जिस समाज में अधिक से अधिक लोग एक मन, विचार और संकल्प वाले होते हैं वह समाज उन्नतिशील होता है। वहां लोग तेजस्वी होते हैं।


वेदों का दिव्य संदेश”
उद् बुध्यध्वं समनसः सखायः समग्निमिन्ध्वं बहवः सनीला:।
दधिक्रामग्निमुषसं च दवीमिन्द्रावतोऽवसे नि ह्वये वः।।
(ऋग्वेद 10/101/1)
भावार्थ: जिस समाज में अधिक से अधिक लोग एक मन, विचार और संकल्प वाले होते हैं वह समाज उन्नतिशील होता है। वहां लोग तेजस्वी होते हैं।
संदेश: 👉मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अकेले न तो वह रह सकता है और न कुछ कर ही सकता है। उसकी सारी गतिविधियां दूसरों के आचरण से प्रभावित होती हैं। सांसारिक क्रियाकलापों के सफल संचालन हेतु अनेकानेक व्यक्तियों को मिलकर सहयोग करना पडता है।
👉प्रत्येक व्यक्ति मन, वचन, कर्म और स्वभाव से स्वतंत्र होता है। वह जो चाहे सो सोच सकता है, कर सकता है। परंतु जब तक आपस में मिलकर , एक सा ही चिंतन मनन करके, एक से संकल्प की पूर्ति हेतु कर्म नहीं किए जाएंगे सफलता नहीं मिल सकेगी। मनुष्य समाज का एक अभिन्न अंग है। जब तक वह अपने ही स्वार्थ की बात सोचेगा न तो अपना भला कर सकेगा और न ही समाज का। उलटे अराजकता का वातावरण बन जाएगा। परंतु जब वह सबके हित में अपना हित समझने लगेगा, अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं व लालसाओं पर संयम करने लगेगा, तो समाज में चतुर्दिक सुख-शांति का वातावरण बनेगा। हर व्यक्ति उन्नति के मार्ग पर बढेगा, तेजस्वी होगा, ओजस्वी होगा, वर्चस्वी होगा।
👉सबसे महत्वपुर्ण बात तो यही है कि नर और नारी को एक समान स्तर प्रदान किया जाए। नारी को ‘पांव की जूती’ या ढोर, गंवार, शूद्र, पशु न समझा जाए। आधी जनसंख्या की इस प्रकार उपेक्षा करने से समाज में विकृति तो आती ही है परिवारों में भी घुटन भरा वातावरण दिखाई देता है। पति-पत्नी जब एक मन से, एक विचार से बराबरी के स्तर पर अपने दायित्वों को निभाने का संकल्प लेते हैं तो सर्वत्र सुख शांति की बर्षा होने लगती है। देश व समाज की प्रगति के लिए सुयोग्य नागरिक चाहिए और यह तभी संभव होगा जब माता-पिता दोनों ही मिलकर इस दायित्व को निभाने का पुरूषार्थ करें। तभी ‘नर और नारी एक समान’ का नारा सार्थक होगा। जीवन के व्यापक क्षेत्र में इस प्रकार सहयोग व सहकार से ही प्रगति पथ पर बढा जा सकता है। यही विचारधारा खेत-खलिहान, कारखाने, कार्यालय आदि सभी क्षेत्रों में आवश्यक है।
ज्ञान, विज्ञान, तप, साधना कितने ही ऊंचे स्तर की क्यों न हो, यदि उसका उद्देश्य समाज की उन्नति करना नहीं है तो समझना चाहिए की सब कुछ निष्फल ही नहीं हानिकारक भी होगा। रावण ने समाज की उन्नति को अनदेखा किया और अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु मन, विचार और संकल्प का संयोजन किया। फलस्वरूप वह स्वयं, उसका परिवार और सारा देश ही बरबाद हो गया। उसका धन बल , बुद्धि बल, सैन्य बल सब कुछ नष्ट हो गया। यही दशा भस्मासुर व दुर्योधन की भी हुई।
👉ब्राह्मणों का यह परम पुनीत कर्तव्य है कि वे समाज में व्याप्त कुविचारों को नष्ट करके मन, विचार व संकल्प को सत् मार्ग की ओर प्रेरित करें। विचार क्रांति अभियान का यही उद्देश्य है और यही सच्चा ब्राह्मणत्व है।
संपादक: 🔱वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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