समस्त संसार में एक परिवार की भावना से ही उन्नति संभव – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
ज्ञानरूपी रोशनी को जन जन तक पहुंचाने का माध्यम बनें : माता सुदीक्षा जी महाराज

कासगंज– मीडिया प्रभारी अनिल चंद्रा ने बताया तीन दिवसीय वर्चुअल रूप मे आयोजित 74 वें निरंकारी संत समागम मे सतगुरु माता सुदिक्षा जी महाराज ने मानवता के नाम संदेश देते हुए कहा वर्तमान समय में संसार में सन्त-महात्माओं की नितांत आवश्यकता है, उनसे शिक्षा प्राप्त करके सभी भक्ति मार्ग पर अग्रसर होकर स्वयं आनंदमयी जीवन जियें एवं जन जन तक ज्ञानरूपी रोशनी पहुंचाने का माध्यम बनें।’’ ये उद्गार सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने 74वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के समापन सत्र में वर्चुअल माध्यम द्वारा विश्वभर के श्रद्धालु भक्तों का आह्वान करते हुए व्यक्त किए। इस तीन दिवसीय समागम का सफलतापूर्वक समापन हुआ जिसका भरपूर आनन्द मिशन की वेबसाईट एवं साधना टी.वी.चैनल के माध्यम से विश्वभर के श्रद्धालु भक्तों एवं प्रभुप्रेमी सज्जनों द्वारा लिया गया। सत्गुरू माता जी ने कहा कि ब्रह्मज्ञान द्वारा भक्ति मार्ग पर चलते हुए ईश्वर पर दृढ़ विश्वास रखकर जीवन आनंदित हो जाता है। जब हम परमात्मा को जीवन का आधार बना लेते हैं और पूर्णतः उसमें समर्पित होकर मन में जब सत्संग, सेवा, सुमिरण की लगन लग जाती है तो यह जीवन वास्तविक रूप में महक उठता है।
‘‘परमात्मा ने यह सृष्टि और मनुष्य का निर्माण केवल प्यार करने के लिए किया है। अतः सभी में ईश्वर का रूप देखते हुए प्रेम से जीवन जियें, यही मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य है।’’
“परमात्मा यदि हमारा अपना है तो इसका रचा हुआ संसार भी हमारा अपना ही है। है परमात्मा सबका आधार है। हर एक में और ब्रह्मांड के कण-कण में इसी का वास है। ऐसा भाव जब हृदय में बस जाता है तब किसी अन्य वस्तु अथवा मनुष्य में फिर कोई फर्क नजर नहीं आता।अतः हम यह कह सकते हैं कि समस्त संसार में परिवार की भावना जीवन में धारण करने से ही उन्नति संभव है।” हम सभी के अंदर इस परमात्मा को देखते हुए एक-दूसरे का सत्कार करें, नर सेवा, नारायण सेवा का भाव रखंे तो यही परम धर्म है। हमें जागृत रहना है और ध्यान रखना है कि इस धरती से जब जायें, तो इसे पहले से बेहतर छोड़कर जायें।
परमात्मा को जानकर उस पर विश्वास करने से आनंद की अवस्था प्राप्त होती है। यदि हम सामाजिक रूप में देखें तो केवल सह-अस्तित्व ही नहीं अपितु शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के भाव से जियें। परमात्मा ने हमें जो प्राकृतिक स्रोत दिये हैं उनका हम सदुपयोग करें।