रूल पीड़ित पर पूरी तरह जाग जाते है और अपराध पर आँख बंद ताकत परोसते रहते कानून की फायलों मे एसे केस बेसुमार है जो अपराधी अपराध करके कुर्सियों का सुख भोग रहा होता है और पीड़ित पीढी दर पीढी इंसाफ की दहलीज पर इंतजार मे दम तोड़ता रहता है।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।