
जिलाधिकारी को भी किया जाता है गुमराह
अंबेडकरनगर
किसानो को उचित मूल्य मिले इसलिए शासन द्वारा सरकारी क्रय केंद्र खोले जाते हैं और उसे पर निर्धारित मूल्य से खरीदारी की जाती है, अब यहीं से शुरू होता है विभाग का खेल आद़तियों और साहूकारों से आठ सौ से नौ सौ रुपए प्रति कुंतल प्राप्त कर केंद्रो पर खरीदारी न करवा कर बल्कि सीधे मिलरों को दे दी जाती है जिसमें 10% केंद्र प्रभारी का हिस्सा होता है और उसके ऊपर के पैनल की हिस्सेदारी होती है। यह पैसा एडवांस जिम्मेदारों की जेब में जमा हो जाता है उसके बाद उनको सरकारी बोरियां मुहैया करवा दी जाती है और फिर केंटो पर किसानों की बिक्री दिखाकर उनका फिंगर लगवा कर उसका भुगतान भी अति शीघ्र कर दिया जाता है इस प्रकार चलता है खेल। जबकि हमेशा किसानो को अपना धान बेचने के लिए तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं। इसके बाद भी धान बिकने की कोई गारंटी नहीं होती। अंत में मजबूरन किसान को इस चक्रव्यूह में फंसने को मजबूर हो कर अपने उपज को बेच देता है। अगर बिचौलिया सिस्टम खत्म हो जाए तो किसानों को उनके फ़सल की बाजार से ज्यादा कीमत दिलाने को लेकर यह एक महत्वकांक्षी योजना है. जिसके तहत, किसानों को 2183 रूपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाना है.
सरकारी धान खरीदी केंद्रों में अवैध धान खपाने का काम शुरू हो जाता है। किसानों द्वारा पैदा की गई फसलों की खरीददारी को लेकर सुर्खियों में रहने वाली साधन सहकारी समितियां/ कोऑपरेटिव विभाग हमेशा सुर्खियों में रहा है।ज्यादा कृषको उनकी उपज को गेंहू और धान खरीद को लेकर भले ही सरकार तमाम प्रकार के प्रतिबंध लगाने की डींग हांक रही हो किंतु सरकार के अनेको आदेश निर्देशों को पलीता लगाने में विभाग के उच्च अधिकारी व सचिव/ केंद्र प्रभारी ठेंगा दिखाते नजर आते हैं। और क्रय केदो पर खरीदारी पूरी कर देते हैं, अगर शासन द्वारा उच्च स्तरीय जांच टीम द्वारा पिछले रिकॉर्ड की जांच करवाई जाए तो यह पता चल जाएगा की कितने किसानों से धान की खरीद की गई है या अढतीयों से खरीदी गई।किंतु भ्रष्टाचार के चलते जिलाधिकारी को गुमराह कर शासन का आदेश भी बौना नजर आता है जिस कारण किसानों के लिए चिंता का सबब बन जाता है। हमेशा चाहे वह धान केंद्र रहा हो या गेहूं क्रय केंद्र किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य जो शासन की तरफ से नियत है उसके लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है और हमेशा यही आखरी में किसानों के जुबान से सुनाई कहता हुआ मिलता है कि क्रय केंद्र का चक्कर लगाते लगाते थक हार कर साहूकार को बेच दिया धान खरीद में जिम्मेदार भी मानो ऐसे देखते हैं जैसे बराबर की हिस्सेदारी हो।
जनपद अम्बेडकरनगर में कुल 75 क्रय केंद्र बनाए गए हैं क्रय नीति को ताख पर कर क्रय एजेंसियों को दरकिनार करते हुए एक ही चारदीवारी के अन्दर एक ही कर्मचारी को दो से तीन केंद्र का प्रभार दे दिया गया है जबकि यह क्रय नीति का यह स्पस्ट उलघ्न है। शहजादपुर से सुल्तानपुर मार्ग पर एक भी क्रय केंद्र नहीं खोले गए आखिर क्यों किसान अपने नियत स्थान से कितनी दूरी पर जाकर मेहनत से पैदा की गई फसल का उचित मूल्य ले पाएगा यह भविष्य के गर्भ में है या बिचौलियों, साहूकारो तथा व्यापारियों को बेचने की झंझट से कम दाम पर ही बेचकर इति श्री ले लेगा। विभागीय सूत्रों द्वारा नाम न छापने की शर्त पता चला कि खाद्य विभाग के 29 क्रय केंद्र बने है और डिप्टी आर.एम. ओ. ( मैडम ) की कृपा से हर केंद्र प्रभारी को दो से तीन सेन्टर दिये गए हैं हर सेंटर पर दो दो कांटे मौजूद है और एक कांटे से प्रति दिन की खरीद छमता तीन सौ कुन्तल धान की होती है इस प्रकार इनके हर केंद्र पर एक दिन की खरीदारी(यदि दो केंद्र भी है तो)1200 सौ कुन्तल धान की होनी चाहिये जब कि केंद्र पर किसानों से 100 कुन्तलन धान की भी खरीद नही की जाती है !
मीडिया की पड़ताल में यह भी पता चला कि जिले के एक मिलर को कुछ दिन पहले करोड़ों के चावल के गमन में पूरा परिवार जेल जा चुका है जिसका मामला अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है परन्तु वह आज अपने रसूख व मोटी रकम बल पर मिल व मिल स्वामी का नाम बदल कर मिल चला रहा है जो कई बार समाचार पत्रों के सुर्खियों में रहा है जिसकी शिकायत मुख्य सचिव से ले कर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री तक कि गयी है बहुत जल्द होंगें खुलासे…