हमने तो कब से ,छोड़ दी गुफ्तगू उसकी,
न जाने कैसे ,सपनों में चला आता है ,
कुरेद कर मेरे ,इन सूखे जख्मों को,
फिर से, हरा कर जाता है…………
अब कैसे छुटकारा पाएं, उसके नाम से,
कहीं नासूर ना बन जाए, यह घाव मेरे….. प्यार का सफर.

आज निकली हूं सफर पर ,लेकर संग यादों को ,
मेरे जीवन के अनोखे और, शानदार लम्हों को……
मेरी यादों के किस्से ,अनोखे और बेमिसाल है,
कुछ शरारत और ,प्यार इसमें भरा बेहिसाब है…..
जिस भी शहर से गुजरी, देख मुझे वह मुस्कुराया,
जैसे दे संदेश उसने ,आज मुझे अपने शहर बुलाया..
हर शहर मेरी जिंदगी का ,एक अनमोल हिस्सा है,
उससे,जुडा कुछ मेरी यादों का, प्यारा किस्सा है…..
किसी शहर ने दी मुझे , खुशियां और हसरतें हजार ,
और किसी ने ठुकरा दिया ,मेरे प्यार को बीच बाजार……
किसी शहर ने दी मुझे ,मेरे गम और खुशी में पनाह ,
किसी ने दी सजा मुझे उसकी, जो नहीं किया गुनाह…..
हम भी इतने बेशर्म हो गए, हंसते हुए सब सह गए,
हर शहर का सितम था न्यारा, गम का प्याला पी गए…..
हर शहर की एक खासियत ,दिल में घर कर गई ,
इन्हीं अच्छे और बुरे किस्सों की, गठरी बन गई……
अब जाती हूं जहां भी, यह संग रहती है हमेशा मेरे,
क्योंकि यह हरदम ,याद दिलाती है किस्से मेरे……
इन सब शहरों में एक शहर, ऐसा अनोखा मिला,
उस शहर में मुझे प्यारा ,मेरा एक रांझा मिला……
अब तो यही शहर मेरे लिए, मक्का और मदीना है,
क्योंकि यही हमने खाई कसम ,संग जीना और मरना है…… उषा राय (स्वरचित).....???????? मौलिक रचना..........????????