
भारतीय दंड संहिता की धारा 186 में ‘बाधा’ केवल शारीरिक बल प्रयोग तक सीमित नहीं है; इसका अर्थ है लोक सेवक के कर्तव्य निर्वहन में कोई बाधा डालना: सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली (मनोज आहूजा ) सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (20 अगस्त) को स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 186 के तहत दोषसिद्धि के लिए हिंसा या शारीरिक बल प्रयोग की आवश्यकता नहीं है।न्यायालय ने कहा कि किसी लोक सेवक के वैध कर्तव्य में बाधा,धमकी,भय या जानबूझकर असहयोग के माध्यम से भी डाली जा सकती है,बशर्ते कि इससे कर्तव्य निर्वहन में कठिनाई हो।
न्यायालय ने कहा, “हम मानते हैं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 186 में प्रयुक्त ‘बाधा’ शब्द केवल शारीरिक बाधा डालने तक ही सीमित नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि यह आपराधिक बल का प्रयोग हो।यह आवश्यक नहीं है कि यह कृत्य हिंसक हो।यदि शिकायत की गई कार्रवाई किसी लोक सेवक को उसके वैध कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालती है,तो यह पर्याप्त है।लोक सेवक को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में गैरकानूनी रूप से बाधा पहुँचाने का कोई भी कार्य भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त होगा।इसकी कोई भी अन्य व्याख्या लोगों को कानून अपने हाथ में लेने के लिए प्रोत्साहित करेगी,अपराधों की जाँच को विफल करेगी और लोक न्याय को विफल करेगी।ऐसी व्याख्या न्यायालयों द्वारा स्वीकार नहीं की जा सकती।”
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उस मामले की सुनवाई की जिसमें प्रतिवादी संख्या 2,जो अदालत का एक कर्मचारी होने के नाते एक प्रोसेस सर्वर है,समन और वारंट तामील कराने के लिए दिल्ली के एक पुलिस थाने गया था।उसने आरोप लगाया कि थाना प्रभारी (एसएचओ) देवेंद्र कुमार (यहाँ याचिकाकर्ता) ने न केवल दस्तावेज़ों को ठीक से स्वीकार करने से इनकार कर दिया,बल्कि उसके साथ गाली-गलौज भी की,उसे सज़ा के तौर पर हाथ ऊपर करके खड़े रहने के लिए मजबूर किया और उसे घंटों तक हिरासत में रखा, जिससे वह अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर सका।
जिला न्यायाधीश के समक्ष दर्ज एक शिकायत के आधार पर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के उच्च न्यायालय के फैसले से व्यथित होकर,एसएचओ ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।उच्च न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए,न्यायमूर्ति पारदीवाला द्वारा लिखित निर्णय में स्पष्ट किया गया कि “आईपीसी की धारा 186 में ‘बाधा’ शब्द केवल शारीरिक बाधा तक ही सीमित नहीं है।लोक सेवक को अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकने के लिए हिंसा की धमकी देना आसानी से लोक सेवक के कार्य में बाधा डालने के समान हो सकता है।”
अदालत ने आगे कहा, “हम याचिकाकर्ता और अन्य के विरुद्ध शिकायत में किए गए कथनों पर पहले ही गौर कर चुके हैं।हमारी सुविचारित राय में,उनके कृत्य प्रथम दृष्टया लोक सेवक को उनके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में बाधा डालने के समान हैं।
अतःहमारी सुविचारित राय में, शिकायत स्वयं किसी भी कानूनी दोष से ग्रस्त नहीं है।”
निर्णय से यह भी स्पष्ट है कि धारा 172-188 IPC से जुड़े अपराधों को धारा 195 CrPC को दरकिनार करने के लिए विभाजित नहीं किया जा सकता।प्रतिबंध: सर्वोच्च न्यायालय ने सिद्धांत निर्धारित किए
वाद शीर्षक: देवेंद्र कुमार बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) एवं अन्य।
संकलनकर्ता-मनोज आहूजा एडवोकेट,अध्यक्ष बार एसोसिएशन केकड़ी। मोबाइल नंबर 9413300227