नई शिक्षा नीति का हश्र भी पिछली शिक्षा नीति जैसा न हो—डा. रक्षपालसिंह चौहान

नई शिक्षा नीति का हश्र भी पिछली शिक्षा नीति जैसा न हो—डा. रक्षपालसिंह चौहान

अलीगढ , 7 अगस्त। आज देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने वेबिनार सम्बोधन में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रमुख बिन्दुओं एवं उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति में देश की समग्र शिक्षा को न्यायसंगत,जीवन्त,रचनात्मक, जिज्ञासा से ओतप्रोत,प्रेरणादायक एवं ज़ुनूनी बनाने का भरपूर प्रयास किया गया है तथा उसमें विचारविमर्श,अनुसन्धान,
विश्लेषण एवं इन्नोवेशन को प्रमुखता दी गई है । अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्रीजी ने देश को वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बनाने,विद्यार्थियों में परिश्रम के गौरव एवं सम्मान की भावना का भाव पैदा करने ,विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों को गुणवत्तापरक शिक्षा का केन्द्र बनाने एवं उनमें शिक्षकों की नियमित नियुक्ति प्रक्रिया कराये जाने, पूरे देश में प्राथमिक शिक्षा स्तर तक की पढ़ाई मात्रभाषा में ही कराये जाने आदि के बारे में बल दिया है।
इस बारे में प्रख्यात शिक्षाविद एवं डा बी आर अम्बेडकर विवि शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष डा रक्षपाल सिंह चौहान ने कहा है कि भारत को वैश्विक ज्ञान का सुपर पावर बनाने हेतु गत शिक्षा नीति -1986/92 में किये जा रहे व्यापक बदलाव तथा शिक्षा व्यवस्था में प्रभावी सुशासन,मान्यता निकाय स्थापना, योग्यता व तकनीक के समन्वय से समूची शिक्षा व्यवस्था और गुणवत्तापूर्ण शोध को गति प्रदान किये जाने के प्रावधान काबिले तारीफ हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन बहुत आसान नहीं होगा जितना समझा जा रहा है।
डा . सिंह ने कहा है कि इस शिक्षा नीति में विगत शिक्षा नीति -1986/92 को असफल बनाने वाली विकृतियों, अव्यवस्थाओं ,भ्रष्टाचार व अनियमितताओं का ज़िक्र तक नहीं है ।नतीजतन इस नई शिक्षा नीति में इसी तरह की भारी खामियां नई नीति के क्रियान्वयन में पनपना लाजिमी हैं। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता।

गौरतलब है कि विगत शिक्षा नीति का कार्यान्वयन ए एम यू अलीगढ जैसे उन केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में सही रूप से हुआ, जहाँ छात्रों को परीक्षाओं में बैठने के लिए 75 प्रतिशत हाज़िरी एवं उनका पाठ्यक्रम व प्रयोगात्मक कार्य पूरा कराया जाना ज़रूरी होता है। जबकि हकीकत यह है कि देश के 90 प्रतिशत से अधिक स्ववित्त पोषित विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और विद्यालयों में छात्रों की कक्षाओं में उपस्थिति, पढ़ाई एवं प्रयोगात्मक कार्य कराये ही नहीं जाते । विडम्बना यह है कि इन तथ्यों से केन्द्र सरकार भली भाँति अवगत भी है। कारण यह कि वह इक्कीसवीं सदी में ही लगभग 10 साल सत्ता में रही है। इन हालात में देश में समूची शिक्षा की बदहाली देखकर मुझे आशंका है कि 5 वर्ष में तैयार हुई शिक्षा नीति-20 के अमल का हश्र भी कहीं पिछ्ली शिक्षा नीति जैसा ही न हो जाए ।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks