रामजन्मभूमि : मुक्ति आंदोलन का वह 11 वर्षीय सिपाही
कृष्णप्रभाकर उपाध्याय
एटा, -। 1990 के रामजन्मभूमि आंदोलन में महज 11 वर्ष की आयु में, तथा पुनः 1993 में 13 वर्ष की अवस्था में जेल-यात्रा करनेवाला किशोर ‘अरूण’ आज 41 वर्ष का है। युवावस्था से पांव प्रौढ़ता की ओर बढ़ने लगे हैं। इस बीच चेहरा-मोहरा, हाव-भाव आदि सब कुछ बदल गया है। किन्तु नहीं बदला है तो वह ‘जनून’ जिसने 11 वर्ष की कोमल आयु से ही उसे मंदिर आंदोलन में भाग लेने को प्रेरित किया था। विधिस्नातक अरूण वर्तमान में एक दैनिक समाचारपत्र का विधि-संवाददाता है तथा वर्ष 2016 में भारत सरकार ने उसे अपना स्थाई अपर अधिवक्ता नामित किया है।
किन्तु अरूण की यह समस्त उपलब्धियां उस समय बौनी दिखने लगती हैं, जब वह 41 वर्ष की अपनी प्रौढ आयु में अपने बालपन में खो वह संस्मरण सुनाता है जब वह पहली बार एटा जिला कारागार में रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में सत्याग्रह करते हुए निरूद्ध किया गया था।
जीहां, हम बात कर रहे हैं एटा के अरूणानगर निवासी अरूण उपाध्याय की। अरूण के पिता अधिवक्ता डा. नारायण भास्कर रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के उन शीर्ष 10 नेताओं में रहे हैं, जिनकी आंदोलन के दौरान सतत निगरानी कराना तत्कालीन शासन की पहली आवश्यकता थी तथा किसी भी आंदोलन की घोषणा होने पर उन्हें निरूद्ध करने का प्रयास पहला कर्तव्य।
विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय व प्रांतीय नेतृत्व की योजनानुसार जब 1990 के आंदोलन में भास्कर जी ने प्रशासन को 1 नवम्बर को सत्याग्रह करने का अल्टीमेटम दिया तो जिला प्रशासन ने उनका आवास ही पुलिस छावनी बना डाला कि वे उन्हें पकड़ें और सत्याग्रह से पूर्व ही जेल में डाल दें। किन्तु भास्कर जी वहां न थे। वे उस समय मैनपुरी के कारागार में निरूद्ध कारसेवकों की सुख-सुविधा व विधिक हितों की चिन्ता करने के लिए अपने छोटे भाई कृष्णप्रभाकर के पास थे।
इस मध्य दीपावली का त्यौहार पड़ा तो पुलिस, प्रशासन को आशा लगी कि परिवार के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण दीपावली पूजन के लिए आने पर तो उन्हें गिरफ्तार कर ही लेंगे। परिणाम, आवास की घेराबंदी सख्त करने के साथ-साथ सुबह-शाम का तलाशी अभियान भी प्रारम्भ कर दिया गया। किन्तु यह क्या? भास्कर जी आये और विधिवत पूजन सम्पन्न करा अपनी जन्मभूमि होडलपुर (सोरों) लौट भी गये और पुलिस की सारी घेराबंदी देखती ही रही।
अस्तु, पुलिस-प्रशासन के साथ खेली जा रही इस आंख-मिचैली के मध्य सत्याग्रह के लिए निर्धारित तिथि भी आ गयी। सुबह से ही छावनी बना दिये गये सत्याग्रह स्थल ‘शिव मंदिर अरूणानगर’ में दोपहर बाद अचानक सत्याग्रही प्रकट हुए और एक लम्बे जलूस के रूप में नगर की ओर बढ़ गये। हड़कंप की स्थिति में आये जिला प्रशासन ने इन्हें पं. दीनदयाल उपाध्याय चैक के समीप रोका व हिरासत में लिया।
किन्तु यह क्या? पुलिस जब सत्याग्रहियों को अपने वाहनों में भर रही थी तो एक 11 वर्षीय बालक भी रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के पक्ष में नारे लगाता हुआ वाहन में चढ़ने लगा। हतप्रभ पुलिसकर्मियों ने पहले तो इस बच्चे को समझाने की कोशिश की। किन्तु उन्हें हरबार जवाब में मंदिर निर्माण के पक्ष के नारे ही सुनने को मिले तो इस किशोर को भी अन्य सत्याग्रहियों के साथ गिरफ्तार कर कारागार में निरूद्ध कर दिया।
अपने कारागार के अनुभव सुनाते हुए अरूण बताते हैं- एटा जेल में पहली बार 1 नवम्बर से 7 नवम्बर 1990 तक तथा दूसरी बार दिल्ली चलो आंदोलन में 25 फरवरी से 27 फरवरी 1993 तक रहा। कारागार में सबसे कम आयु का होने के कारण वहां निरूद्ध मथुरा से बाद में विधायक व प्रदेश सरकार में मंत्री बने रविकांत गर्ग व विधायक अजय पोइया के नेतृत्व में निरूद्ध किये मथुरा जिले के सत्याग्रहियों व जयपुर के सांवरलेक निवासी नरपतसिंह गहलौत के नेतृत्व में अयोध्या जाने का प्रयास करते समय मार्ग में रोककर निरूद्ध किये राजस्थान के सत्याग्रहियों के मध्य उनकी स्थिति एक ‘खिलौने’ की थी। परिणाम, दिन कब कट जाता, पता ही नहीं चलता। आयु भले ही छोटी रही हो किन्तु मन को विश्वास यही था कि आज नहीं तो कल वे रामजन्मभूमि पर भगवान रामलला का भव्य मंदिर निर्माण करने में सफल अवश्य होंगे।
और आज? जब रामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण प्रारम्भ हो गया है तो अपना वह गिलहरी सरीखा प्रयास ऐसा लगता है, मानो वह इसी जन्म की नहीं, जन्म-जन्मांतर की तपस्या व रामजन्मभूमि की साधना का प्रतिफल है। अरूण का संकल्प है कि जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण होने के बाद वे सपत्नीक ‘रामलला’ के दर्शन कर प्रभु का आशीर्वाद ग्रहण करने अयोध्या जाएंगे।