कलम का ब्यापारी करण अगर शुरु हुआ है तो इसकी जिम्मेदार भी सरकारें है—

#यूपीएटा,कलम का ब्यापारी करण अगर शुरु हुआ है तो इसकी जिम्मेदार भी सरकारें है—
क्यों कि भूँख हर इंसानऔर परिवार, मे होती है आजके बदलते परिवेश मे पार्दर्शिता की परवरिश हर किसी के बसकी बात नहीं है और इसकी सुरक्षा भी देश हित की तरह करने की जिम्मेदारी सरकारों की बनती है आजतक सरकारों ने पत्रकारों के लिये क्या किया सरकारें अपना आत्मसात करें कि खाली पेट जानकी जंग कौन लड़ सकता है कोई बताए कि सौ प्रतिशत सत्यता कहां है,शासन, प्रशासन, समाज, रिस्तों, या फिर सबसे बड़े इंसान की तरफ चलें फिर कलमकार ही क्यों हर अधिकार से लावारिस कर दिया गया है,सरकारों को लेखक और पत्रकारिता के लिये एक आवस और आर्थिक सुविधा का ख्याल रखना चाहिये ताकि सत्यता का ब्यापारी करण रोका जाए ये कुकरमुत्तों की तरह उगती पत्रकारों की फसल पर रोक लग सके हमने बहुत लेखक और पत्रकारों का जीवन भूँखसे तढपते देखा है जिन्हें न परिवारों ने समझा न सरकारों ने आखिर क्यों और कबतक, चाटुकारिता पत्रकारिता नही होती है,कलम निष्पक्ष स्तयता उगले वही पत्रकारिता है, सरकारें अपने लक्ष्यपूर्ति के लिये चैनल चुन लेती है यहभी एक अपराध की तरह होता है,कलम के पेटपर लात मारना और उसके अधिकारों को मारना तब कहना क्या गलत होगा कि शासन,और प्रशासन, ने ही कलम को लक्ष्य से भ्रमित किया है।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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