फतेहपुर/यूपी– पराली जलाने के भयंकर नुकसान,पराली के उपयोग से हो सकता है खेतो का कायाकल्प

पराली जलाने से खेतों की उपजाऊ शक्ति लगातार कम हो रही है
पराली जलाने से मित्र कीटों के नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है जिससे फसलों में विभिन्न प्रकार की नई नई बीमारी उत्पन्न हो रही है
पराली से हो सकता है कायाकल्प
फसल अवशेषों(पराली)को खेत में पुनः जोतकर मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाया जा सकता है। जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ सकती है।
फसल अवशेषों को एकत्रित कर ईंधन, कम्पोस्ट, पशु आहार, घर की छत और मशरूम उत्पादन आदि कार्यों में उपयोग किया जा सकता है।
इन अवशेषों से जैविक ईंधन/बायोगैस भी तैयार कर सकते हैं।
इन फसल अवशेषों(पराली) को सूक्ष्म जीवाणुओं के द्वारा सड़ाने का एक सरल उपाय है, जिससे उपजाऊ कम्पोस्ट तैयार कर मृदा की भौतिक संरचना एवं उर्वरता दोनों को बढ़ाया जा सकता है।
स्वच्छ वातावरण हेतु पराली जलाना चिंताजनक
पराली जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण वातावरण की निचली सतह पर एकत्रित होता है, जिसका सीधा प्रभाव आबादी पर होता है।इस प्रकार का प्रदूषण दूरगामी इलाकों एवं विस्तृत क्षेत्रों में हवा द्वारा फैलता है, जिसका नियंत्रण हमारे वश में नहीं है।
इस प्रकार का प्रदूषण ग्रीनहाऊस गैस उत्पादन कर वैश्विक मौसम परिवर्तन का कारण बनता है। फसल अवशेष जलाने से वातावरण में खतरनाक रसायन घुल जाता है, जो एक कैंसरकारी प्रदूषक है।
किसानों के पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता लगातार घट रही है| इस कारण भूमि में 80 प्रतिशत तक नाईट्रोजन, सल्फर तथा 20 प्रतिशत तक अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है| मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे फसलों में विभिन्न प्रकार की नई बिमारियां उत्पन्न हो रही हैं| मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जल धारण क्षमता में कमी आ रही है|
एक टन धान की पराली जलाने से 5.5 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फॉस्फोरस और 1.2 किलो ग्राम सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं|
फसल अवशेषों को जलाने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न होती है–
थायराइड हार्मोन स्तर में परिवर्तन होता है।
गर्भ अवस्था के दौरान बच्चे के दिमागी स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
इस प्रदूषण से पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का स्तर घटता है।स्त्रियों में प्रजनन संबंधी रोग बढ़ जाते हैं।रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है।