यत्र-तत्र-सर्वत्र मिनी पाकिस्तान ढूंढती नैनो बुद्धि(आलेख : बादल सरोज)

घूम-फिरकर कुनबा फिर अपने प्रिय पाकिस्तान की पनाह में पहुँच गया है। इस बार कोलम्बस बने हैं महाराष्ट्र की चार इंजिन वाली सरकार के मछली जल की रानी और जहाजरानी विभाग के मंत्री नितीश राणे और उन्होंने केरल की खोज मिनी पाकिस्तान के रूप में कर ली है। पुणे में एक जगह बोलते हुए उन्होंने कहा कि राहुल और प्रियंका केरल से इसलिए चुनाव जीतते हैं, क्योंकि यह एक मिनी पाकिस्तान है और आतंकवादी उन्हें वोट देकर जिताते हैं। जब इस पर उनकी थुक्का-फजीहत हुई और केरल में उभरे रोष के चलते उनसे बड़े वाले भाजपाई और मोदी सरकार के पूर्व मंत्री राजीव चंद्रशेखर तक इस बयान की निंदा करने के लिए मजबूर हो गए, तो जूनियर राणे ने जो सफाई दी, उसमे भी अपनी पहले की बात को ही दोहरा दिया ।

केरल की जनता में इस निहायत आपत्तिजनक बयान के खिलाफ गुस्सा भड़कना ही था, उसे दर्ज करते हुए केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इसकी निंदा की, इसे देश के इस सबसे विकसित, सबसे शिक्षित राज्य के प्रति संघ परिवार के मूल दृष्टिकोण का उजागर होना बताया। उन्होंने इस गिरोह की कार्यनीति की याद दिलाते हुए कहा कि ये लोग ऐसे किसी भी स्थान को टारगेट बनाकर उसके खिलाफ अभियान चलाते हैं, जहाँ इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ पा रहा होता है – जहाँ की जनता इन्हें स्वीकार नहीं करती। उन्होंने कहा कि केरल सेकुलरिज्म और साम्प्रदायिक सदभाव की जमीन है। भाजपा के मंत्री के बयान को देश के संविधान का अपमान करने के बराबर बताते हुए केरल के मुख्यमंत्री ने आश्चर्य व्यक्त किया कि देश की सत्तारूढ़ पार्टी के नेतृत्व ने अपने मंत्री के इस कृत्य पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी है। देंगे भी कैसे, जब खुद प्रधानमंत्री मोदी यही बात इशारों में कहते रहे हैं, कई बार इशारों से भी आगे जाकर कहते रहे हैं।

पाकिस्तान इस गिरोह का प्रातः स्मरणीय आराध्य है ; ये जितनी बार “पाकिस्तान, पाकिस्तान” करते हैं, उतनी बार तो पाकिस्तानी नेता भी नहीं बोलते होंगे। पाकिस्तान उनका इश्क भी है और कस्तूरी के मृग की तरह इनका मुश्क भी है, जो दरअसल समाया इन्हीं में है, मगर वे इसे यत्र-तत्र-सर्वत्र ढूँढ़ते रहने का दिखावा करना नहीं छोड़ते। इनके शाखा मृगों के “खेलकूद” और ‘बौद्धिक’ में भी पाठ की शुरुआत और अंत ‘राग पाकिस्तान’ से ही होता है। नम्बर एक और दो वालों सहित इनके नेता-नेतानी चुनाव भी पाकिस्तान के नाम से लड़ते है, जीत पर उधर खुशियाँ मनाई जाने के नाम पर वोट मांगते हैं। इनकी नैनो – अति सूक्ष्म बुद्धि – का ज्यादातर हिस्सा अपने देश में भी मिनी पाकिस्तान ढूँढने में पूरे प्राण प्रण से भिड़ा रहता है। नितीश राणे का बयान इसी निरंतरता में है।

यह कुनबा मिनी पाकिस्तान का संबोधन उन इलाकों या बसाहटों के लिए करता है, जिनमें मुस्लिम आबादी की सघनता होती है ; इसकी शुरुआत 2002 के नरसंहारी दंगों के समय मोदी के गुजरात से हुयी थी। अमदाबाद के जुहापुरा और ऐसे ही मुस्लिम बहुल इलाकों को पाकिस्तान और बाकी स्थानों को हिन्दुस्तान कहना शुरू किया। इसके बाद तो यह सर्वनाम से होते हुए संज्ञा में ही बदल दिया गया और कुनबे की वर्तनी में मुसलमानों का पर्यायवाची बना दिया गया।

पुरानी बातें छोड़ भी दें तो :

  1. अभी हाल ही में इनके नेता कपिल मिश्रा ने नागरिकता क़ानून के खिलाफ शाहीन बाग़ के धरने को मिनी पाकिस्तान बताकर उस नफरती अभियान का आगाज़ किया था, जिसकी परिणिति उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों में हुई, जिसकी अगुआई भी इसी ने की थी।
  2. उत्तर भारत में साम्प्रदायिक हिंसा के सरगना संगीत सोम और संजीव बालियान तो पूरे पश्चिमी यूपी को ही मिनी पाकिस्तान बताते हुए ही अपनी राजनीति करते रहे हैं।
  3. हाल में नूह दंगों के समय कुनबा पूरे मेवात को मिनी पाकिस्तान का सर्टिफिकेट बांटता घूम रहा था। उस वक़्त राजस्थान में भाजपा के नेता प्रतिपक्ष मदन दिलावर ने राजस्थान और हरियाणा दोनों तरफ के मेवात को मिनी पाकिस्तान ही नहीं बताया था, बल्कि यहाँ तक दावा किया था कि पाकिस्तान का जन्म ही मेवात से हुआ!!
  4. इसी पार्टी के एक सांसद जनार्दन मिश्रा तो इस कदर बमके थे कि ‘मेवात से सही तरीके से न निबटने’ के लिए अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री खट्टर को कमजोर और निकम्मा तक कह दिया था और पूरे देश को ‘एक हाथ में कुरान और दूसरे में लैपटॉप’ के मुकाबले योगी के दिए सूत्र ‘एक हाथ में माला, दूसरे में भाला’ का अनुसरण करने की यलगार लगा दी थी।
  5. अभी इसी लोकसभा के चुनाव के बाद बंगाल गयी भाजपा की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 28 जून को अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा को सौंपी एक रिपोर्ट में पूरे पश्चिम बंगाल को ही मिनी पाकिस्तान बता दिया था। इस टीम की अगुआई राजनीतिक हिंसा के मामले में कुख्यात बिप्लब देब, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिपुरा कर रहे थे, बड़बोले रविशंकर प्रसाद भी इसके सदस्य थे।
  6. यह भाजपा नेता सुबेंदु अधिकारी से आगे की बात थी, जिसने सिर्फ नंदीग्राम को ही मिनी पाकिस्तान बताया था। यह अलग बात है कि वे यहीं से जीत कर गए। तृणमूल से भाजपा और भाजपा से तृणमूल की परिक्रमा करने के मामले में रिकॉर्डधारी ये अधिकारी मोशाय मोदी को सलाह दे चुके हैं कि अब उन्हें “सबका साथ, सबका विकास का नारा छोड़कर सीधे-सीधे खुलकर आ जाना चाहिए।”

गाने को तो कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज श्रीसानंदा भी मिनी पाकिस्तान राग गा चुके हैं और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की झिड़की खा चुके हैं। हालांकि खुद को सबसे सच्चा और सबसे पक्का हिदू बताने वाले सुदर्शन न्यूज़ के चव्हाण ने इस जज को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर डाली है।

इस कुनबे के अज्ञान भण्डार के साथ यह समस्या है कि ये केरल के बारे में भी कुछ नहीं जानते। एक जमाने में जाति उत्पीड़न का यातनागृह और स्वामी विवेकानंद के शब्दों में ‘जातियों का पागलखाना’ रहा केरल हर तरह से विकसित और उन्नत स्थिति में अपने आप नहीं पंहुचा है, यह वहाँ की जनता की बहुमुखी लड़ाईयों का परिणाम है। जिसे विवेकानंद ने ‘एक-एक इंच जमीन पर पण्डों-पुरोहितों का कब्जा’ वाला केरल बताया था, उसे तो बदला ही गया, एक-एक इंच जमीन का वितरण भी किया गया ; इसी के साथ सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक रूढ़ियों के विरुद्ध भी लगातार संघर्ष चले। ए के गोपालन और ई एम एस नम्बूदिरिपाद जैसे कामरेडों की अगुआई में शूद्रों और स्त्रियों के मंदिर प्रवेश की लड़ाईयां लड़ी और जीती गयीं।

उससे पहले श्रीनारायण गुरु जैसे आध्यात्मिक संत एक बड़ा जागरण कर गए थे – इसी सब को वाम-जनवादी मोर्चे की केरल की वर्तमान सरकार ने और आगे बढ़ाया और पूजा-पाठ कराने के अधिकार से मनुसम्मत आदेश से वंचित दलितों तथा पिछड़ी जातियों को भी पुजारी और पुरोहित बनने के रास्ते खोले, उन्हें आरक्षण दिया। मनु को, जिसे वह अपना सबसे सुरक्षित और अभेद्य दुर्ग समझता था, उसकी उस पनाहगाह में जाकर खदेड़ा।

शिक्षा, स्वास्थ्य, मानव विकास सूचकांक आदि-इत्यादि में केरल देश ही नहीं, दुनिया में मिसाल बना ; जिसका नतीजा यह निकला कि ‘ईश्वर का अपना देश’, शंकराचार्य की भूमि, दुनिया की सबसे प्राचीन मस्जिद और प्राचीनतम चर्चों में से एक का घर होने के बाद भी साम्प्रदायिकता और कट्टरता के विषधर इस प्रदेश में अपनी बाँबियाँ नहीं बना पाए। जनसंघ से भाजपा तक कुनबे की राजनीति जड़ नहीं जमा पाई ; खाता तक नहीं खुला। कभी धुप्पल में भूले-भटके खुल भी गया, तो पहली फुर्सत में ही उसे बंद भी कर दिया गया।

ऐसे केरल से भाजपा और संघियों का डर स्वाभाविक है ; वह कभी विस्मृत हो चुकी स्मृति इरानी के संसद में किये गए प्रलाप, महाबली के ऊपर वामन को चढ़ाने के असफल अभियान के रूप में नजर आता है, कभी मोपला विद्रोह को धिक्कारने के रूप में उजागर होता है, कभी विनाशकारी बाढ़ और हाल की वायनाड जैसी प्राकृतिक आपदाओं के वक़्त केरल की पीड़ा में ख़ुशी जैसी मनाते और केरल की खानपान की आदतों के नाम पर उसे सही ठहराते निर्लज्ज प्रचार में दीखता है।

बहरहाल केरल इस तरह के मनोरोगियों से निबटना-सुलझना अच्छी तरह से जानता है। इसलिए यहाँ मुद्दा केरल नहीं, इनका पाकिस्तान व्यामोह है। व्यामोह एक तरह की मनोविकृति होती है, जो ज्यादा समय तक बनी रहे, तो हिंसक उग्रता में बदल जाती है। हाल के दौर में यही हो रहा है। भाजपा को वोट देने वाला ही हिन्दू है, से शुरू हुई वितंडा, भाजपा को वोट न देने वाले को नागरिक मानने से इनकार करते हुए अब उसे आतंकी करार देने तक आ गयी है। नितीश राणे को गैर-भाजपा इलाकों को मिनी पाकिस्तान कहना ही पर्याप्त नहीं लगा, वह उन्हें आतंकी बताने तक पहुंच गया।

पाकिस्तान के साथ इनका इश्क और मुश्क इनकी प्राणवायु है। इस कुनबे के अब तक के सबसे लोकप्रिय और कुछ लोगों द्वारा समझदार माने जाने वाले नेता अटल बिहारी वाजपेई ने एक बार इसे खुलकर कबूल भी किया था। उन्होंने कहा था कि “यदि पाकिस्तान नहीं रहेगा, तो हमारी राजनीति ही ख़त्म हो जाएगी।” उन्होंने माना था कि यही तो एक मुद्दा है, जिस पर हमारी राजनीति टिकी है।

इन्हीं के विचार जनक सावरकर ही तो थे, जिन्होंने दो राष्ट्र बनाने का विचार दिया था और उसे हासिल करने का संकल्प साधा था। मार्च 1940 में लाहौर में हुए मुस्लिम लीग के सम्मेलन में पाकिस्तान बनाए जाने का प्रस्ताव रखते और उसे पारित करवाते समय, जिन्ना ने अपने दो-राष्ट्र सिद्धांत के पक्ष में सावरकर का ही हवाला दिया था। जिन्ना द्वारा दिए गए इस महत्व से सावरकर इतने प्रमुदित हुए थे कि उन्होंने मुस्लिम लीग के इस फैसले पर बाकायदा बधाई सन्देश भेजा था। इसके बाद तो जिन्ना राग उनके भाषण का हिस्सा बन गया ; लगभग हर सभा और सम्मेलन में दोहराते रहे कि “मेरा जिन्ना के द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत से कोई झगड़ा नहीं है। हम हिंदू लोग अपने आप में एक राष्ट्र हैं और यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं।“

ध्यान रहे, ये वे ही सावरकर हैं, जिन्होंने केरल के कुख्यात दमनकारी और त्रावनकोर के दीवान सी पी रामास्वामी अय्यर द्वारा त्रावनकोर को आजाद भारत का हिस्सा न बनने और एक स्वतंत्र राष्ट्र होने के मंसूबे के एलान का भी स्वागत किया था। इस दीवान ने पूरा थोरियम भंडार देने की पेशकश करते हुए अमरीका और ब्रिटेन से इस काम में मदद मांगी थी। इस दुष्ट इरादे के समर्थन में दीवान के पास सिर्फ दो लोगों ; जिन्ना और सावरकर के टेलीग्राम पहुंचे थे।

संघ के इन्हीं प्रमुख भागवत ने 2017 में भारत और पाकिस्तान को “भाई-भाई” बताया था और भाइयों की तरह संबंध मजबूत करने की सलाह दी थी। इससे दो साल पहले खुद नरेन्द्र मोदी अचानक से हवाई जहाज बीच में मोड़ कर नवाज शरीफ की बेटी की शादी में बनारसी साड़ियों और पठानी सूटों के ढेर लेकर भात देने पहुँच गए थे।

यह लगाव आज तक जारी है। पिछले दो दशक में पाकिस्तान और उसकी आई एस आई के लिए जासूसी करते हुए जितने भी लोग पकड़े गए हैं वे या तो शुद्ध संघी हैं या फिर भाजपा सहित इसके किसी-न-किसी आनुषांगिक संगठन के पदाधिकारी हैं।

यही दोगलापन – दोहरापन – है, जो बार बार इनसे मिनी पाकिस्तान की ढूँढ-तलाश करवाता रहता है। एक विभाजन से अभी इनकी तृप्ति नहीं हुई है, इन्हें अनेक और अनवरत विभाजन चाहिए। तात्कालिक फायदे के लिए किये जा रही इस धूर्तता का मुकाबला एकता मजबूत करके ही दिया जा सकता है।

(लेखक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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