अभी भी कम नहीं हैं जलवायु परिवर्तन के खतरे–ज्ञानेन्द्र रावत

जलवायु परिवर्तन आज भी अनसुलझी पहेली है। यह समस्या आज विकराल रूप धारण कर चुकी है। आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट भी इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि मानव गतिविधियां, पूर्व औद्यौगिक स्तर से वर्तमान में 1.0 डिग्री ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने का प्रमुख कारण रही है। इसके चलते भूमि और महासागरों के औसत तापमान में बढो़तरी होगी। कई क्षेत्रों में भारी वर्षा होगी, भयंकर सूखे के हालात पैदा होंगे, समुद्री जलस्तर बढे़गा, इसमें तटीय समुद्री द्वीप व निचले तटीय देश सर्वाधिक प्रभावित होंगे। और डेल्टाई क्षेत्र डूबने के कगार पर पहुंच जायेंगे। यह विचार पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत ने आज होली मुहल्ला स्थित अपने आवास पर बातचीत के दौरान व्यक्त किये।
उनके अनुसार असली समस्या तो यह है कि हम अपने सामने के खतरे को अभी भी जानबूझ कर नजर अंदाज करते जा रहे हैं जबकि हम भलीभांति जानते हैं कि इसका दुष्परिणाम क्या होगा? यह भी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मौसम के रौद्र रूप ने पूरी दुनिया को तबाही के कगार पर ला खडा़ किया है। तकरीबन डेढ़ लाख से ज्यादा लोग दुनिया में समय से पहले बाढ़, तूफान और प्रदूषण के चलते मौत के मुंह में चले जाते हैं। बीमारियों से होने वाली मौतों का आंकडा़ भी हर साल ढाई लाख से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। कारण जलवायु परिवर्तन से मनुष्य को उसके अनुरूप ढालने की क्षमता को हम काफी पीछे छोड़ चुके हैं। महासागरों का तापमान उच्चतम स्तर पर है। 150 साल पहले की तुलना में समुद्र अब एक चौथाई अम्लीय है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी जिस पर अरबों लोग निर्भर हैं, पर भीषण खतरा पैदा हो गया है। दर असल इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सरकारों का इस ओर किसी किस्म का सोच ही नहीं है। वह विकास को पर्यावरण का आधार बनाना ही नहीं चाहतीं। वर्तमान में यह दुर्दशा प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणति है। निष्कर्ष यह कि जब तक जल, जंगल और जमीन के अति दोहन पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक जलवायु परिवर्तन से उपजी चुनौतियां बढ़ती ही चली जायेंगी और उस दशा में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष अधूरा ही रहेगा।