इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि पत्नी का शरीर उसकी खुद की संपत्ति है और उसकी सहमति उसके व्यक्तिगत व अंतरंग जीवन के हर पहलू में सबसे अहम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शादी का मतलब पत्नी पर पति का स्वामित्व नहीं है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने मिर्जापुर निवासी बृजेश यादव की याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
पत्नी के अधिकारों का सम्मान जरूरी, खास टिप्पणी!
कोर्ट ने कहा कि पति को अपनी पत्नी के स्वायत्तता और व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिए। उसकी भूमिका स्वामी या मालिक की नहीं, बल्कि समान भागीदार की है। पत्नी के अधिकारों का हनन या उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश, चाहे जबरदस्ती हो, दुर्व्यवहार हो, या बिना सहमति के अंतरंग वीडियो साझा करना हो, ये सभी अवैध और अनैतिक हैं।
मामले की पृष्ठभूमि समझ लीजिये 👇
मिर्जापुर के बृजेश यादव पर उनकी पत्नी ने जुलाई 2023 में मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप था कि पति ने रंजिश में उनकी अंतरंग वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिए। इसके बाद पुलिस ने आईटी एक्ट के तहत बृजेश के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें समन जारी किया। पति ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
==याची के वकील ने दलील दी कि पत्नी उनकी कानूनी जीवनसंगिनी है, इसलिए अंतरंगता उनका अधिकार है। हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी एक स्वतंत्र व्यक्ति है। उसकी निजता और स्वतंत्रता का सम्मान करना पति का नैतिक और कानूनी दायित्व है।
विवाह के अर्थ पर कोर्ट का दृष्टिकोण
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, लेकिन इसका मतलब पत्नी की स्वतंत्रता का अंत नहीं है। पति ने अंतरंग वीडियो वायरल कर विवाह की गरिमा को ठेस पहुंचाई। कोर्ट ने इसे वैवाहिक रिश्ते की सुचिता का हनन माना।
पर्दा न करना तलाक का आधार नहीं
एक अन्य फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी का पर्दा न करना तलाक का आधार नहीं हो सकता। गाजीपुर के एक पति ने यह दावा करते हुए तलाक मांगा था कि उसकी पत्नी स्वतंत्र विचारों वाली है और घूंघट नहीं करती।
दोनों की शादी 1990 में हुई थी और पिछले 23 साल से वे अलग-अलग रह रहे थे। इस दौरान उनका बेटा भी बालिग हो गया। कोर्ट ने लंबे समय से अलगाव को आधार मानते हुए तलाक मंजूर कर लिया।
न्यायालय का संदेश समझ लीजिये l
कोर्ट ने कहा कि पति को विक्टोरियन युग की मानसिकता छोड़नी होगी। पत्नी कोई जागीर नहीं है। उसे अपनी इच्छाओं और स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार है। यह फैसला समाज में महिलाओं की स्वायत्तता और अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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इस फैसले से रिश्तो के कई मायने बदल जायेगे. महिलाओ के मामले में कोर्ट का आदेश और मौखिक टिप्पणी ने एक बार पुनः आदमी की बेकाबू मानसिकता पर शिकंजा कसा है. निश्चित रूप से महिलाओ के लिए यह आदेश उनके अस्तित्व को आजादी देगा.