
अंग्रेजी के प्रोफेसर आत्मप्रकाश शुक्ल की रग-रग में बसी थी हिंदी
एटा। साहित्यकार आत्मप्रकाश शुक्ल ने हिंदी के क्षेत्र में छंद-व्यंग्य के माध्यम से अद्भुत प्रभाव पैदा किया और गीतों को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रग-रग में हिंदी बसती थी। वैसे तो वह अंग्रेजी के प्रोफेसर थे, लेकिन उन्होंने देश-विदेश तक अपनी कविताओं और गीतों के जरिये हिंदी के प्रचार प्रसार मे योगदान दिया।
आत्मप्रकाश शुक्ल अलीगंज स्थित डीएवी इंटर कॉलेज में चार दशक तक अंग्रेजी के प्रवक्ता और प्रधानाचार्य रहे। उनका जन्म वर्ष 1939 में फर्रुखाबाद में हुआ। अलीगंज में रह रहे उनके छोटे भाई विजेंद्र शुक्ल ने बताया कि आत्मप्रकाश शुक्ल की शुरू से हिंदी साहित्य में रुचि रही और छात्र जीवन से कविता की धुन सवार हो गई। 1952 में अलीगंज तहसील के जहान नगर गांव के एक किसान परिवार में शादी होने के बाद वह अलीगंज में ही रहने लगे। कस्बा के मोहल्ला छेदालाल गौड में घर बनाया।
1962 में कस्बे के डीएवी इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता के रूप में नौकरी मिली। इससे पहले से ही वह कवि सम्मेलनों में सहभागिता करने लगे थे। 1990 में विद्यालय प्रधानाचार्य बने। इस दौरान उनकी लेखनी और विचार कविताओं को जन्म देते रहे। 1962 में आत्मप्रकाश शुक्ल को लाल किले पर काव्य पाठ का आमंत्रण मिला। यहां उन्होंने चीन के खिलाफ काव्य प्रस्तुति देकर सभी को झकझोर दिया। इसके बाद तो उन्होंने देश-विदेश में कई काव्य पाठ किए। वर्ष 1997 में सेवानिवृत्त होने के बाद वह कानपुर रहने लगे। हालांकि वह अक्सर अलीगंज आते थे और एटा की नुमाइश में होने वाले कवि सम्मेलनों की भी शोभा बढ़ाते थे। जुलाई 2017 में उनका निधन हो गया।