
मोदी सरकार भी चल पड़ी ‘शाइनिंग इण्डिया’ की राह पर
सावन में अंधे हुए व्यक्ति को हर मौसम में हरा ही हरा दिखता है। यह कहावत केन्द्र की मोदी सरकार पर सोलह आना फिट बैठ रही है। सरकार और भाजपा एक बार फिर शाइनिंग इण्डिया की राह पर चल पड़ी है। उसे अपने किसी भी काम में खोट नहीं नजर आ रही। पिछली बार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार अनेकों अच्छी योजनाएं चलाकर भी सिर्फ सरसों के तेल और प्याज की महंगाई की भेंट चढ़ गई थी। उस समय भी भाजपा सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी की निर्विवाद छवि से ही चुनावी वैतरणी पार कर लेने के मोहजाल में फंस गई थी। भाजपा वही गलती फिर दोहराने जा रही है। तब तो सिर्फ सरसों का तेल और प्याज महंगा हुआ था, आज परिस्थिति उस समय से बहुत ज्यादा खराब हो गई है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, सरसों का तेल आदि की कीमतें तो अपनी सीमाएं लांघकर आसमान छू रही हैं। महंगाई तो हर वस्तु पर है कितनी वस्तुओं के नाम लिखे जाएं। सरकार मेंं बैठे लोग शायद यह भूल गये हैं कि इस देश में गरीबी की दर बहुत ज्यादा है। हर व्यक्ति को सरकार में बैठे मंत्रियों, सांसदों, विधायकों की भांति वेतन, भत्ता, टेलीफोन, यात्रा जैसी हर सुख सुविधा निःशुल्क उपलब्ध नहीं है। आज भी लोग अपने परिवार को दो वक्त की रोटी देने के लिए भारी मेहनत करते देखे जाते हैं। उनके पास हर दिन मजदूरी करने के अलावा कोई चारा नहीं है। बीमारी आदि की स्थिति में काम न कर पाने पर वे कर्जदार हो जाते हैं और रोटियों के लाले पड़ जाते हैं।
यह कटु सत्य है कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है अनेकों जनहितकारी योजनाएं संचालित हुई हैं जिनका लाभ बिना किसी भेदभाव के समाज के हर जाति, धर्म के लोगों को मिल रहा है। लेकिन पिछले आर्थिक सुधारों में नोटबंदी, दो वर्षों से कोरोना के कारण हुई व्यापार बंदी से मजदूर वर्ग ही नहीं मध्यम वर्ग तक आर्थिक रूप से सड़क पर आ गया है। व्यापारी वर्ग को स्टाक सीमा की सरकार से मिली छूट जनता की जानलेवा बन गई है। व्यापारियों के खाद्यान्न, सरसों, दलहन और तिलहन जैसे अनाजांं के असीमित भण्डारण से बाजार में खाद्य तेलों के दामों में भारी बढ़ोत्तरी हुई जिसे केन्द्र के एक मंत्री ने यह कहकर नकारना चाहा, उन्होंने कहा कि ‘पहले सरसों के तेल में 10 प्रतिशत तक अन्य तेलों की मिलावट करने की छूट थी जिसे सरकार ने समाप्त कर दिया है अब व्यापारी मिलावट नहीं कर सकेंगे। इसलिए सरसों के तेल के दामों में वृद्धि हुई है।’ ये बहाने आप कब तक बनायेंगे? मंत्री जी खाद्य तेलों में आज भी मिलावट जारी है। जनता को अपनी लुटती हुई पूंजी दिख रही है। पूंजी की लूट में व्यापारी, अधिकारी, कर्मचारी और पुलिस लगी हुई है। नेता, अधिकारी और पुलिस का गठबंधन मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को मौन बने रहने का कारण बन गया है। प्रशासनिक अधिकारी लूटतंत्र बन गया है।
पिछले दो वर्षों से खाद्य तेलों, डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस की मूल्य वृद्धि रिकार्ड तोड़ रही है। उत्तर प्रदेश में अब विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है सभी पार्टियां अपने चुनाव प्रचार को निकल पड़ी हैं। ऐसे में केन्द्र सरकार ने व्यापारियों के खाद्यान्न रखने की स्टाक सीमा पुनः लागू कर दी है। अब सरसों के तेल की मूल्य वृद्धि रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं, क्या जनता इतनी बेवकूफ है कि वह यह नहीं समझती कि स्टाक सीमा समाप्त करना व्यापारियों को मनमानी करने देना था और फिर स्टाक सीमा लागू करना उस जनता को वोट की खातिर फिर बेवकूफ बनाना है जिसे व्यापारी जी भरकर लूट चुका है? सरकार आज भी सावन में हुए अंधे की गति को जा रही है। उसे आज भी पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और खाद्यान्नों की महंगाई नहीं दिख रही। सरकार द्वारा चलाई गईं अनेकों लाभकारी योजनाएं भी इस महंगाई के कारण चर्चा में नहीं हैं। जहां भी जाओ महंगाई का राग ही सुनने को मिल रहा है। चुनाव प्रचार में विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा जनता को पानी, बिजली फ्री देने की घोषणा ज्यादा चर्चा में सिर्फ इसलिए है कि उत्तर प्रदेश में बिजली की दरें बहुत ज्यादा हैं जिसके कारण बहुत सारे लोग बिजली की चोरी करने को मजबूर हो रहे हैं। हर आदमी पैदायशी बेईमान नहीं होता है। वह बेईमान तब बनता है जब उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होती और महंगी वस्तु के बिना भी उसका काम नहीं चलता। यही स्थिति आज उत्तर प्रदेश के आम आदमी की हो गई है। सरकार जनता की जेब से पैसा निकाल कर अपनी बहुउद्देशीय परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा कर लेना चाहती है ताकि पूर्व की सरकारों की अपेक्षा बहुत ही कम समय में महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सके, लेकिन ज्यादातर जनता की आर्थिक स्थिति इस लायक नहीं है कि वह सरकार के कदम से कदम मिलाकर चल सके। सरकार ने एक साथ ही दो काम कर दिये हैं एक तो जिन वस्तुओं पर जनता को सब्सिडी मिल रही थी वह समाप्त कर दी साथ ही उन वस्तुओं के दामों में भारी बढ़ोत्तरी भी कर दी। सरकार की इस दोहरी मार को जनता नहीं झेल पा रही। सरकार की जनहितकारी योजनाएं भी सरकार की जनहितकारी छवि नहीं बना पा रही हैं। पिछले दो वर्षों में ही हर वस्तु के दामों में दो-तीन गुना मूल्यवृद्धि सरकार की छवि बिगाड़ रही है। अभी कुछ दिनों पूर्व किये गये सर्वेक्षण ने भाजपा को फिर ज्यादा सीटें दे दी हैं। सरकार ! यही सर्वेक्षण आपको और आपके कार्यकर्ता को सावन में अंधे हुए व्यक्ति जैसा अनुभव करने को पहले से और ज्यादा प्रेरित करेगा और आपकी वही स्थिति होने वाली है जो ‘शाइनिंग इण्डिया’ नारे के चलते हुई थी।