
महाकुंभ : श्रद्धालुओं की होती है गिनती, जानें तरीका
तीर्थराज प्रयाग की पावन भूमि पर 13 जनवरी से जारी महाकुंभ में अब तक 51 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। हर दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि इतनी विशाल भीड़ की सटीक गणना कैसे की जाती है? क्या यह सिर्फ एक अनुमान होता है, या फिर इसके लिए वैज्ञानिक और तकनीकी तरीकों का उपयोग किया जाता है?
हाईटेक गणना प्रणाली
वर्तमान में, महाकुंभ को हाईटेक तकनीकों से लैस किया गया है, जिससे श्रद्धालुओं की गणना अधिक सटीकता से की जा सकती है। इसके लिए कई उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है:
डिजिटल कैमरा और एआई तकनीक:
-पूरे प्रयागराज शहर में 2700 कैमरे लगाए गए हैं, जिनमें से 1800 कैमरे मेला क्षेत्र में हैं।
-270 से अधिक कैमरे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक से लैस हैं।
-ये कैमरे श्रद्धालुओं की संख्या को स्वतः रिकॉर्ड कर मिनट-दर-मिनट आंकड़े अपडेट करते हैं।
मोबाइल नेटवर्क डेटा एनालिटिक्स
-इस तकनीक का उपयोग सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के दौरान भी किया गया था।
-इससे यह आकलन किया जाता है कि मेला क्षेत्र में कितने मोबाइल फोन एक्टिव हैं, जिससे अनुमानित संख्या निकाली जाती है।
रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) कार्ड
-वॉलंटियर्स, सुरक्षाकर्मियों और आयोजकों को RFID कार्ड दिए गए हैं, जिनसे उनकी सटीक उपस्थिति का पता चलता है।
बायोमीट्रिक स्कैनर और QR कोड सिस्टम
-कुछ स्थानों पर बायोमीट्रिक स्कैनर और QR कोड स्कैनिंग सिस्टम लगाए गए हैं, जिससे आने-जाने वाले श्रद्धालुओं की स्वचालित गिनती होती है।
100 प्रतिशत सटीक गणना करना है चुनौती
कुछ लोगों का मानना है कि सरकार श्रद्धालुओं की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर बताती है। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार ये आंकड़े विभिन्न तकनीकों से लिए गए डेटा के आधार पर अनुमानित होते हैं। इन सभी तरीकों के बावजूद 100 प्रतिशत सटीक गणना संभव नहीं होती, लेकिन आंकड़ों में 5-10 प्रतिशत तक की ही त्रुटि रहती है। उदाहरण के लिए, यदि बताया जाता है कि 5 करोड़ लोग आए, तो वास्तविक संख्या 4.5 करोड़ से 5.5 करोड़ के बीच हो सकती है।
महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे मेला प्रशासन को भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा में मदद मिल रही है। हालांकि, सटीक गणना अभी भी चुनौती बनी हुई है, लेकिन इन वैज्ञानिक तरीकों से आंकड़े अधिक विश्वसनीय और सटीक माने जा सकते हैं।