
(कृष्णन अय्यर जी की वॉल से)
यूक्रेन के संदर्भ में पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका को देखिए आपको शायद भारत का ख़तरा समझ आए।
यूक्रेन का राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की पेशे से एक जोकर/कॉमेडियन हुआ करता था। इस जोकर ने पूरे यूक्रेन को राष्ट्रवाद के जुनून में बर्बाद कर दिया।
रूस की संस्कृति के ख़िलाफ़ यूक्रेन की नफ़रत इस स्तर तक पहुँच गई कि युद्ध हो गया। यूक्रेन में भुखमरी फैल गई।
जंग में अमेरिका ने यूक्रेन को 500 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ और सैन्य साजो-सामान दिया। इसके बावजूद यूक्रेन का एक बड़ा हिस्सा रूस के क़ब्ज़े में चला गया।
इस हिस्से में यूक्रेन के 53% मिनरल्स हैं जिन्हें रूस और चीन ने आपस में बांट लिया। चीन की इकॉनमी मज़बूत हुई और रूस ने सस्ता तेल बेच कर अरबों डॉलर कमा लिए।
अब आता है ट्रंप। उसने अमेरिका के 500 बिलियन डॉलर यूक्रेन से वापस माँगे। यूक्रेन के पास डॉलर हैं ही नहीं। तो लौटाए कैसे?
तब ट्रंप ने बोला कि अमेरिका को 500 बिलियन डॉलर के मिनरल्स दे दो और मैं रूस-चीन से जंग रुकवा दूंगा; परन्तु रूस ने यूक्रेन की जो ज़मीन क़ब्ज़ाई है वह उसको वापस नहीं मिलेगी।
ट्रंप इतने पर नहीं रुका, उसने यूक्रेन को बोला कि जंग रुकने के बाद यूक्रेन को नए तौर से बनाने का काम भी अमेरिका करेगा। यानी 200 बिलियन डॉलर और लेगा।
ज़ेलेंस्की सिर झुका कर अमेरिका जाने और मिनरल का समझौता करने पर मजबूर है क्योंकि अब कोई रास्ता नहीं बचा।
राष्ट्रवाद की क़ीमत यह है कि यूक्रेन के 2 टुकड़े हो गए, यूक्रेन लूट गया और आने वाली यूक्रेनी नस्लें क़र्ज़दार/ग़ुलाम बन गईं।
ज़ेलेंस्की ने अमेरिका को बाप माना था; मोदी भी अमेरिका को “फ्रेंड” मानता है, परन्तु अमेरिका मोदी को क्या मानता है?
मोदी ने भारत को अमेरिका के जबड़ों में धकेल दिया है तो उधर चीन भारत पर नज़रें गढ़ाए हुए है। भारत का व्यापार ख़त्म है और ट्रंप अपने फायदे के भारत से मनचाहे काम करवा रहा है।
राहुल गाँधी ने बोला था कि अमेरिका से ख़ुद की शर्त पर बात करो.. परन्तु मोदी तो अदाणी/ट्रंप की शर्त में जकड़ा जा चुका है। फर्जी राष्ट्रवाद की क़ीमत भारत को भी अदा करनी है।