
वाराणसी। आध्यात्मिक नगरी काशी का अस्सी घाट, जहां शाम की गंगा आरती सदियों से भक्ति और संस्कृति का प्रतीक रही है, अब कारोबारियों की पकड़ में आ चुकी है। श्रद्धालुओं से कुर्सी पर बैठाने के लिए 500 से 1000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं।
गंगा के किनारे ‘कुर्सी मार्केट’
पता चला कि बाढ़ के समय घाट पर करीब 50 कुर्सियां लगाई जाती हैं, लेकिन सामान्य दिनों में इनकी संख्या कई गुना बढ़ा दी जाती है। कुर्सियों पर बैठने वालों को आरती का नज़दीकी नज़ारा दिखाने का लालच दिया जाता है। पैसे देने से इनकार करने वाले श्रद्धालुओं को या तो खड़ा रहने पर मजबूर किया जाता है, या भीड़ में पीछे धकेल दिया जाता है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, इस कथित धंधे के पीछे कमेटी के लोग है वसूली का काम संभालने वाले पुजारी विकास पांडे हैं। ये लोग मिलकर गंगा आरती को एक तरह का ‘टिकट शो’ बना चुके हैं।
श्रद्धालुओं की नाराज़गी, पर डर का माहौल
एक श्रद्धालु ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“हमने सोचा गंगा आरती सबके लिए खुली होगी, लेकिन यहां तो पैसे का रेट लिस्ट है। विरोध करो तो जगह से हटा देते हैं।
काशी का पवित्र अनुभव बिज़नेस में बदल चुका है। यहां आध्यात्मिकता से ज्यादा टिकट की अहमियत है।”
यह भी सामने आया कि शिकायतें कई बार की गईं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सूत्र बताते हैं कि इस पूरे खेल को प्रभावशाली लोगों की शह प्राप्त है, जिसकी वजह से घाट पर ‘आस्था टैक्स’ खुलेआम वसूला जा रहा है।
गंगा आरती का मकसद श्रद्धा और सेवा रहा है, लेकिन अब यह सवाल गूंज रहा है—
“क्या हम अपनी परंपरा को बोली पर चढ़ा चुके हैं?”
यदि यह क्रम जारी रहा, तो आने वाले समय में गंगा आरती भी VIP, गोल्डन, प्लेटिनम पास और फर्स्ट-क्लास सीटों में बंट जाएगी।