काकोरी ट्रेन एक्शन की घटना जो विश्व इतिहास बन गई, इसका इटावा से है गहरा नाता

इटावाः काकोरी ट्रेन एक्शन का शताब्दी वर्ष चल रहा है। काकोरी ट्रेन एक्शन की ऐतिहासिक घटना से इटावा जिले का गहरा संबंध रहा है। इतिहास और स्वाधीनता आंदोलन से सरोकार रखने वालों को इसकी जानकारी है लेकिन इटावा की नई पीढ़ी के हर व्यक्ति को भी अपने उस गौरवशाली अतीत की जानकारी होनी ही चाहिए। मसलन संयुक्त प्रांत में काकोरी ट्रेन एक्शन में तत्कालीन इटावा का क्या योगदान था?
दरअसल काकोरी एक्शन में मुकुंदीलाल का नाम प्रमुखता से आता हैं जिन्हें चंद्रशेखर आजाद सरीखे उनके साथी ‘भारतवीर’ के नाम से बुलाते थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतवीर मुकुंदीलाल ऐसे सूरमा हैं जिन्होंने हमें गुलामी की भंवर से निकालकर आजादी की सौगात दी। आकाश गंगा के तारे की तरह वह आज भी चमक रहे हैं।
इटावा महोत्सव प्रदर्शनी पंडाल में आयोजित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन को संबोधित करते हुए चंबल संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना ने कहा कि चंबल म्यूजियम में काकोरी केस से संबधित सभी फाइलें, पत्र, दस्तावेज संरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि औरैया (पूर्व में इटावा का हिस्सा) के रहने वाले मुकंदीलाल गुप्ता को ‘भारतवीर’ कहने की सबसे बड़ी वजह है कि उन्होंने सशस्त्र क्रांति की मशाल की लौ को कभी मद्धिम होने नहीं दिया।
मुकुंदीलाल ने अपने गुरू गेंदालाल दीक्षित के साथ मिलकर संयुक्त प्रांत के कलेक्टर, सुपरिटेंडेंट सहित अंग्रेज भक्त अधिकारियों को एक ही दिन हमला करके मार डालने की गुप्त योजना बनाई थी। अगर यह एक्शन सफल होता तो इंलैण्ड तक तहलका मच जाता लेकिन दलपत सिंह की मुखबरी ने सब पानी फेर दिया। मुकुंदीलाल की गिरफ्तारी हुई, मैनपुरी षड्यंत्र केस चला और जेल में अमानवीय और असंख्य यातनाएं दी गई। वे अपने एक पत्र में लिखते हैं- ‘जेल से कुछ साथी भाग निकले, इसके बाद हम लोगों को बेड़ियों और हथकड़ियों के साथ बांध दिया जाता था। रात को 11बजे गिनती होती थी। उसी समय भंगी आता था जो कनस्तरों में पेशाब आदि करा ले जाता था। इसके अतिरिक्त यदि रात को पेशाब लगे तो तसलों में ही करना पड़ता था। सुबह को उन्हीं तसलों में खाना दिया जाता था।’ भारतवीर मैनपुरी केस की अमानवीय यंत्रणा भरी सजा पूरी काटकर निकले। फिर भी न कभी टूटे न हारे। फिरंगियों से देश को खदेड़ने के लिए तत्काल वे शचीन्द्रनाथ बख्शी के मार्फत हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को चलाने का पूरा दारोमदार राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के कंधे पर आ गया था। सभी क्रांति केन्द्रों को संचालित करने में आर्थिक संकट आने लगा तब 25 दिसंबर 1924 को पीलीभीत जिले के बमरौली गांव में रईस बलदेव प्रसाद के घर डकैती डाली गई जो कि सूदखोरी और शक्कर की खाण्डसार का काम करते थे। फिर इसी जिले में 9 मार्च 1925 को बिचपुरी गांव में जमींदार टोटी कुर्मी के घर तथा 24 मई 1925 को प्रतापगढ़ जिले के द्वारकापुर गांव में शिवरतन बनिया के यहां डकैती डाली गई। राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में डाली गई डकैती में कुछ खास हाथ नहीं आया। पार्टी चलाने के लिए जहां पैसों की सख्त जरूरत थी वहीं बड़े पैमाने पर हथियार खरीदने के लिए काकोरी एक्शन का खाका तैयार कर लिया गया।
उन दिनों जर्मन माउजर पिस्तौल की कीमत 75 रुपये थी। 7 अगस्त 1925 को रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में ग्यारह क्रांतिकारी शाहजहांपुर में इकट्ठा हुए। शचीन्द्रनाथ बख्शी, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, मन्मथनाथ गुप्त, केशवचंद्र चक्रवर्ती, मुकुंदीलाल गुप्ता, मुरारीलाल, बनवारी लाल और कुंदन लाल। कई जगहों पर विचार किया गया कि रुपया कहां लूटा जाए? तब इलाहाबाद बैंक लूटने का भी विचार हुआ। बैंक डकैती से पहले कार चलाने वाला जब कोई नहीं मिला तो यह एक्शन टल गया। आखिर में काकोरी के पास 8 डाउन सहारनपुर से लखनऊ आने वाली पैसेंजर ट्रेन का अंग्रेजी खजाना लूटने का निश्चय हुआ। राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ इस पैसेंजर ट्रेन की पहले ही रेकी कर चुके थे। मीटिंग के बाद सबके लिए मुकंदीलाल ने खिचड़ी बनाया और वह घी का डब्बा इटावा से लेकर ही गए थे।

कुंदनलाल को अचानक से दस्त आने लगा और वे बीमार पड़ गए। उन्हें शाहजहांपुर छोड़कर बाकि दस क्रांतिकारी योद्धा लखनऊ चले आए। लखनऊ में सब अलग-अलग जगह ठहरे। लखनऊ पहुंचने के अगले दिन शाम को 8 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन पर जाने पर मालूम हुआ कि ट्रेन छूट चुकी है। तो सबके सब पैदल लौट पड़े। दूसरे दिन 9 अगस्त, 1925 रविवार की दोपहर काकोरी रेलवे स्टेशन पहुंच गए। शाम के करीब पौने सात बजे अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और शचीन्द्रनाथ बख्शी सेकेंड क्लास टिकट 0900, 0901, 0902 लेकर ट्रेन में सवार हो गए। बाकी राम प्रसाद बिस्मिल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल, मुकुंदीलाल, चंद्रशेखर आजाद, बनवारी लाल, मन्मथनाथ गुप्त पूरी ट्रेन में बंटकर सवार हुए। सेकेंड क्लास में सवार तीनों क्रांतिकारियों ने सुनसान जगह पर चैन पुलिंग कर ट्रेन रोक दिया। बाकि साथियों ने गार्ड जगन्नाथ शर्मा को कब्जे में लेकर हड़बड़ी में एक संदूक मुकुंदीलाल ने गार्ड के डिब्बे में चढ़कर नीचे उतार दिया

डकैती के दौरान हरदोई के अहमद अली नामक ट्रेन यात्री की सिर में गोली लगने से मौके पर मौत हो गई। पैसेनजर ट्रेन को ड्राइवर मिस्टर यंग ने निर्धारित समय रात्रि 7.45 के बजाय 8.37 पर लखनऊ पहुंचाया। चारबाग, लखनऊ के स्टेशन मास्टर मिस्टर जोन्स ने डकैती की सूचना पुलिस को मौखिक रूप से 8.45 पर दी।

महज पैंतीस मिनट में सरकारी खजाना बड़ी आसानी से लूट लिया गया। क्रांतिकारी अंधेरे में खेतों के बीच से गुजरते हुए रात्रि के करीब नौ बजे लखनऊ चौक पहुंचे। विक्टोरिया पार्क में एक सुनसान जगह पर चमड़े का बैग काटकर अधपटे कुएं में फेंक दिया। धनराशि 4679 रुपये 2 आना 2 पैसे थी। लेकिन विभिन्न अखबारों ने दस हजार रूपये उड़ाने और तीन लोगों की मौत की सनसनी बनाकर भ्रामक खबर प्रकाशित की।

यह घटना ब्रिटिश संसद के लिए खुली चुनौती थी। ब्रिटिश खुफिया अधिकारी मिस्टर हार्टन सक्रिय हो गया। एचआरए क्रांतिकारियों की डकैती का ट्रेंड एक जैसा था। सभी में आधुनिक असलहों का इस्तेमाल किया गया था तथा सभी क्रांतिकारी एक दूसरे को पार्टी के छद्म नामों से एक-दूसरे को पुकारते थे। मौके से रामेश्वर होटल, अमीनाबाद मार्का चादर मिली तो वहीं 300 बोर जर्मन पिस्तौल कारतूस, 0.450 बोर माउजर के कारतूस, 0.765 एमएम बोर ऑटोमेटिक रिवाल्वर के कारतूस और 38-32 वेंचेस्टर राइफल के खाली कारतूस मिले थे। ट्रेन डकैती में लूटे गए पांच रुपये का नोट जिसका नंबर जीडी/टी3/575499 शाहजहांपुर के बालकराम के पास और इसी जिले से पांच ही रुपये का नोट जिसका न. आईजी/डी42/607008 तिलहर निवासी गया सिंह के पास से मिला। फिर क्या था 43 लोगों की गिरफ्तारियां हुईं। 17 जनवरी 1926 को इटावा से मुकुंदीलाल गिरफ्तार हुए।
फिरंगी सरकार ने स्पेशल मजिस्ट्रेट को केस सौंपा। बड़ी चालाकी और लालच देकर बनवारीलाल, बनारसी लाल और इंदूभूषण मित्र को सरकारी गवाह बना लिया। पार्टी की सभी डकैतियों में मोहनराम, श्यामलाल, राम शरण और अहमद अली की मौत होने की वजह से आईपीसी की धारा 120बी,121ए 396, 302 के तहत 28 लोगों पर आरोप लगाए गए थे। 21 लोगों पर आरोप पत्र दाखिल हुए। ज्योति शंकर दीक्षित और वीरभद्र तिवारी को 29 जनवरी 1926 को क्राउन काउंसिल ने बरी कर दिया। 18 क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला। बौखलाई फिरंगी सरकार ने ‘क्रांतिकारी षड्यंत्र केस’ मुख्य और पूरक अलग-अलग चलाया। स्पेशल सेशन जज हैमिल्टन ने 6 अप्रैल 1927 को भारतवीर मुकुंदीलाल को उम्र कैद और क्रांतिकारियों को भी लंबी-लंबी सजा सुनाई। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा मिली।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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