जागते रहिए जमाने को जगाते रहिए
मेरी आवाज में आवाज मिलाते रहिए’- नीरज

विशेष

व्यक्तित्व से यायावर महाकवि गोपालदास नीरज का युवा काल बेहद कठिनाइयों के बीच गुजरा था। 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश में इटावा के पुरावली में जन्मे नीरज ने पढ़ाई के साथ-साथ अजीविका के लिए सिनेमा हॉल पर नौकरी भी की। बाद के वर्षों में नीरज की रचनाओं ने देश-दुनिया के लोगों को उनका प्रशंसक बनाया। उनके प्रशंसकों में दिग्गज राजनेता, फिल्मी दुनिया के दिग्गज निर्देशक, अभिनेता, शिक्षाविद्, साहित्यकार, आदि शामिल हैं।

नीरज जी के श्रेष्ठ मुक्तक

कफ़न बढ़ा तो किस लिए नज़र तू डबडबा गई?
सिंगार क्यों सहम गया बहार क्यों लजा गई?
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सिर्फ बात है ‌
किसी की आँख खुल गई, किसी को नींद आ गई।

(2)
खुशी जिसने खोजी वह धन ले के लौटा,
हँसी जिसने खोजी चमन ले के लौटा,
मगर प्यार को खोजने जो चला वह
न तन ले के लौटा, न मन ले के लौटा।

(3)
रात इधर ढलती तो दिन उधर निकलता है
कोई यहाँ रुकता तो कोई वहाँ चलता है
दीप औ पतंगे में फ़र्क सिर्फ इतना है
एक जलके बुझता है, एक बुझके जलता है

(4)
बन गए हुक्काम वे सब जोकि बेईमान थे,
हो गए लीडर की दुम जो कल तलक दरबान थे,
मेरे मालिक ! और भी तो सब हैं सुखी तेरे यहाँ,
सिर्फ़ वे ही हैं दुखी जो कुछ न बस इंसान थे।

(5)
छेड़ने पर मौन भी वाचाल हो जाता है, दोस्त !
टूटने पर आईना भी काल हो जाता है दोस्त
मत करो ज्यादा हवन तुम आदमी के खून का
जलके काला कोयला भी लाल हो जाता है दोस्त !

कविता संग्रह

:- ‘दर्द दिया’, ‘प्राण गीत’, ‘आसावरी’, ‘बादर बरस गयो’, ‘दो गीत’, ‘नदी किनारे’, ‘नीरज की गीतिकाएं’, संघर्ष, विभावरी, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तक, गीत भी अगीत भी इत्यादि।
पत्र संकलन

:- लिख लिख भेजूं पाती
आलोचना

:- पंत कला काव्य और दर्शन।
दोहों में

:- नीरज के दोहे

गोपालदास नीरज के दोहे (काव्य) 
  
रचनाकार: गोपालदास ‘नीरज’
(1)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
(2)
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन
(3)
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल
(4)
भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म
(5)
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार
(6)
भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम
(7)
ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास
सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास
(8)
हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान
(9)
दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप
(10)
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल

गीतों में

:- कारवां गुज़र गया,

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई

गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा

एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली
और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ

हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

माँग भर चली कि एक जब नई-नई किरन
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन

पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

:- खग उड़ते रहना जीवन भर,
:- छिप छिप अश्रु बहाने वालों,
:- धरा को उठाओ,
:- नीरज गा रहा है,
:- बसंत की रात,
:- मुझको याद किया जाएगा,
:- लेकिन मन आज़ाद नहीं है,
:- सांसों के मुसाफ़िर।

पुरस्कार एवं सम्मान

गोपालदास नीरज को कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
:- विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार
:- पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार
:- यश भारती और एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
:- पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार
:- फिल्म फेयर पुरस्कार
नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये पुरस्‍कृत गीत हैं:-

:- (1970) काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली)
:- (1971) बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (फ़िल्म: पहचान)
:- (1972) ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)
अंत में मेरी पसंदीदा गज़ल

गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको..
चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..

वोह दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन..
क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे..

अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन”..
जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे..

तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना..
पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे..

वोह बदगुमा है खुद को, समझे खुशी का कारण..
कि मैं चेह-चहा रहा हूं, अपने खुदा के पीछे..

इस ज़िन्दगी का मकसद, तब होगा पूरा “नीरज”..
जब लोग याद करके, मुस्कायेंगे तेरे पीछे..

नीरज जी को मेरा शत शत नमन अभिनंदन

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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