नई दिल्ली।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने कहा कि वर्तमान परिवेश में मीडिया के बदलते स्वरूप को किस रूपों में होना चाहिए यह जानना बेहद जरूरी हैं जिससे आए दिन मीडिया कर्मियों पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हो रहे प्राण घातक हमले एवं फंसाए जा रहे हैं फर्जी मुकदमे से इन्हें निजात मिले ।
उन्होंने विस्तृत चर्चा करते हुए बताया ‘मीडिया‘ या ‘पत्रकारिता‘ को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता है इसलिए इसका निष्पक्ष और स्वतंत्र होना निहायत जरुरी है, लोकतंत्र में कई समूह होते है एक अत्यधिक अमीरों का समूह, जिनमें सत्ता को अपने अनुकूल मोड़ने का क्षमता होता है; दुसरा आम जनता, जो सत्ता तक अपनी बात पहुंचाकर सरकार के नीतियों को अपने पक्ष में करना चाहते है. इस टकराव में मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर बात रखना होता है और सच को दुनिया के सामने लाना पड़ता है, जो लोकतान्त्रिक मूल्यों को बढ़ाने में योगदान देता है. पत्रकारिता की यही खासियत बेहतर समाज के निर्माण में मददगार है।
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का अर्थ, समाचारों का एकत्रीकरण, प्रस्तुतीकरण और वितरण है. आधुनिक दौर में यह समाजसेवा के जगह एक व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है, जो खबरों का कारोबार करता है. इसका काम समाज और दुनिया भर में हो रहे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों से हमें सूचित करना है. पत्रकारिता के माध्यम से महत्वपूर्ण घटनाओं का समाज और देश या दुनिया पर होने वाले प्रभावों का विश्लेषण भी किया जाता है. इससे हम किसी घटना के प्रभावों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करते है।
दूसरे शब्दों में, मीडिया का अर्थ उस माध्यम से है जो हम तक खबरों व अन्य समसामयिक जानकारियों व इससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों से रूबरू करवाता है. बदलते समय के साथ इसके स्वरुप में बदलाव आया है. आज के दौर में मीडिया का पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर निष्पक्ष व सत्य खबरें न चलाना एक बड़ी समस्यां है।
कई बार समाचार माध्यमों में विश्लेषण व सम्पादकीय निजी स्वार्थ और अन्य पूर्वाग्रहों से प्रेरित भी हो सकते है. यह मीडिया और जनसंचार माध्यमों में नैतिकता के ह्रास को दर्शाता है. आज के दौर में पत्रकारिता कई विभिन्न रूपों में संचालित की जाती है।
क्या पत्रकारों पर एफआईआर होना उनकी आजादी का हनन नहीं है?
यहां हमें पत्रकारिता और चाटुकारिता में क्या अंतर है यह जानना बेहद जरूरी है।
जो दूरदर्शन के “ मुख्य समाचार” विभाग में दिखता है वो पत्रकारिता का नतीजा है। बाकी सबकुछ चाटुकारिता बन चुका है।
आजकल सब तो चाटुकार बन गए हैं। कोई वामपंथियों का, कोई दक्षिण पंथियों का, तो कोई धर्मपंथियों का या तो कोई अपने खुद के न्यूज चैनल का। इन्हें खबर के नाम पर जो मिलता है, उसका सिर्फ कुछ हिस्सा ये दिखाते हैं, बाकी अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर पेशकश करते हैं इसमें आम इंसान यकीन करें तो किसपर करें?
और तो और इन्हे फेक न्यूज को बिना कोई वजूद फैलाने में भी बड़ा मजा आता है। लोग खाली वॉट्सएप को दोष दे रहे हैं। यहां तो देश के प्रमुख न्यूज़ चैनलों ने अगड़म, तिगड़म भी अपने सनसनी में डाल देते हैं।
जब देश के प्रमुख न्यूज वाले पत्रकारिता के नाम पर फेक न्यूज देंगे, तब सोचिए बड़े बड़े मुद्दों पर यह लोग क्या-क्या तोड़ मरोड़ रहे होंगे!
सबसे ज्यादा हसी आती है इनके बेताबी देखकर पत्रकारिता के नाम पर यह कुछ भी डाटा उठाकर देंगेऔर तर्क के नाम पर खाली उन्हीं लोगों का बात सुना जाएगा जो न्यूज चैनल के मत से सहमत हो तो किस बात का तर्क भाई?
देखिए एक ही विषय के ऊपर अलग अलग पत्रकारों की अलग अलग राय है।
मत अलग होना बहुत अच्छी बात है लेकिन अपने मत को सही साबित करने के लिए दूसरों पर गलत निशाना ढालना भी बहुत गलत है। अफ़सोस, आज के पत्रकारिता वहीं पर रुक गई है, जहां उनके लिए व्यापार तथा टीआरपी सबसे आगे है बाकी सब कुछ कोशो दूर।
चाटुकारिता के पैमाने पर आजकल तो ऐसा हो गया है, कोई भी खबर में थोड़ा चाटुकारिता न डालने पर न्यूज का तड़का अच्छा नहीं लग रहा है, न पत्रकारों को और न ही, लोगों को जो अपने मत के हिसाब से बातें सुनना चाहते हैं।
“ निरपेक्षता वाली खबर आजकल एक मीथ्या है।”
आजादी के पहले और आजादी के बाद की देशभक्ति में क्या अंतर आये हैं हम इस पर चर्चा करेंगे।
आजादी से पहले और आजादी के बाद कि देशभक्ति में क्या अंतर है इसको समझने के लिए आप को पिछले 100 सालों की इतिहास को समझना होगा
100 वर्ष पहले की देशभक्ति के 2 रंग ————
1857 के बाद जब भारत का एकीकरण शुरू हुआ उसके बाद से ही भारत मे देशभक्ति के 2 रंग मौजूद थे कैसे———-
शुरुआत में इनको गरम पंथी और नरमपंथी बोला जाता है।
सबसे पहले जाना जरूरी है गरमपंथी कौन थे
ये लोग शुरू से ही अंग्रेजों से सीधे लोहा लेते थे और अंग्रेजो से लड़़कर आजादी लेने में इनकी आस्था थी ।
आजादी के समय गरमपंथी नेताओं में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु और सुभाष चंद्र बोस शचींद्र सान्याल जैसे महान नेता शामिल थे। गरमपंथी नेता अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक विद्रोह के समर्थक थे और उन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
गरमपंथियों का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था। उन्होंने सशस्त्र विद्रोह और क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और अंग्रेजों को नकुलों चना चबवा दिया था और आजादी भी इन्हीं के रास्ते मिली।
अब हमें दूसरे पहलू आजादी के समय नरमपंथी नेताओं में कौन लोग थे यह जानना बेहद जरूरी है इसमें मुख्य रूप से गोपाल कृष्ण गोखले, सरदार वल्लभभाई पटेल और लाला लाजपत राय एवं महात्मा गांधी जैसे नेता शामिल थे।
ये नेता ब्रिटिश सरकार में पीपीपी मार्ग यानि विरोध, प्रार्थना और याचिका, को अपनाया था।
नरमपंथी नेताओं के उद्देश्य थे ब्रिटिश सरकार के संवैधानिक दायरे में रहकर प्रदर्शन एवं सभाएं करना,
भारत के पक्ष में जनमत का निर्माण करना, इंग्लैंड में भारतीय पक्ष के प्रति समर्थन बढ़ाना, ताकि ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला जा सके।
भारतीयों को राजनीतिक शिक्षा देना ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें।
ब्रिटेन से भारत के राजनीतिक सम्बंधों को बनाये रखना ताकि भारतीयों के हितों की रक्षा की जा सके।
यह गरम और नरम दल के नेताओं के कार्य और उद्देश्य थे।
अब हमें यहां गहराई से अध्ययन करना होगा कि देश से भ्रष्टाचार मिटाना है प्रत्येक नागरिकों को उनका अधिकार दिलाना है तो हमें गरम या नरम दोनों में से कौन बनना पड़ेगा यह फैसला प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार को लेना हैं।
हमें उम्मीद है कि आप आगे जरूर इस विषय पर अपना विचार प्रस्तुत करेंगे क्योंकि आप भी भारत के नागरिक हैं आपका नैतिक धर्म बनता है कि आप कुछ बेहतर सोचे और करें।