जयपुररैलीमेंकांग्रेसकादिखादम
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महंगाई के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं। कोरोना काल में तो महंगाई ने 70 सालों के रिकार्ड तोड़ दिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई कमी नहीं आई, बल्कि इतना इजाफा हो गया कि देश में पहली बार पेट्रोल-डीजल के दाम सौ के पार चले गए। पिछले महीने उपचुनावों में भाजपा को हार मिली, तो इसका भी एक बड़ा कारण महंगाई को ही माना गया चुनावों में मिली हार के बाद केंद्र सरकार ने करों में थोड़ी कटौती की, ताकि पेट्रोल-डीजल के दाम में थोड़ी गिरावट आए। लेकिन फिर भी जनता को चीजों की बढ़ी कीमतों से राहत नहीं मिली। खाद्य तेल, एलपीजी, फल, सब्जियां, अनाज, दालें, दवाइयां, कपड़े, मोबाइल, बिजली के उपकरण, मोबाइल डेटा सभी कुछ महंगा होता जा रहा है। बेरोजगारी और उद्योग-धंधे चौपट होने की सूरत में जनता इस महंगाई से बेहद परेशान है, लेकिन सरकार अब भी उसे दिवास्वप्न दिखा रही है कि सब कुछ बढ़िया है। हालांकि गरीबी, आर्थिक असमानता, कुपोषण आदि के वैश्विक सूचकांक भारत की बदहाल तस्वीर दिखा रहे हैं। मोदी सरकार इस तस्वीर को भी नहीं देखना चाहती, न उसे ये मंजूर है कि कोई और महंगाई के बारे में जनता का दुख-दर्द बांटे। इसलिए कांग्रेस की 12 तारीख को दिल्ली में प्रस्तावित रैली को मंजूरी नहीं मिली।
कांग्रेस 12 दिसंबर को दिल्ली में ‘महंगाई हटाओ रैलीÓ का बड़े पैमाने पर आयोजन करने वाली थी। कांग्रेस ने इस रैली के आयोजन के लिए अनुमति मांगी थी। काफी मशक्कत के बाद सरकार ने द्वारका में रैली की अनुमति दी थी। मगर जब रैली की तैयारियां ज़ोरो-शोरों पर थीं तो अनुमति खारिज कर दी गई। कांग्रेस का आरोप है कि उपराज्यपाल पर दबाव डालकर मोदी सरकार ने इस रैली को खारिज करवाया। दिल्ली से नामंजूरी के बाद कांग्रेस ने जयपुर में इस रैली का आयोजन किया। जिसमें जुटी भारी भीड़ से कांग्रेस के हौसले और बुलंद हुए होंगे, वहीं भाजपा का सत्ता खोने का डर थोड़ा और बढ़ गया होगा। सोनिया गांधी पिछले काफी दिनों से सार्वजनिक सभाओं से दूर रही हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस वक्त चुनावी क्षेत्रों के दौरे में व्यस्त हैं और अपने तरीके से जनता को साथ लेने में लगे हुए हैं। लेकिन एक अरसे के बाद गांधी परिवार के तीनों सदस्य जयपुर की रैली में एक मंच पर साथ दिखे। राजस्थान के मुख्यमंत्री, पूर्व उपमुख्यमंत्री के अलावा छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्रियों समेत मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तराखंड, प.बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, गोवा आदि तमाम राज्यों के दिग्गज नेता रैली के लिए जयपुर पहुंचे। आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद जैसे जी-23 गुट के नेता भी रैली में मौजूद रहे।
इस रैली से कांग्रेस के दो उद्देश्य पूरे हुए। पहला, महंगाई के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने के लिए सक्रिय विपक्ष की भूमिका कांग्रेस ने निभाई, और दूसरा कांग्रेस ने अपनी ताकत देश को दिखा दी। 2014 में भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का अभियान देश में छेड़ा था और जैसे-जैसे कांग्रेस शासित राज्यों पर भाजपा बहुमत से या गठबंधन से सरकार बनाने लगी, उसने अपने अभियान को सफल बताना शुरु कर दिया। लेकिन अभी काफी समय से कांग्रेस मुक्त अभियान की बात होनी बंद हो गई है, क्योंकि भाजपा भी यह समझ गई है कि भारत में जनतंत्र अभी इतना कमजोर नहीं हुआ है कि केवल एक पार्टी का दबदबा होने दे और अन्य दलों की मौजूदगी के लिए जगह न बचाए। कांग्रेस ने विधानसभाओं और लोकसभा में अपनी कमजोर स्थिति के बावजूद सरकार को मनमानी करने की छूट नहीं दी। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के गलत फैसलों पर समय-समय पर सवाल उठाए हैं, मौके के मुताबिक सलाह दी है और सोशल मीडिया के साथ सड़क पर उतर कर भी लड़ाई लड़ी है। प्रियंका गांधी भी उत्तरप्रदेश में यही कर रही हैं। संसद में भी कांग्रेस अपनी सक्रिय उपस्थिति दिखला रही है। बावजूद इसके मीडिया में प्रायोजित तरीके से यह सवाल उठाए जाते हैं कि कांग्रेस कहीं नजर नहीं आती या विभिन्न समस्याओं पर कांग्रेस से ही सवाल किए जाते हैं कि वो क्या कर रही है। कांग्रेस अभी सत्ता में नहीं है, तो वो नीतियां नहीं बना सकती। लेकिन विपक्ष के नाते जो कुछ वह कर सकती है, उसमें कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी निभा रही है।
जयपुर रैली में भी कांग्रेस ने एक सशक्त विपक्ष की तरह महंगाई, बेरोजगारी, किसान उत्पीड़न और सांप्रदायिक विद्वेष के खिलाफ आवाज उठाई है। दिल्ली में यह रैली होती तो शायद इसका असर और व्यापक होता, लेकिन तब केंद्र सरकार के लिए कठिनाइयां भी बढ़ जातीं। सरकार का विपक्ष से यह डर ही उसकी प्रासंगिकता दर्शाता है।