!!वाह रे उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन!!
लखनऊ। कभी किसी पाठक ने सोचा है कि हम जो घर मे बैठ कर गर्मियों में वातानुकूलित कमरो मे जो ठंडी ठंडी हवा खाते है, जाड़े में हीटर और ब्लोअर के सामने बैठ अपनी ठंड दूर करते है और बरसात मेभी अपने घरो मे दुबक कर बैठे रहते है थोडी ही देर को बिजली गयी नही कि क्षेत्रीय अवर अभियंता और 1912 पर फौरन फोन खडखडा देते है… आखिर वह कौन से लोग है, जो कि सर्दी, गर्मी व बरसात मे 24 घण्टे सातो दिन हम प्रदेश वासियो की सेवा करते रहते है क्या इनका परिवार नही होता या यह इन्सान नही है क्या इनके दर्द नही होता.. ये इनको कितना वेतन इस सेवा के बदले मिलता है क्या कभी किसी ने सोचा ???????????
हम पत्रकार भी कभी कभार ही इस मुद्दे को उठाते है वो भी तब जब कोई दुर्धटना होती है जिसमे यह कर्मचारी चोटिल होता है पाठको को जान कर आश्चर्य होगा कि शायद ही कोई सप्ताह ऐसा गुजरता हो कि संविदा/ निविदा कर्मचारी अपंग होते कुछ स्थाई रूप से अपंग हो कर अपने हाथ पाव गवा देते है कुछ चोटिल हो जाते है और कुछ तो मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते है परन्तु इन संविदा/ निविदा कर्मचारियो की कौन सुने… कई साल हो गये इनको चिल्लाते हुए अपने घ्यान आकर्षण कराते हुए… परन्तु उनकी आवाज ना तो विभाग ही सुनता है और ना ही ऊर्जा मंत्री ही इनकी तरफ घ्यान देते है जब कि पूरा वितरण तंत्र इन्ही सविदा/निविदा कर्मियो के कन्धे पर खडा है. वर्षो से ना तो लाइनमैन, रनर, चपरासी, कम्पयूटर आपरेटर व श्रमिक आदि की भर्तिया तो हुई नही और अगर हुई भी तो पर्याप्त मात्रा मे नही हुई ।
सविधान कहता है कि समान कार्य का समान वेतन होना चाहिए परन्तु यहाँ तो “अंधेर नगरी चौपट राजा” वाली कहावत बिल्कुल ठीक बैठती है ।
क्या जो वेतन अकुशल/अर्धकुशल या कुशल सविदा कर्मी को मिलता है उससे इनका घर कैसे चलता होगा कभी किसी ने यह सोचा भी नही ।
बस जो परिपाटी चली आ रही है उसी पर सब चल रहे है क्या अकुशल 10089₹ , अर्धकुशल 11098₹ और कुशल 12432₹ मे अपना घर चलाते है इसमे से भी इनका ईपीएफ और ईएसअई कट जाता है…. तब सोचिए कि कितनी घनराशी इनके हाथो मे आती होगी यह वेतन न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अन्तर्गत हुए अनुबन्ध के अनुसार दिया जाता है जब कि अधिनियम मे यह वेतन अधातक व हल्की प्रवृत्ति के कार्यो के लिए है भारी व घातक कार्यो के लिए यह वेतन नही है परन्तु बडका बाबूओ के कानो पर जू नही रगती इन को तो बस अपने आलीशान वातानुकूलित दफ्तर मे बैठ कर सिर्फ हुक्म चलाना आता है जिनको इस उद्योग के विषय मे कुछ मालूम ही नही वो क्या जानेगे कि वितरण निगम स्तर से अनुबन्ध कराने से क्या नुकसान होता है अगर हम इन बडका बाबूओ को उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के जल्लाद कहे तो शायद ठीक होगा क्यो कि नातो कार्यदाई सस्थाओ के द्वारा इन संविदा/ निविदा कर्मीयो पर हो रहे अत्याचारो का पता है और ना ही समय से वेतन उपलब्ध ना कराने पर कोई कार्रवाई करने की सुध और तो और मध्यांचल विद्युत वितरण निगम मे हुए 22 करोड के धोटाले पर आज तक ना तो कर्यवाही की ऊल्टा उस पर कुंडली मार कर फन फैला कर बैठ गये यहाँ तक कि 162 दुर्घटनाग्रस्त कर्मचारी है, जिनकी सूची इन बडका बाबूओ के पास है परन्तु आज तक कोई कार्रवाई नही हुई आखिर उन कर्मचारियो और उनके परिवारो का होगा क्या । खैर *युद्ध अभी शेष है*