वराहावतार तथा पृथिवी की उत्पत्ति एवं स्थापना का प्रसंग / सृष्ट्यारम्भ की भूमि, आदितीर्थ शूकरक्षेत्र धाम, सोरों जी

  • वराह जयंती •

वराहावतार तथा पृथिवी की उत्पत्ति एवं स्थापना का प्रसंग / सृष्ट्यारम्भ की भूमि, आदितीर्थ शूकरक्षेत्र धाम, सोरों जी की भौगोलिक स्थिति एवं संक्षिप्त माहात्म्य ● पृथिवी की उत्पत्ति के कई प्रसंग बताये गये हैं, उनमें मुख्य कथा इस प्रकार है— महाविराट् पुरुष अनंत काल से जल में स्थित रहते हैं, यह स्पष्ट है। समयानुसार उनके भीतर सर्वांगव्यापी शाश्वत मन प्रकट हुआ। तत्पश्चात् वह मन उस महाविराट् पुरुष के सभी रोमकूपों में प्रविष्ट हो गया। बहुत समय के पश्चात् उन्हीं रोमकूपों से पृथिवी प्रकट हुई। उस महाविराट् के जितने रोमकूप हैं, उन सब में सर्वदा स्थित रहने वाली यह पृथिवी एक-एक करके जल सहित बार-बार प्रकट होती है और छिपती रहती है। यह पृथिवी सृष्टि के समय प्रकट होकर जल के ऊपर स्थित हो जाती है और प्रलय के समय अदृश्य होकर जल के भीतर स्थित रहती है। प्रत्येक ब्रह्माण्ड में यह पृथिवी पर्वतों तथा वनों से सम्पन्न रहती है, सात समुद्रों से घिरी रहती है और सात द्वीपों से युक्त रहती है। मनु ने जब प्रजासृष्टि करनी चाही तो देखा कि पृथिवी जल में डूबी हुई है, यह बात उन्होंने ब्रह्माजी को बतायी। इस पर ब्रह्माजी आदिपुरुष का चिन्तन करने लगे। उनके ध्यान करते ही सहसा उनकी नासिका के अग्रभाग से एक अंगुष्ठ-परिमाण का वराह-शिशु निकला, जो देखते-ही-देखते छः हजार योजन ऊँचा, तीन हजार योजन चौड़ा, इस प्रकार नौ हजार योजन का हो गया— “षट् सहस्राणि चोच्छछ्रायो विस्तारेण पुनस्त्रयः।” एवं नवसहस्राणि योजनानां विधाय च॥” (श्रीवराहपुराणम् ११३।६) वहाँ उपस्थित देवताओं और विप्रवरों ने उत्तम स्तोत्रों तथा ऋक्, साम और अथर्ववेद से संभूत पवित्र सूक्तों से आदिपुरुष वराह की स्तुति प्रारम्भ कर दी। उनकी स्तुति सुनकर भगवान् श्रीहरि वराह उन्हें अनुग्रहीत करते हुए जल में प्रविष्ट हो गये। उस समय अगाध जल के भीतर प्रविष्ट तथा सभी प्राणियों को आश्रय देने वाली उस पृथ्वी को देवदेवेश्वर श्रीहरि वराह ने अपनी दाढ़ों पर उठा लिया। चक्रधारी वराह के मुख पर स्थित चन्द्रमा की भाँति निर्मल रूप वाली पृथिवी ऐसे शोभित हो रही थी, जैसे कीचड़ में कमलनाल शोभित हो रहा हो— “चन्द्रनिर्मलसङ्काशा वराहमुखसंस्थिताः। शोभन्ते चक्रपाणेश्च मृणालं कर्दमे यथा॥” (श्रीवराहपुराणम् ११३।९) उन्हें देखकर देवाधिदेव ब्रह्माजी उनकी स्तुति करने लगे। इस प्रकार सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी के द्वारा स्तुत होने पर भगवान् श्रीहरि वराह ने उस समय वहाँ आये महान् असुर तथा भयंकर दैत्य हिरण्याक्ष को अपनी गदा से मार डाला। तत्पश्चात् भगवान् श्रीहरि वराह ने पृथ्वी को अपनी दाढ़ से उठाकर लीलापूर्वक रसातल से जल पर स्थापित कर दिया और जहाँ स्थापित किया था वह भगवान् श्रीहरि वराह का निवास स्थान शूकरक्षेत्र है— “यत्र स्थाने मया देवि उद्धृताऽसि रसातलात्। यत्र भागीरथी गङ्गा मम सौकरवै स्थिता॥” (श्रीवराहपुराणम् १३७।८) हे देवी! जहाँ रसातल से मैंने तुम्हारा उद्धार किया था तथा जहाँ भागीरथी गङ्गा है, वहीं मेरा 'सूकरक्षेत्र'¹ स्थित है।

० क्षेत्रं वाराहं विधिनिर्मितम् ०
•×•×•×•×•×•×•×•×•×•×•×•

षष्टिवर्षसहस्राणि योगाभ्यासेन यत्फलम्।
सौकरे विधिवत्स्नात्वा पूजयित्वा हरिं शुचिः॥४८॥
सप्तजन्मकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।
तीर्थराजं महापुण्यं सर्वतीर्थ निषेवितम्॥४९॥
कामिनां सर्वजन्तूनामीप्सितं कर्मभिर्भवेत्।
महादेव जी कहते हैं— हे षड़ानन! साठ हजार वर्ष योगाभ्यास से जो फललाभ होता है, वह मानव विधिवत् ‘विधि (ब्रह्मा) द्वारा निर्मित शूकरक्षेत्र’ में स्नान से पवित्र होकर तथा हरि (वाराह) के पूजन द्वारा वही फल प्राप्त करता है। यह ‘तीर्थराज’ महापुण्यशाली है। अन्य तीर्थ भी इसी तीर्थ की सेवा करते हैं। इस तीर्थ के दर्शनमात्र से सप्तजन्मकृत दुरित विदूरित होता है। कामना वाले व्यक्ति भी कर्माचरण करके इस तीर्थ में अभीष्ट फल की प्राप्ति करते हैं।
(श्रीस्कन्दमहापुराणं वैष्णवखण्डं बदरिकाश्रममाहात्म्यं प्रथमोऽध्यायः)

  • शूकरक्षेत्र-माहात्म्य •

श्रीकृष्ण उवाच—
शूकरस्य च माहात्म्यं कथयिष्ये तवाग्रतः।
यस्य विज्ञानमात्रेण सान्निध्यं मम सर्वदा॥
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा— सत्यभामा! अब मैं तुम्हारे सामने शूकरक्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन करूँगा, जिसके विज्ञानमात्र से मेरा सान्निध्य प्राप्त होता है।

सूत उवाच—
इत्युक्त्वा भगवान्कृष्णः सत्यायै बहुधा जगौ।
तदहं संप्रवक्ष्यामि तच्छृणुध्वं तपोधनाः॥
सूतजी ने कहा— इस प्रकार से सत्यभामा जी को भगवान् ने कहकर पुनः कहा कि हे तपस्वियों! मैं उसे ही कहता हूँ, उसे आप लोग सुनें—

श्रीकृष्ण उवाच—
पञ्चयोजनविस्तीर्णे शूकरे हरिमन्दिरे।
यस्मिन्वसति यो जीवो गर्दभोऽपि चतुर्भुजः॥
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा— पाँच योजन विस्तृत शूकरक्षेत्र मेरा मन्दिर (निवासस्थान) है। देवि! जो इसमें निवास करता है, वह गदहा हो तो भी चतुर्भुज स्वरूप को प्राप्त होता है।

त्रीणि हस्तसहस्राणि त्रीणि हस्तशतानि च।
त्रयोहस्ताः शूकरस्य परिमाणं विधीयते॥
तीन हजार तीन सौ तीन हाथ मेरे शूकरक्षेत्र का परिमाण माना गया है।

षष्टिवर्षसहस्राणि योऽन्यत्र कुरुते तपः।
तत्फलं लभते देवि प्रहरार्धेन शूकरे॥
देवि! जो अन्य स्थानों में साठ हजार वर्षों तक तपस्या करता है, वह मनुष्य शूकरक्षेत्र में आधे पहर तक तप करने पर ही उतनी तपस्या का फल प्राप्त कर लेता है।

सन्निहत्यां कुरुक्षेत्रे राहुग्रस्ते दिवाकरे।
तुलापुरुषदानेन तत्फलं परिकीर्तितम्॥
काश्यां दशगुणं प्रोक्तं वेण्यां शतगुणं भवेत्।
सहस्रगुणितं प्रोक्तं गङ्गासागरसङ्गमे॥
अनन्तं चैव विज्ञेयं शूकरे हरि मन्दिरे।
कुरुक्षेत्र के सन्निहति नामक तीर्थ में सूर्यग्रहण के समय तुला-पुरुष के दान से जो फल बताया गया है, वह काशी में दसगुना, त्रिवेणी में सौगुना और गंगा-सागर-संगम में हजारगुना कहा गया है; किन्तु मेरे निवासभूत शूकरक्षेत्र में उसका फल अनन्तगुना समझना चाहिये।

अन्यत्र ददते लक्षं संविधानेन भामिनि॥
इहैवैकेन दत्तेन शूकरे तत्समं भवेत्।
भामिनि! अन्य तीर्थों में उत्तम विधान के साथ जो लाखों दान दिये जाते हैं, शूकरक्षेत्र में एक ही दान से उनके समान फल प्राप्त हो जाता है।

शूकरे च तथा वेण्यां गङ्गासागरसङ्गमे॥
सकृदेव नरः स्नात्वा ब्रह्महत्यां व्यपोहति।
शूकरक्षेत्र, त्रिवेणी, और गंगा-सागर-संगम में एकबार ही स्नान करने से मनुष्य की ब्रह्महत्या दूर हो जाती है।

अलर्केण पुरा प्राप्त्वा सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
शूकरक्षेत्र माहात्म्यं श्रुत्वा च गजगामिनि॥
पूर्वकाल में राजा अलर्क ने शूकरक्षेत्र का माहात्म्य श्रवण करके सातों द्वीपों सहित पृथ्वी का राज्य प्राप्त किया था।
(श्रीपद्ममहापुराणम्, उत्तरखण्ड ११९।४-१३)

¹”Sukaraksetra (The modern Soron in the Western Uttar Pradesh), The name is associated with the descent of Sri Hari as a Boar (Sukara) who killed Hiranyaksa the elder brother of Hiranyakasipu, and lifted up the earth from the depths of the ocean, to which it had been consigned by the said demon.” —Sri Ramacaritamanasa (1318), Geeta Press, Gorakhpur, India.
— आचार्य राहुल वाशिष्ठ, आदितीर्थ शूकरक्षेत्र धाम, सोरों जी (कासगंज), उत्तर प्रदेश।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks