यह हादसा एक ‘इंडिविजुअल फेल्योर’ नहीं, सिस्टम फेल्योर है

अहमदाबाद क्रैश: एक दुर्घटना नहीं, वैश्विक चेतावनी 12 जून 2025, अहमदाबाद

भारत के आकाश में बुधवार की दोपहर जो कुछ घटित हुआ, वह सिर्फ एक विमान हादसा नहीं था—बल्कि यह वैश्विक उड्डयन प्रणाली की कमजोरियों पर करारा तमाचा है। अहमदाबाद से उड़ान भरने के महज कुछ ही सेकंड बाद एयर इंडिया की बोइंग 787 ड्रीमलाइनर फ्लाइट संख्या AI-229, लगभग 625 फीट की ऊँचाई पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। विमान में 242 यात्री सवार थे। प्रारंभिक जांच में सामने आए तथ्य केवल चिंता नहीं, बल्कि गहरी आशंका पैदा कर रहे हैं।

तकनीकी गड़बड़ी या जानबूझकर की गई साज़िश?

प्रारंभिक रिपोर्ट्स के अनुसार, हादसे से ठीक पहले विमान के दोनों इंजन एक साथ बंद हो गए—एक ऐसी स्थिति जो सामान्यतः किसी यांत्रिक खराबी या पक्षी टकराव से उत्पन्न नहीं होती। उड़ान भरने के 30-40 सेकंड के भीतर यह फेल्योर हुआ, जिससे यह संदेह गहराता है कि ईंधन आपूर्ति प्रणाली में जानबूझकर हस्तक्षेप किया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार यह फ्यूल सप्लाई वॉल्व के मैनुअल शटडाउन जैसा प्रतीत होता है—ऐसा कार्य केवल ग्राउंड टेक्निकल स्टाफ कर सकता है, न कि पायलट।

यदि यह मान लिया जाए कि वॉल्व जानबूझकर बंद किया गया था, तो यह दुर्घटना एक महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित तोड़फोड़ है। इसका सीधा अर्थ है कि दुनिया की सबसे आधुनिक उड़ान प्रणालियों में भी घातक मानवीय चूक या षड्यंत्र संभव है।

Boeing पर उठते गंभीर सवाल

यह हादसा ऐसे समय हुआ है जब Boeing पहले से ही जांच के घेरे में है। इसके 787 ड्रीमलाइनर और 777 जैसे प्रमुख मॉडल बीते वर्षों में कई बार विवादों और तकनीकी शिकायतों के केंद्र में रहे हैं।
व्हिसिलब्लोअर इंजीनियर सैम सालेहपुर और दिवंगत जॉन बार्नेट ने Boeing पर घटिया गुणवत्ता, अधूरी टेस्टिंग और सुरक्षा मानकों की अनदेखी जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। जॉन बार्नेट की रहस्यमयी मृत्यु और कंपनी द्वारा उन पर मानसिक दबाव बनाने की घटनाएं Boeing की आंतरिक पारदर्शिता और ईमानदारी पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करती हैं।

सवाल यह है कि क्या ऐसे आरोपों के बावजूद, Boeing को सुरक्षित मान लेना एक वैश्विक भ्रम नहीं बन चुका है?

मीडिया की भूमिका: संवेदनशीलता बनाम सनसनी
इस हादसे के बाद जब कुछ टीवी चैनलों ने उन यात्रियों का इंटरव्यू प्रसारित किया जो किसी कारणवश फ्लाइट मिस कर गए थे, और उनसे यह पूछा कि “आपको ऐसा करने की प्रेरणा कहां से मिली?”—तो यह न केवल असंवेदनशील था, बल्कि उन 200 से अधिक परिवारों के दुःख का उपहास भी था। टीआरपी की अंधी दौड़ में ऐसी पत्रकारिता ना केवल अपमानजनक है, बल्कि एक मानवीय त्रासदी का बाज़ारीकरण भी है।
तीन वैश्विक मांगें जो अब अनिवार्य हैं
संयुक्त अंतरराष्ट्रीय जांच – DGCA (भारत), NTSB (अमेरिका) और EASA (यूरोप) को मिलकर इस हादसे की निष्पक्ष और गहन जांच करनी चाहिए, जिससे किसी एक देश की राजनीति या दबाव इसकी पारदर्शिता को प्रभावित न कर सके।
Boeing की सुरक्षा और निर्माण प्रक्रियाओं की ऑडिट – विशेष रूप से 787 और 777 मॉडलों की तकनीकी और सुरक्षा प्रणालियों की एक नई, स्वतंत्र मूल्यांकन प्रक्रिया आरंभ होनी चाहिए।
वैश्विक सुरक्षा प्रोटोकॉल में संशोधन – ग्राउंड स्टाफ की भूमिका, ईंधन प्रणाली की निगरानी और प्री-फ्लाइट सुरक्षा परीक्षणों को पुनः परिभाषित किया जाना चाहिए।

यह हादसा एक ‘इंडिविजुअल फेल्योर’ नहीं, सिस्टम फेल्योर है

इस हादसे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एक भी छेद, चाहे वह तकनीकी हो या प्रशासनिक, हज़ारों ज़िंदगियाँ लील सकता है। अहमदाबाद में जो हुआ, वह अगली बार किसी अन्य देश के आसमान में भी दोहराया जा सकता है—अगर दुनिया ने अब भी इसे केवल एक “दुर्घटना” मानकर टाल दिया।यह समय है जब मानवता को चेतना चाहिए—यह केवल एक विमान नहीं गिरा, बल्कि पूरी हवाई सुरक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता को धराशायी कर गया।यह नारा अब केवल चेतावनी नहीं, आवश्यकता है: “फ्लाइट से पहले जांच सिर्फ सामान की नहीं, सिस्टम की भी होनी चाहिए।”

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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