छोटे अखबारों पर संकट: केंद्र सरकार की नीतियों से प्रेस की स्वतंत्रता पर मंडरा रहा खतरा


कानपुर, 11 मार्च 2025:
देश में छोटे और क्षेत्रीय अखबारों की स्थिति लगातार कठिन होती जा रही है। सरकारी नीतियों और विज्ञापन नीति में बदलाव के चलते छोटे समाचार पत्रों का अस्तित्व संकट में आ गया है। वरिष्ठ पत्रकार श्याम सिंह ‘पंवार’ ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “सरकार छोटे वर्ग के अखबारों को खत्म करने की मंशा रखती है, जो प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।”

छोटे अखबारों को किनारे लगाने की कोशिश?
पत्रकारों और छोटे मीडिया संस्थानों का कहना है कि सरकारी विज्ञापन नीति में किए गए बदलाव और कठिन लाइसेंसिंग शर्तों ने छोटे समाचार पत्रों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
✔ विज्ञापन दरों में भारी कटौती के कारण छोटे समाचार पत्रों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
✔ डिजिटल मीडिया को प्राथमिकता देने से प्रिंट मीडिया को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है।
✔ सरकारी टेंडर और विज्ञापन केवल बड़े मीडिया संस्थानों को दिए जा रहे हैं, जिससे छोटे अखबारों का राजस्व स्रोत खत्म हो रहा है।

पत्रकारों की अपील: प्रेस की स्वतंत्रता बचाने की जरूरत
श्याम सिंह ‘पंवार’ ने अपने बयान में कहा कि “आज छोटे अखबारों को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, कल मझोले अखबारों का नंबर आएगा और परसों बड़े अखबारों का।” उन्होंने पत्रकार बिरादरी से आह्वान किया कि वे इस संकट के खिलाफ एकजुट हों और सरकार की नीतियों के विरोध में आवाज उठाएं।

पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों पर हमले, प्रेस की आजादी में हस्तक्षेप और मीडिया संस्थानों पर प्रशासनिक दबाव बढ़ा है। फैक्ट-चेकिंग के नाम पर सख्त नियमों को लागू करना और आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करने वाले अखबारों पर कानूनी शिकंजा कसना इस बात का संकेत है कि सरकार मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है।

छोटे अखबार केवल समाचार पत्र नहीं होते, वे स्थानीय आवाजों, जन मुद्दों और हाशिए पर खड़े लोगों के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि इन्हें दबाया गया, तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी और केवल सत्ता के अनुकूल खबरें ही जनता तक पहुंचेंगी। इसलिए, अब समय आ गया है कि मीडिया जगत एकजुट होकर प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कदम उठाए।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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