आज की बातहम हैं किस जगह समझ नहीं रहे हैं

आज की बात
हम हैं किस जगह समझ नहीं रहे हैं

समझ नहीं आता हम कहां हैं आजकल। आवश्यक सेवा विस्तार का, मौलिक अधिकार का जीवन सार तक तय कर इन्हें सम्बेधानिक आयाम नहीं दे पा रहे हैं ऊपर से सरकार के काम का निर्धारण इस निजीकरण के युग में तय नहीं कर पा रहे हैं किसके लिए कौन दोषी कौन तय करेगा। यहा जहा भारत रत्न केवल नेता को मिलता हो जनता की बात करना व्यर्थ है। जब सड़क, भवन, पुल, आस्प्ताल स्कूल, पंचायत घर सीधे तौर पर चुने प्रतिनिधि दे दिलाते हैं वहाँ देश द्रोही की धारा का स्तेमाल कितना उचित और पार दर्शी हो पाता है वर्तमान की पत्रकार बाली हत्यां की घटना से समझ सकते हैं। ये होना चाहिए वो होना चाहिए तभी कहा जाता आया है जब कोई राजनेतिक स्टंट जोर पकड़ता है। कोलकाता का बलात्कार छ्ग का पत्रकार ह्त्या सार के लम्बे छोटे बनाबे के तरीके जनता सब समझकर अपने ऊपर पेच कसवा रही है।
किस को नहीं पता ट्रेन इलाहाबाद जा रही हैं उसके लिए दो सो टिकिट बिकती हैं मगर उस जगह का कोटा दस सीट का है का बोर्ड मे कोई विचार करता है। ७२ सीट की बोगी में दो सो ज्यादा लोग रोज सफर करते दिखते हैं फिर भी ऐसी कोच बढ़ते जा ते हैं। हमारे यहाँ ९विधायक चार सांसद होने पर भी पानी सुरक्षा खेल न्याय रेल हवाई सड़क की समस्या हलनहीं हो रही हैं। बिजली निजी है। रेल विजी है बस हैं नहीं। पानी गंगा से लाने को समय और दाम नहीं हैं। मर रहे हैं हम गरीब जी रहे हैं वे १३ लोग और उन जैसों के पद पर जो रह चुके हैं।

शंकर देव तिवारी

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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