*मुसलमानों के नाम पर धोखा है शहर का*
*मुस्लिम मुसाफ़िरखाना देश मे वक्फ़*
*खोर वक्फ़ पर धोखे से कर रहे हे क़ब्ज़ा*
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लीज ख़त्म होने के बाद से नुजूल की भूमि
पर संचालित हो रहा मुसाफ़िरखाना

*गोरखपुर/* पुलिस लाइन के सामने गोरखपुर शहर का मुस्लिम मुसाफ़िरखाना । इस मुसाफ़िरखाने के बारे में भले ही शहर की मुस्लिम अवाम ये जानती हो कि ये मुस्लिम मुसाफ़िरों के ठहरने के लिए बनाया गया है और कोई भी मुस्लिम मुसाफ़िर यहां किफ़ायती और वाजिब कीमत पर ठहर सकता है। लेकिन आपको बतादें की इस मुसाफ़िरखाने के बारे में अगर आप भी यही सोचते हैं तो आप की सोच गलत है।
*उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के तहत कब्रिस्तान, मस्जिद और मुसाफ़िरखाना वक्फ नम्बर 140 के अंतर्गत दर्ज था!* राजस्व अभिलेखों की बात करें तो मस्जिद और कब्रिस्तान आराज़ी नम्बर *52* और मुस्लिम मुसाफ़िरखाना आराज़ी नम्बर *54* पर स्थित है।
*1987* में कुछ लोगों ने एक साजिश रच कर मुसाफ़िरखाने की आराज़ी वक्फ से मुक्त करा लिया और उसको *30 साल* की लीज पर ले लिया।
इसके बाद से ही यह मुसाफ़िरखाना विवादों में आ गया लेकिन शहर की जनता इस खेल से बेखबर थी।
*लाखों रुपये महीने की होती है आमदनी*
वर्तमान समय में इस मुस्लिम मुसाफ़िरखाने में लगभग 50 कमरे और *3 डारमेट्री हाल* के अलावा दर्जन भर दुकानें हैं। इससे लाखो रुपये की आमदनी मुसाफ़िरखाने को होती है।
*नियम कानून ताक पर रख कर चलाया*
*जा रहा मुसाफ़िरखाना*
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मुसाफ़िरखाने की कोई सोसायटी वजूद में नही है और न ही वक्फ़ में यह मुसफ़िरखाना दर्ज है। इसके अलावा सराय एक्ट के तहत इसका कोई रजिस्ट्रेशन ही है।
साथ ही जीएसटी और सरकार के अन्य तमान टैक्स के बारे में भी कोई जानकारी नही है। जानकारों का कहना है कि नगर निगम का भी टैक्स बकाया है।
कुल मिलाकर नियम कानून ताक पर रख कर ये मुसाफ़िरखाना चलाया जा रहा है।
*धार्मिक भूमाफ़िया और अन्य लोगों के*
*कब्ज़े में है मुस्लिम मुसाफ़िरखाना*
*1987* में राजनैतिक प्रभाव के इस्तेमाल।करते हुए इस मुसाफ़िरखाने की आराज़ी को *30 वर्ष* की लीज पर ले लिया गया जिसकी मियाद *2017 में खत्म हो गई।*
वतर्मान समय में *अब्दुल्लाह बाबू नाम के व्यक्ति खुद को इस मुसाफ़िरखाने का मालिक कहते हैं* और यहां उन्हीं का हुक्म चलता है। आपको बता दें कि *अब्दुल्लाह बाबू* को अगर धार्मिक भूमाफ़िया कहा जाए तो गलत नही होगा।
शहर की जामा मस्जिद, अंजुमन इस्लामिया समेत दर्जनों वक्फ़ के। प्रमुख के पद पर इनका क़ब्ज़ा है। मुस्लिम समाज की भलाई के।लिए वक्फ़ की गई सैकड़ो एकड़ भूमि के मालिक बने हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार नगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय से बेदखली हो जाने के बावजूद मुस्लिम मुसाफ़िरखाना अवैध रूप से संचालित हो रहा है। कुल मिलाकर मुस्लिम मुसाफ़िरखाना के नाम से यहां की कमाई एक खास व्यक्ति की जेब में जा रही है जिसका मुस्लिम समाज या मुस्लिम मुसाफ़िरों से कोई लेना देना नही है।
ज़िम्मेदार अधिकारी भी शायद इसीलिये सरकार बहादुर के नाम से नुजूल की इस ज़मीन पर बुलडोज़र चलवाना नही चाहते कि ये एक धर्म विशेष से जुड़ा है जबकि हकीकत बिल्कुल विपरीत है।