
इटावा। बाह। लखनऊ। महिला दश्यु सुंदरियों में सबसे ज्यादा खुंखार कुसमा नाइन की बीमारी के चलते सजायाफ्ता के रूप में लखनऊ के अस्प्ताल में मौत हो गई। एक समय फलन के लिए रोटी बनाने वाली इतनी खूंखार बनी कि उसने अपने प्रेमी की जाति के पन्द्रह लोगों को मार दिया था। व लोगों को जिंदा जला ने से पूर्ण अंग भंग भी करती थी।
इटावा के सूत्रों के अनुसार नाइन आजैवन करावाश इटावा जेल में काट रही थी । तबियत खराब होने पर पहले जिला अस्प्ताल से सैफई फिर लखनऊ भेजी गई। जहाँ शनिवार को उसकी मौत हो गई।
कभी चंबल की कुख्यात डकैत रही कुसुमा अब जेल में कैदियों को गीता-रामायण का पाठ कराती थी। । कभी उसके गिरोह के ऊपर यूपी और एमपी में 200 से ज्यादा केस दर्ज थे।
डकैत कुसुमा नाइन जो कभी चंबल में थी आतंक का पर्याय, सरेंडर के बाद बन गई संन्यास कभी चंबल की कुख्यात डकैत रही कुसुमा अब जेल में कैदियों को गीता-रामायण का पाठ कराती है। कभी उसके गिरोह के ऊपर यूपी और एमपी में 200 से ज्यादा केस दर्ज थे।
आज कहानी डकैत कुसुमा नाइन की, जिसकी कभी बीहड़ों में जिसकी धाक थी। कुसुमा नाइन का जन्म साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। कुसुमा ने स्कूल जाना शुरू किया और कुछ सालों बाद ही उसे एक लड़के से प्यार हो गया। जब कुसुमा थोड़ी बड़ी हुई तो वह अपने प्यार यानी माधव मल्लाह के साथ भाग गई। लेकिन पिता की शिकायत पर पुलिस ने उन्हें दिल्ली में पकड़ लिया।
फिर माधव मल्लाह पर डकैती का केस लगा और कुसुमा के पिता ने उसकी शादी केदार नाई से कर दी। बता दें कि माधव मल्लाह चंबल के कुख्यात डकैत का साथी था। शादी की खबर पाने के कुछ माह बाद माधव गैंग के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा और उसे अगवा कर लिया। माधव, उसी विक्रम मल्लाह का साथी था; जिसके साथ फूलन देवी का नाम जुड़ता था।
विक्रम मल्लाह की गैंग में रहने के दौरान ही उसे फूलन के जानी दुश्मन लालाराम को मारने का काम दिया गया। लेकिन फूलन से अनबन के कारण बाद में कुसुमा नाइन, लालाराम के साथ ही जुड़ जाती है। फिर विक्रम मल्लाह को ही मरवा देती है। इसी कुसुमा नाइन और लालाराम ने बाद में सीमा परिहार का अपहरण किया था, जो कि कुख्यात डकैत के रूप में उभरकर सामने आई थी। साल 1981 में फूलन देवी बेहमई कांड को अंजाम दिया था।बेहमई कांड के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद बीहड़ में कुसुमा नाइन का दबदबा तो बढ़ा ही बल्कि लूट, डकैती और हत्या की दर्जनों घटनाओं को अंजाम भी दिया। वह अपनी क्रूरता के लिए भी कुख्यात थी। जिसमें वह किसी को जिंदा जला देती थी तो किसी की आंखें निकाल लेती थी। साल 1984 में कुसुमा का नाम सुर्खियों में तब आया, जब उसने बेहमई कांड की तर्ज पर 15 मल्लाहों को एक साथ गोली मार दी थी।
इसी घटना के बाद उसकी लालाराम से भी अनबन हो गई और वह रामाश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा से जुड़ गई। उस पर एक रिटायर्ड एडीजी समेत कई पुलिसवालों की हत्या का भी आरोप था। कई सालों बाद उसका बीहड़ों से मन उचट गया। साल 2004 में कुसुमा और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। अभी कुसुमा जेल में है और उम्रकैद की सजा काट रही है।