
#हास्यप्रद तो तब लगता है जब अनपढ के हाथों मे उसके भाग्य के कागज अंग्रेजी मे होते है।
हिन्दी पखवाड़ा चल रहा है लोग अपने अपने स्तर से विचार या गोष्ठियों के माध्यम से इसका स्वागत कर रहे है,लेकिन मैने हिन्दी के कम होते स्तर पर कुछ अलग विचार रखे है हमारी हिंदी पर पाश्चात्य भाषा का जो जुनून देखने को मिल रहा है वह वतन की भाषा पर बड़ा प्रहार है,जैसे कि हम सभी देख रहे है आजकल कागजी कार्यवाही नाकि हिंदी से होती है बल्कि पूरी अंग्रेजी मे होती है फिर चाहे अदालतों मे हो या स्कूलों पुलिस प्रशासन या किसी भी कागज को आप उठाकर देख लीजिए अभी भी हमारे देश मे शिक्षा का स्तर इतना अच्छा नहीं है जिस तरह इस पाश्चात्य भाषा ने अपना बरचस्व कायम कर लिया है भारत मे सर्मनाक तब लगती है ये नकल जब अनपढ़ आदमी के हाथों मे अंग्रेजी का कागज पकडा़ दिया जाता है और वह अपने अधिकारों को ही नहीं पढ पाता है,सर्मिंदगी का शिकार होता भोलाभाला इंसान दूसरों के आगे जब पढवाने की गुहार लगाता है मेरे कहने का मतलब सीधासाधा कि हिंदी आज अपने वतन मे सर्मिदा है,और हम भारतवासी रूलों के ढिंढोले पीटने मे बडे़ माहिर होते जारहे है हर कागजी कार्यवाही को अंग्रेजी मे करके आखिर ये चलन चला कहां से कि अपराध हो या इंसाफ हर कागज पर अंग्रेजी का कब्जा है।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।