
वाह रे उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन
लखनऊ : उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन जो कि एक उत्तर प्रदेश सरकार की एक नोडल एजेंसी है जिसके ऊपर ऊर्जा खरीदने की जिम्मेदारी मात्र है परंतु फिर भी वह उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद की तरह कार्य कर रही है इसमें सबसे बड़ी कमी विभागीय संगठनों की है जिनमें कुछ नेताओं ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को खुश करने के लिए अपने से कनिष्ठ लोगों यह ज्ञान ही नहीं प्रदान किया की उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन एक नोडल एजेंसी है और वितरण निगम स्वपोषित संस्थाएं हैं जिसका प्रबंधन पूर्णता स्वयत / स्वतंत्र होता है इसमें उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में कोई भी हस्तक्षेप नहीं हो सकता परंतु वितरण निगम के प्रबंधन में नियम विरुद्ध भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर रखा है जिसका विरोध विभागीय संगठनों को करना चाहिए था परंतु बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन ?
इसका विरोध आज तक किसी भी विभागीय संगठन ने नहीं किया जिसका नतीजा यह है कर्मचारियों अधिकारियों को यह मालूम ही नहीं है की पूर्व में जो विघटन हुआ था राज्य विद्युत परिषद का उसके बाद कितनी कंपनियां बनी और कौन-कौन सी और उनके मेमोरेंडम आफ आर्टिकल में क्या लिखा है इस मेमोरेंडम आर्टिकल व लाइसेंस में क्या लिखा है उसके बारे में बताने की जिम्मेदारी विभागीय संगठनों के शीर्ष नेतृत्व की थी परंतु किसी भी नेता ने अपने लोगों को यह बताना जरूरी नहीं समझा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यहां पर नहीं बैठ सकते क्योंकि यह सभी कंपनी एक्ट से चलने वाली संस्थाएं हैं और मेमोरेंडम आर्टिकल मे लिखे प्रावधानों से इस कंपनियों को चलाया जाएगा जिसका नतीजा यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने पूरे प्रदेश को ऊर्जावान करने वाले इस विभाग को अपनी अनुभवहीनता के कारण घाटे में ले जाते के चले गए
आज तानाशाही का आलम यह है की स्वपोषित निगमो के निदेशक मण्डल को दबाव में ले कर मन चाहे फैसले कराए जाने लगे जिसके कारण अभियंताओं में असुरक्षा की भावना घर कर गई है और उनके हौसले टूट गए हैं क्योंकि आज भी इस पुरानी परिपाटी के आधार पर धरना प्रदर्शन हो रहा है और यह भारतीय प्रशस्तिक सेवा के अधिकारी जो अवैध रूप से इन नियमों का संचालन कर रहे हैं मनमाने निर्णय लेकर पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने जा रहे हैं जिसकी वजह से डर का वातावरण बना गया है और स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेने की शीर्ष अधिकारियों में एक होड़ सी मची हुई है मुख्य अभियंता हो या अधीक्षण अभियंता अधिकांश ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दे दिया है इस भगदड़ का सबसे बड़ा कारण विभागीय संगठनों के नेतृत्व है जिसने अपने बाद वाली पीढ़ी को शिक्षित ही नहीं किया और ना ही यह बताया की 21 जनवरी 2010 को सभी वितरण निगम स्वयत हो गए थे इन विभागीय नेताओं में कभी संविदा कर्मियों की आपूर्ति का ठेका उठाकर कर उनका हक मार कर घोटाले कर के अपनी जेब गर्म की और वर्तमान में संगठन की बागडोर बाहरी व्यक्तियों के हाथ में सौंप दी निगम विरुद्ध एक ही विभाग में एक ही संवर्ग के दो संगठन बन गये है जिससे उनको मनमानी करने की पूरी छूट मिल गई है कि जो चाहे वह करें। इन सब कमियों का फायदा अपने तरीके से भारतीय प्रशासनिक सेवा में के अधिकारियों ने उठाया और निर्देशकों की चयन प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए मध्यांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमन में निदेशक तकनीकी के पद पर नियम विरुध अपने चाहते अभियंताओं को बैठा दिया है जहां पर नियुक्ति का अधिकार महामहिम राज्यपाल को होता है वहीं मात्र कैबिनेट से मंजूरी ले कर निदेशकों की नियुक्ति कर दी गई है । मध्यांचल में तो ऐसे अभियंता को बताया गया है जिसे अपना पूरा कार्यकाल पारेषण में बिताया है उसे वितरण का कोई अनुभव ही नहीं है इस कार्य से स्पष्ट हो जाता है की किस तरीके से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पूरे प्रदेश को ऊर्जा देने वाले विभाग के साथ कैसे मनमानी करते हैं और किस तरीके से नियम विरुद्ध जा कर अपने चाहते लोगों का पक्ष लेकर कार्रवाई ना करके और उनको संरक्षण दे कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं जिससे यह विभाग खोखला हो गया है और जो उनके विरुद्ध आवाज उठाता है उसको निलंबित कर सालों सम्बन्ध कर के विभागीय कार्यों से दूर रखा जाता हैं जिसका ताजातरीन उदाहरण पिछले विरोध प्रदर्शन के दौरान सैकड़ों संविदा कर्मियों की सेवा समाप्त कर और कर्मचारी नेताओं का निलंबन है जिनकी बहाली लम्बे अरसे बाद हुई इसीलिए अभियंताओं में असुरक्षा की भावना व्याप्त हुई हैं और वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की तरफ बढ़ता है इस लिए दोनों पक्ष ही दोषी है । खैर *युद्ध अभी शेष है*