हिंदी की दुर्दशा और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की मनमानी पर एक गंभीर प्रश्न



एटा । हिंदी दिवस पर शिक्षण संस्थानों, सरकारी विभागों और बैंकों में हिंदी के प्रति गहरा उत्साह देखने को मिलता है। बड़े-बड़े भाषण दिए जाते हैं, हिंदी के महत्त्व पर चर्चा होती है, लेकिन यह जोश सिर्फ एक दिन तक सीमित रहता है। अगले ही दिन वही संस्थान और अधिकारी अंग्रेजी के मोह में बंधे नजर आते हैं। ऐसा लगता है कि अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अंग्रेजियत की मानसिकता अभी भी गहराई से जड़ें जमाए हुए है। हिंदी भाषा को दरकिनार करने में शिक्षण संस्थानों की भूमिका भी कम नहीं है। आज एटा सहित पूरे देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आ गई है। बड़े-बड़े आलीशान स्कूल खुल रहे हैं, जो अभिभावकों को यह विश्वास दिलाते हैं कि उनका भविष्य सिर्फ अंग्रेजी शिक्षा में ही सुरक्षित है। बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि इन स्कूलों में शिक्षकों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की शिक्षण गुणवत्ता पर सवाल
एटा के कई अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शिक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री जैसे महत्वपूर्ण विषयों के लिए योग्य शिक्षक नहीं हैं। कई स्कूलों में B.Ed या M.Ed योग्यताधारी शिक्षक शायद ही मिलें। कम वेतन पर रखे गए शिक्षक ही किसी तरह से अंग्रेजी में पढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी शैक्षिक क्षमता मानकों के अनुरूप नहीं होती।
शिक्षा विभाग की अनदेखी
शिक्षा विभाग, जिला विद्यालय निरीक्षक और बेसिक शिक्षा अधिकारी इस स्थिति से अनभिज्ञ नहीं हैं, लेकिन वे अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने से कतरा रहे हैं। सीबीएसई बोर्ड की मान्यता भी संदेह के घेरे में है। कहा जाता है कि नोएडा स्थित सीबीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। जब मान्यता ही पैसों के बल पर मिलेगी, तो शिक्षा की गुणवत्ता की गारंटी कैसे दी जा सकती है?
फीस के नाम पर अभिभावकों का शोषण
अंग्रेजी माध्यम स्कूल केवल फीस ही नहीं वसूलते, बल्कि हर छोटी से छोटी चीज पर छात्रों और अभिभावकों से मनमानी कीमत वसूलते हैं। जूते, मोजे, यूनिफॉर्म, बैग, किताबें, और स्कूल बस – हर चीज उन्हीं से खरीदनी पड़ती है, और इनकी कीमत बाजार दर से कहीं अधिक होती है। फीस के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है, लेकिन बदले में शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
आवश्यकता है सख्त निरीक्षण की
जनहित में प्रशासन को चाहिए कि एटा और अन्य जिलों के अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की जांच कराए। इन स्कूलों में शिक्षक मानकों की जांच की जाए, फीस संरचना पर निगरानी रखी जाए, और यह सुनिश्चित किया जाए कि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो शिक्षा केवल एक व्यापार बनकर रह जाएगी और हिंदी भाषा का महत्त्व और भी कमजोर हो जाएगा।

  • एक प्रश्न:
    क्या सरकार और प्रशासन इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएंगे, या फिर हर साल हिंदी दिवस पर केवल औपचारिक भाषणों तक ही सब सीमित रहेगा?

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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