बदलता वैश्विक परिदृश्य और भारत की नई भूमिका

बदलता वैश्विक परिदृश्य और भारत की नई भूमिका

  1. विश्व व्यवस्था की अस्थिरता – रियलिज़्म का परिप्रेक्ष्य

रियलिस्ट दृष्टिकोण यह मानता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति शक्ति-संतुलन (Balance of Power) पर आधारित होती है। इतिहास बताता है कि कोई भी वर्ल्ड ऑर्डर स्थायी नहीं होता। अरब साम्राज्य का उदय, स्पेन–पुर्तगाल की औपनिवेशिक ताक़त, ब्रिटेन का साम्राज्य और अंततः अमेरिका का वैश्विक प्रभुत्व – सभी शक्ति-संतुलन के बदलते पैमानों का परिणाम थे।
आज अमेरिका का वर्चस्व ट्रंप की नीतियों और आंतरिक ध्रुवीकरण से क्षीण हो रहा है। रियलिस्ट सिद्धान्त कहता है कि जब कोई महाशक्ति कमजोर पड़ती है, तो उभरती शक्तियाँ (Emerging Powers) शून्य को भरने की कोशिश करती हैं। भारत, चीन और यूरोशियन ब्लॉक इस बदलती स्थिति का हिस्सा हैं।

  1. लिबरलिज़्म और वैश्विक संस्थाएँ

लिबरल थ्योरी मानती है कि वैश्विक शांति और स्थिरता का आधार व्यापार, संस्थाएँ और आपसी निर्भरता हैं।

  • भारत-यूरेशियाई आर्थिक संघ मुक्त व्यापार समझौता इसी दिशा में एक कदम है।
  • ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ होने वाले समझौते भी इस सिद्धान्त को पुष्ट करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक नेटवर्क भारत को महाशक्ति बनने की राह दिखा सकते हैं।
  • यदि आर्थिक परस्परता बढ़ती है तो संघर्ष की संभावना घटती है – यही “Commercial Peace” का सिद्धान्त है।
  1. मल्टीपोलरिटी और शक्ति का पुनर्वितरण

विश्व राजनीति अब स्पष्ट रूप से Multipolar World की ओर बढ़ रही है। अमेरिका का “Unipolar Moment” समाप्त हो चुका है।

  • चीन का आर्थिक और सैन्य उदय इसे दूसरी ध्रुवीय शक्ति बना चुका है।
  • रूस, यूरोशियन ब्लॉक और क्षेत्रीय गठबंधन इस ध्रुवीयता को और विविध बना रहे हैं।
  • भारत एक “Swing State” की स्थिति में है – जो न पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है, न ही चीन के पाले में। यह भूमिका उसे वैश्विक संतुलन का निर्णायक घटक बना सकती है।
  1. कन्स्ट्रक्टिविज़्म और भारत–चीन सम्बन्ध

कन्स्ट्रक्टिविस्ट दृष्टिकोण बताता है कि राज्य केवल शक्ति और संस्थाओं से नहीं, बल्कि विचारधारा, पहचान और परस्पर धारणाओं से भी संचालित होते हैं।
भारत-चीन सम्बन्ध में यह दृष्टिकोण अहम है। सीमावर्ती तनाव और राष्ट्रीय गौरव के बावजूद यदि दोनों देश आर्थिक सहयोग बढ़ाते हैं, तो यह “Identity Shift” ला सकता है। चीन ने चुपचाप आर्थिक शक्ति अर्जित करने के बाद ही शक्ति प्रदर्शन किया। भारत के लिए यह सबक है कि घरेलू सुदृढ़ीकरण (Domestic Consolidation) और आत्मनिर्भरता ही दीर्घकालिक सुरक्षा दे सकती है।

  1. भारत के लिए नीति-संदेश
  • रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): भारत को अमेरिका, चीन और रूस–यूरेशियन ब्लॉक के बीच संतुलन साधना होगा।
  • आर्थिक विविधीकरण: निर्यात-आयात के नए रास्ते खोलकर निर्भरता कम करनी होगी।
  • टेक्नोलॉजिकल आत्मनिर्भरता: दवाओं के एपीआई से लेकर रेयर अर्थ मिनरल्स तक, भारत को दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी।
  • संयमित राष्ट्रवाद: भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से बचकर, व्यवहारिक कूटनीति अपनाना ही बुद्धिमानी होगी।

रियलिज़्म बताता है कि शक्ति संतुलन बदल रहा है। लिबरलिज़्म कहता है कि संस्थाओं और व्यापारिक नेटवर्क में भारत को अवसर मिल रहा है। कन्स्ट्रक्टिविज़्म समझाता है कि धारणाओं और पहचान के स्तर पर भी भारत को नई भूमिका गढ़नी है। और मल्टीपोलरिटी इस बात की पुष्टि करती है कि भविष्य का विश्व एकध्रुवीय नहीं होगा।
भारत के लिए यही समय है कि वह भावनात्मक टकराव से ऊपर उठकर व्यावहारिक, बहुध्रुवीय और आत्मनिर्भर नीति अपनाए। यही उसे आने वाले दशकों में विश्व व्यवस्था का निर्णायक खिलाड़ी बनाएगा।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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