प्रीमियम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खोला जाएगा बासमती निर्यात केंद्र

अरविंद कुमार ब्यूरो चीफ पीलीभीत

प्रीमियम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खोला जाएगा बासमती निर्यात केंद्र

पीलीभीत के किसान कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के सहयोग से अपने उच्च गुणवत्ता वाले बासमती चावल को 100 से अधिक देशों में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। निर्यात को बढ़ावा देने और स्थानीय उत्पादन में सुधार के लिए, APEDA मेरठ में 10 करोड़ रुपये की परियोजना के बाद पीलीभीत में उत्तर प्रदेश का दूसरा बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (BEDF) स्थापित कर रहा है। यह कदम केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद के प्रयासों के बाद उठाया गया है, जो पीलीभीत के सांसद भी हैं। एपीडा ने अब बीईडीएफ के लिए टांडा बिजेसी गांव में सरकारी कृषि फार्म में 7 एकड़ जमीन को मंजूरी दे दी है।

बीईडीएफ के संयुक्त निदेशक डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि भारत यूरोप, अमेरिका और मध्य पूर्व सहित 100 से अधिक देशों को बासमती चावल का निर्यात करता है और भारत की कृषि विदेशी मुद्रा आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बासमती निर्यात से आता है, जिसमें पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा योगदान है।
पीलीभीत में प्रस्तावित बीईडीएफ में एक अनुसंधान, प्रदर्शन और प्रशिक्षण केंद्र, एक उच्च गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन इकाई, तथा बासमती डीएनए, कीटनाशक अवशेषों और भारी धातुओं के परीक्षण के लिए एक विश्व स्तरीय एनएबीएल-मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला शामिल होगी। जो वैश्विक निर्यात मानकों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं।

डॉ. रितेश शर्मा ने यह भी बताया की बीईडीएफ का उद्देश्य पीलीभीत में उच्च गुणवत्ता वाली बासमती की खेती को बढ़ावा देना, किसानों को उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण देऔर विशेष रूप से निर्यात के लिए विपणन सहायता प्रदान करना है। किसानों को न्यूक्लियस बासमती बीज के उत्पादन के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा।
उन्होंने कहा, धान प्रसंस्करण और बीज उत्पादन से जुड़े उद्यमियों और निर्यातकों को भी वैज्ञानिक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह कार्यक्रम निशुल्क होगा और इससे अन्य राज्यों के किसान भी लाभान्वित होंगे।

यूपी के शीर्ष मोटे धान उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, पीलीभीत बासमती की खेती में पिछड़ा हुआ है, क्योंकि विपणन सहायता की कमी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ढांचे के तहत सरकारी खरीद योजना की अनुपस्थिति के कारण कई किसान बासमती की खेती करने से हतोत्साहित हैं। जिला कृषि रिकॉर्ड बताते हैं कि धान की खेती सालाना 1.45 से 1.47 लाख हेक्टेयर में की जाती है, लेकिन बासमती की खेती सिर्फ़ 7,000-8,000 हेक्टेयर तक ही सीमित है। मोटे धान के लिए 60-65 क्विंटल की तुलना में बासमती की पैदावार 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, लेकिन इसका बाजार मूल्य इसकी भरपाई कर देता है।

बेला पोखरा के दोनों किस्मों की खेती करने वाले किसान मंजीत सिंह संधू ने कहा, 2024-25 में यूपी सरकार ने मोटे धान की खरीद 2,300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की, लेकिन बासमती की कीमत 5,500 रुपये तक पहुंच गई, जिससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 90,000 रुपये का अतिरिक्त लाभ होने की संभावना है।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्लांट फिजियोलॉजिस्ट डॉ.शैलेन्द्र सिंह ढाका ने कहा, तराई क्षेत्र का रात्रिकालीन तापमान 20-24 डिग्री सेल्सियस और उच्च मानसून आर्द्रता पीलीभीत को बासमती की वनस्पति वृद्धि के लिए आदर्श बनाती है। सीमांत बासमती उत्पादकों को सहायता प्रदान करने के लिए राज्य की निर्यात संवर्धन नीति के अंतर्गत किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्थापित किए जाएंगे, जो स्थानीय किसानों को सीधे निर्यातक समूहों से जोड़ेंगे।

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