
नई दिल्ली।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन द्वारा लगातार पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अधिकार सम्मान सुरक्षा के सवाल पर कार्य किया जा रहा है लगातार 14 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन पत्र देने का कार्यक्रम जारी है।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने कहा कि एक कार्यशील और स्वस्थ लोकतंत्र को एक ऐसी संस्था के रूप में पत्रकारिता के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये जो व्यवस्था (establishment) से कठिन प्रश्न पूछ सके—या जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है, ‘‘सत्य के पक्ष में सत्ता के समक्ष खड़े हो (speak truth to power)।’’
उन्होंने बताया कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य के अधिकार की गारंटी देता है और आमतौर पर राज्य के विरुद्ध लागू होता है। हालाँकि, संवैधानिक संरक्षण के बावजूद भारत में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिनमें सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और गैर-राज्य अभिकर्ताओं की ओर से धमकी, हमले और भयादोहन शामिल हैं।
मीडिया वह इंजन है जो सत्य, न्याय और समानता की तलाश के साथ लोकतंत्र को आगे बढ़ाता है। आज के डिजिटल युग में, तेज़ी से बदलते मीडिया परिदृश्य से उत्पन्न चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिये पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग में सटीकता, निष्पक्षता और उत्तरदायित्व के मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता है।
लोकतंत्र को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका
सूचना प्रदान करना:
मीडिया नागरिकों को राजनीतिक मुद्दों, नीतियों और घटनाओं के बारे में सूचित करता है, जिससे उन्हें अपने नेताओं और सरकार के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय ले सकने का अवसर मिलता है।
नेताओं को जवाबदेह बनाए रखना:
मीडिया एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है, जो सरकारी अधिकारियों के कार्यों की संवीक्षा करता है और उन्हें उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराता है।
सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करना:
मीडिया सार्वजनिक बहस और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के लिये मंच प्रदान करता है, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।
विविध दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करना:
मीडिया को विभिन्न परिप्रेक्ष्यों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करना चाहिये, जिससे नागरिकों की विविध मतों और विचारों तक पहुँच हो सके।
नागरिकों को शिक्षित करना:
मीडिया को नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना चाहिये; उन्हें यह समझने में मदद करनी चाहिये कि सरकार कैसे कार्य करती है और नागरिक कैसे इसमें प्रभावी भागीदारी कर सकते हैं।
लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका से संबद्ध चुनौतियाँ
मीडिया पूर्वाग्रह:
मीडिया पूर्वाग्रह (Media Bias) आम जनता के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली सूचना को विकृत कर सकता है, जिससे निष्पक्षता की कमी और उपलब्ध सूचना में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीकृत जनमत (polarized public opinion) और मीडिया के प्रति भरोसे की कमी की स्थिति बन सकती है।
भारत में मुख्यधारा की मीडिया प्रायः सरकार समर्थक या पूर्णरूपेण सरकार विरोधी रुख से ग्रस्त रही है, जहाँ वे चरम दृष्टिकोण रखते हैं और संतुलन साधने का प्रयास नहीं करते, बल्कि आम लोगों से संबंधित मुद्दों की उपेक्षा ही करते हैं।
‘फेक न्यूज़’:
सोशल मीडिया के उदय ने फर्ज़ी ख़बरों या फेक न्यूज़ (Fake News) के तीव्र प्रसार को आसान बना दिया है, जिससे प्रायः जनता में भ्रम और भ्रामक सूचना का प्रसार होता है।
यह मीडिया की विश्वसनीयता को कम कर सकता है और प्रस्तुत की जाने वाली सूचना के प्रति भरोसे की कमी को जन्म दे सकता है।
हाल ही में हरियाणा में गौरक्षकों द्वारा गोवंश के अवैध परिवहन, तस्करी या उनके वध के संदेह के आधार पर दो लोगों की हत्या कर दी गई जो ‘मॉब लिंचिंग’ के मुद्दे को उजागर करता है।
कॉर्पोरेट प्रभाव:
मीडिया आउटलेट प्रायः बड़े कॉर्पोरेट के स्वामित्व में होते हैं, जो मीडिया की संपादकीय नीतियों और रिपोर्टिंग को प्रभावित कर सकते हैं। इससे दृष्टिकोणों की विविधता की कमी की स्थिति बन सकती है और सार्वजनिक हित के बजाय लाभ पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
सरकारी सेंसरशिप:
सरकारें सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करने और असंतोष को दबाने के लिये ‘सेंसरशिप’ का प्रयोग कर सकती हैं। इससे सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी की स्थिति बन सकती है और मीडिया की एक ‘प्रहरी’ के रूप में कार्य करने की क्षमता सीमित हो सकती है।