*बिहार की सियाराम हो सकती है?*

कहते है कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है, ना दोस्ती स्थाई होती है और ना ही दुश्मनी!! विचारों की परिपाटी पर राजनीति के कई हिस्से होते है और वही विचारधारा भारतीय राजनीति में पार्टी बनती है।
अभी हाल की भारतीय राजनीति को देखा समझा जाये तो आप देखेंगे कि भारतीय जनता पार्टी राज्यों की पिचों पर खुल कर खेल रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस डरी सहमी सी जनता के बीच जा रही है या फिर मज़बूरी है खुद को जिन्दा रखने की…
हम भारत के राज्य बिहार के राजनैतिक परिपेक्ष पर चर्चा कर रहे है तो पिछले कई सालों से बिहार की राजनीति में चित-पट हो रही है। कभी भारतीय जनता पार्टी के साथ JDU खड़ी होती है तो वही JDU- RJD के साथ खड़ी दिखाई देती है और सत्ता की कमान अपने हाथ रखती है।और यही कारण है कि बिहार स्थाई विकास से कई दशकों पीछे खड़ा है।
अभी दो दिन पहले ही श्री राम प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की राजनीति में रहे सादगी व जनप्रिय नेता स्व. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर बिहार की राजनीति पर पुनः बापसी करने का साफ सन्देश दे दिया है।इससे बिहार की राजनीति में गर्मी तो पैदा हो ही गई है ।
बीजेपी के इस फैसले को अपना हक़ बताने में बिहार की राजनीति के RJD और JDU पीछे नहीं रह रहे है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो एक जनसभा में यहां तक बोल गए कि स्व.कर्पूरी ठाकुर के कदम ताल पर ही मैं राजनीति कर रहा हूँ। मैंने भी परिवार का कोई सदस्य राजनीति में नहीं लिया है। कर्पूरी ठाकुर ने भी अपने रहते परिवार को राजनीति का लाभ नहीं दिया था।इस बयान से RJD बेहद खफा हुई है। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बयान पर सफाई भी दे सकते है लेकिन बिहार कुछ और करने जा रहा है!!
बिहार में कुछ भी हो रहा हो या कुछ भी हो…. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति के साथ ही बीजेपी के साथ सियाराम कर ही दिया है बस कुछ लोगो को समझ में नहीं आएगा क्यों राजनीति ठीक वैसी ही होती है जैसी सांप पर चढ़ी परत दर परत….. जिसे उतरने में देर तो लगती ही है ….
बिहार इस समय सर्द हवाओ के बीच गर्म हों चूका है।RJD के सरकारी आवासो पर बेहद गर्म हवाओ के थपेड़े हों रहे है। लालू प्रसाद यादव को समझ नहीं आ रहा है कि नीतीश कुमार चाहते क्या है!5 बार फोन करने के बाद भी फोन उठा क्यों नहीं रहे है। नीतीश कुमार के राजनैतिक कार्यकाल को देखे तो नीतीश कुमार सत्ता के हमेशा से ही करीब रहे है। वो चाहे केंद्र की राजनीति हों या फिर राज्य का सिंहासन!
नीतीश कुमार बीजेपी के फाले में इस वज़ह से भी खड़े हों सकते है क्योंकि INDIA गठबंधन की नींव नीतीश कुमार की पहल पर ही रखी गई थी परंतु गठबंधन के किसी नेता ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए नामित ही नहीं किया था और INDIA गठबंधन की बैठकों में उन्हें इस विषय पर भी नहीं पूछा था कि वो क्या चाहते है!
संभवतः यह भी हों सकता है कि INDIA गठबंधन उन्हें लोकसभा 2024 के प्रधानमंत्री चेहरा नामित कर दें तो शायद यह टकराव खत्म हों जाये. लेकिन नीतीश कुमार राम मंदिर प्रतिष्ठा के बाद कोमा कि स्थिति में आ चुके है कि करना क्या है और किस करवट बैठे जिससे सत्ता और महत्वाकांक्षा का सुकून मिल सकें।
*फिलहाल नीतीश कुमार बिहार कि स्थाई राजनीति का गला घोंटने वाले साबित हों रहे है।नीतीश कुमार यह भी साबित कर रहे है कि वो विश्वास के काबिल नहीं है*