“माननीयों की सुरक्षा”

आपको शायद याद होगा कि पिछ्ले साल कुछ पढ़े-लिखे बेरोज़गार, व्यवस्था से निराश, मंहगाई से परेशान और तानाशाही से आक्रोशित युवक सदन में क्या घुस गए और कुछ रंगीन गैस के कैप्सूल छोड़े कि सभी माननीयों को अपनी अपनी सुरक्षा की चिन्ता होने लगी।

यह वही संसद है जहां पहुँचने के लिए इन जैसे युवकों के घरों में वोट मांगने जाते हैं। करोड़ों को नौकरी देने, मंहगाई कम करने, कालाधन वापस लाने, सबके एकाउंट में लाखों रुपए जमा करने, किसानों की आय दोगुना करने, अमीर-गरीब भेद-भाव मिटाने और सच्चा लोकतंत्र स्थापित करने के वादे करने के वादे करके वह यहां दाखिल होतें हैं।

लेकिन जब वादे पूरे नहीं होते तो लोग आंदोलन करते हैं तो वह “आंदोलन जीवी” कहलाते हैं। उनके रास्ते बंद करने के लिए सड़कों पर दीवारें खड़ी कर देतें हैं कीलें गाड़ देते हैं। लाठीचार्ज करवा देते हैं। दंगा-फसाद करवा देते हैं तब इन्हें जनता की सुरक्षा की चिन्ता नहीं होती। लेकिन ज़रा से पीला धुएं से अपनी सुरक्षा की चिन्ता सताने लगती है।

किसी पुलिया पर दस मिनट रूकना क्या पड़ गया तो,”मुख्य मंत्री तक को जिन्दा वापस लौटने के लिए धन्यवाद ” कहतें हैं। अपनी रैली निकलने के लिए जनता का रास्ता घंटों तक बंद कर के सुरक्षा का प्रोटोकॉल बताते हैं।

यह माननीय लोग अपने लिए सभी कुछ मुफ़्त लेने के बाद लोगों को कुछ कम दाम पर देने को “मुफ़्त की रेवड़ियां” बताते हैं। एक दिन की सदस्यता होने पर भी सरकारी पेंशन के हकदार हो जातें हैं वह भी एक पेंशन नहीं चार छ: पेंशन लेते हैं। लेकिन 33 साल तक सरकारी नौकरी करने वालों को पेंशन देने के लिए पैसे की कमी बताते हैं।

अमीरों के लाखों करोड़ों के कर्ज बैंकों से माफ करके यह कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या पर घड़ियाली आँसू बहाते हैं।

*कौन हैं यह तथाकथित माननीय?” वही ना जिन पर सैंकड़ों घोटाले केस चल रहे हैं। जिन पर हत्या, लूट, अपहरण, बलात्कार और रिश्वत खोरी और दंगे करवाने के अपराध दर्ज हैं। सेना के लिए हथियारों की खरीद में कमीशन खोरी के मामले हैं।

यह वही माननीय हैं कि जनता से जिन लोगों, दलों के खिलाफ बोल कर वोट हासिल करते हैं और कुछ दिनों बाद मंत्री पद के लिए उन्हीं से मिल जाते हैं।

यह माननीय वहीं हैं ना जो कमांडोज के सुरक्षा घेरे के बिना घर से नहीं निकलते। इनकी सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं है बल्कि इनकी वजह से देश, जनता, संविधान और लोकतंत्र को ख़तरा है। बच्चों के भविष्य को ख़तरा है।

ना ही किसी पत्रकार को, ना ही किसी टीवी चैनल वाले को यह उत्सुकता है कि वह पता करे कि वह युवक और युवतियाँ किस हाल में हैं। उनके खिलाफ केस का क्या हुआ। उनको जमानत मिली या नहीं।

Amarjeet Singh ✍️

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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