बाबा भोड़सनाथ की तपस्थली ।
भूमिकेश्वर धाम कलहरा ।
उपेछा का शिकार हुआ प्राचीन मेला।

प्राथमिक स्कूलों में पहले जबलपुर संभाग के दो प्राचीन मेले पाठ्यक्रम में स्कूली बच्चों को पढाये जाते रहे हैं, एक भेड़ाघाट का मेला,और दूसरा विजयराघवगढ़ के भूमिकेश्वर धाम कलहरा का मेला।
विजयराघवगढ़ छेत्र में प्राचीनकाल से कलहरा का मेला विख्यात रहा है।जो मकर संक्रान्ति पर्व पर 14 जनवरी से 21 जनवरी तक उत्साह के साथ भरता था। किंतु उपेछा का शिकार यह मेला अंततः अतीत की एक याद बनकर रह गया।
विंध्य पर्वत पर तपस्वी शन्त भोंडस नाथ ,की साधना स्थली के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा स्थापित भूमिकेश्वर भगवान श्री शिव की अद्भुद प्रतिमा विराजित है।पौराणिक मान्यता है, कि जब श्री राम लक्छ्मण, सीता समेत चित्रकूट से विंध्याचल पर्वत के तपस्वी मुनियो सन्तो से मिलकर दण्डकारण्य जा रहे थे उसी समय ,उन्होंने विंध्य की तलहटी में बसे कलहरा में भूमिकेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी। या ही मग ह्वै के गए,दण्डकवन श्री राम। तासों पावन देश यह,विंध्याटवी लताम।। भूमिकेश्वर धाम से जुड़ी एक किवदंती यह भी है कि विंध्य पर्वत पर एक तपस्वी शन्त भोंडसनाथ जी तपस्या करते थे,जिनको अनेको शिद्धिया प्राप्त थी।
एक बार वे अपने शिष्य के साथ नर्मदा स्नान करने गए थे।
भोड़सनाथ जी के पास एक चमत्कारी तुम्बी थी जो कि बाबा जी की अवश्यक्ताओ की पूर्ति करती थी,वह उड़कर अज्ञात जगहों से दूध,घी, चावल,आदि कोई भी सामग्री उड़कर ले आती थी। नर्मदा स्नान के समय वह चमत्कारी तुम्मी पानी मे बह गई।उनके शिष्य ने पूंछा की महराज तुम्मी तो पानी मे बह गई,बाबा जी ने कहा वह वापस आ जावेगी। एक वर्ष बाद वही तुम्मी भूमिकेश्वर के जलकुंड में भोंडसनाथ जी के स्नान के समय मकर सक्रांति पर्व पर पुनः वापस आ गई,तभी से यहां विशाल मेले का आयोजन मकर संक्रान्ति पर्व पर आयोजित होता चला आ रहा था। विजयराघवगढ़ छेत्र का धार्मिक आस्था का प्रतीक यह प्राचीन मेला अंततः अधिकारियों जनप्रतिनिधियों की उपेछा के चलते विलुप्त होकर अतीत की कहानी बनकर रह गया। आज तो यह प्राचीन प्राकृतिक जलकुंड भी उपेछा के कारण विलुप्तप्राय हो गया है।
सुरेन्द्र दुबे पत्रकार विजयराघवगढ़ 9893818539