
जून में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद मोदी को पता चला कि बीजेपी कमजोर हो गई है। लेकिन मोदी यह नहीं समझ सके कि बीजेपी किन कारणों से कमजोर हुई है? वह उसी आग उगलती गर्मी के शब्दों में बोलते रहे। संगठन कभी अपनी मूल विचारधारा से कमजोर नहीं होता बल्कि उस विचारधारा को हांकने वाले के कारण संगठन की ख्याति कमजोर होती है और मोदी इसका मुख्य कारण है।
लोकसभा के बाद होने वाले यह चुनाव बीजेपी की वास्तविक स्थिति का खुलासा करने वाले होंगे। खुलासा परिणाम के बाद होने से पहले ही बीजेपी को आभास हो चुका है कि बीजेपी अब मोदी के भरोसे चुनाव नहीं जीत सकती। लेकिन बीजेपी की यह मजबूरी भी है कि 10 साल गुजर जाने के बाद बीजेपी ने मोदी का कोई विकल्प खड़ा नहीं किया और बार बार एक ही चेहरे को आगे करते रहे।यह भी मुल्याकंन नहीं किया कि यह चेहरा कितना सच और कितना झूठ बोल रहा है, इसका बीजेपी के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा।
2013 के उस वक्त को याद किया जाए जो खुद कांग्रेस की पकड़ से निकलना चाह रहा था और उसी समय मोदी का केंद्र की राजनीति में प्रदार्पण हुआ। उस वक्त मोदी के भाषणों में वायदों और नारों में कल्पनाओं और रंगीन सपने थे लेकिन जनता ने उन्हें वास्तविक होने का विश्वास किया, उसी विश्वास ने मोदी को इतना ऊपर बैठा दिया। ऊपर की इस मंजिल पर पहुंचने के बाद आज जब मोदी निचे की ओर देखते हैं तो उन्हें डर लगता है कि गिरा तो बचेगा क्या। इसी गिरने के डर ने मोदी की भाषा बदल दी। जिन चुनावों के हर भाषण में मोदी कांग्रेस को कोसते थे। कांग्रेस के बड़े नेताओं को कोसते कोसते अभद्र भाषा कब बोल जाते थे मोदी भी नहीं जानते थे और जनता उनही पर तालियां ठोकती तो मोदी उसी को अपनी ख्याति समझते थे और मानने लगे थे कि शायद जनता ने यही सुनने के लिए उन्हें चुना है तो फिर जनता के लिए काम करने की जरूरत ही क्या है और यही से मोदी ने अपनी कार्यशैली का मुंह मोड़कर मित्रों की तरफ कर दिया।
2013 से अभी कुछ वक्त पहले तक देश में पहले कुछ नहीं हुआ था लेकिन आज के हरियाणा में दिए भाषण में कांग्रेस के द्वारा किए कामों का जिक्र कर दिया। आज भाषण में तल्खी नहीं थी, आज आग नहीं थी, आज एक डर था, एक भय था शायद मोदी सबसे ऊंची मंजिल से देख रहे थे कि यहां से गिरा तो क्या बचा.. यही कारण था कि मोदी ने कहा कि “गलती से भी, हां मेरा बोला लिखकर रख लें गलती से भी कांग्रेस आ गई तो…“यानी मोदी हरियाणा में मान चुके हैं कि मोदी नाम अब खत्म हो चुका है, बीजेपी खत्म नहीं होगी, मोदी के बाद फिर कोई बीजेपी को सम्हालने आ जायेगा। लेकिन अब अगर मोदी नाम खत्म हुआ तो वह रंगों से बनाई ख्याति भी टूट जायेगी। मोदी नाम केवल हरियाणा खो देने के डर से नहीं डर रहा बल्कि जिस डर के कारण महाराष्ट्र को अभी रोक लिया था वह डर और बड़ा दिखने लगा है। हरियाणा तो महाराष्ट्र के माथे पर तिलक लगाने जा रहा है कि अब तेरी बारी है जो आखिरी है।
दूसरी ओर राहुल गांधी की विश्वसनीयता दिन दिन, तिल तिल बढ़ रही है। वैसे राहुल ने कई मोर्चों पर लड़ाई एक साथ लड़ी है। मोदी ने जिन सतरंगी रंगों से अपनी छवि चमकाई थी उन्ही रंगों को बदरंग कर राहुल गांधी की छवि को बिगाड़ा भी था। मोदी की निरंतर जीत में मोदी के कार्य नहीं बल्कि मोदी के बिछाये जाल की भूमिका ज्यादा थी। मोदी अपने कार्यों के बल पर बीजेपी को 10 सीट नहीं जितवा सकते यह मेरा तसल्ली पूर्ण दावा है। राहुल आज उस घेरे से निकल चुकें हैं और उस सतरंगी चेहरे को घेर भी रहे हैं। मोदी अपने पूर्व के किसी भी दावे को दोहराने से डर रहे हैं और राहुल अपनी सरकारों के किये काम और नीतियों को फिर मजबूती से रख भी रहे हैं। जैसा कि मैंने ऊपर कहा भी है कि कोई संगठन कमजोर नहीं होता, कमजोर उसको हांकने वाला होता है। राहुल ने फिर देश के आगे अपनी मूल नीति को रखा है और जनता की स्वीकृति भी आने लगी है।
अटल जी के कार्यकाल में विश्वनियता और ईमानदारी थी लेकिन मोदी काल में केवल झूठ की कढ़ाई में बनावटी पकवान बनते देखे गए। अटल जी के समय में अटल के बाद कौन का सवाल नहीं था लेकिन मोदी के समय यह सवाल ही नहीं, और को पूछने वाला भी नहीं है। शायद सवाल पूछने वाले को जेल भी हो सकती है। बीजेपी में थोडे ही समय बाद इतनी भिन्नता और विषमता पहले कभी नहीं थी।
मोदी ने अपने चेहरे की चमक बढ़ाने में विश्वास किया, देश की चमक को रंगों का प्रयोग किया, देश को बड़ा करने की जगह खुद को खड़ा रखने के लिए कुछ मित्रों को बडा किया। भारत के बल को कमजोर बताकर खुद को बलशाली बताने वाला हर सीमा पर कमजोर दिखाई दिया। यही कारण है कि आज जब ऊपरी मंजिल से मोदी निचे देखते हैं तो डर लगता है लेकिन अब वक्त निचे आने का है, विडम्बना तो यह है कि मोदी निचे आने के साथ अपनी बनावटी ख्याति को साथ नहीं ला पा रहे हैं।
एस के शर्मा.. ✍️