सृष्टि की प्रकृति एकात्मक: प्रो आनन्द कुमार त्यागी।

सृष्टि की प्रकृति एकात्मक: प्रो आनन्द कुमार त्यागी।

वाराणसी

आज दिनांक 25 सितंबर 2023 को पण्डित दीन दयाल उपाध्याय महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ स्थित पण्डित दीन दयाल उपाध्याय शोध पीठ मे उनकी जन्मजयंती के पावन अवसर पर एकात्म मानववाद एवं वसुधैव कुटुंबकम विषयक एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने त्रिआयामी प्रवृत्ति की बात कही। आपने यह बताया की मनुष्य के पास जो कुछ भी है उसकी उत्पत्ति एक ही चीज से हुई है और यही से एकात्मता का भाव उत्पन्न हुआ है। हम चीजों को कैसे जोड़ते है यही एकात्मकता की शक्ति है । आगे आपने यह बताया की कोई भी संपूर्ण नहीं है अतः हमे समग्र से जुड़कर ऐसा समाज बनाना होगा जिसकी प्राथमिकताएं निश्चित हो और हमे सदैव विकास करना होगा। मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्बोधन देते हुए अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के समाज कार्य विभाग के निदेशक प्रोफेसर बंशीधर पांडे ने यह बताया की श्रम ही हमारा धर्म होना चाहिए। आपने वसुधैव कुटुंबकम् को बताते हुए भारत देश के विकास क्रम की ओर सभी का ध्यान केंद्रित किया।
कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन देते हुए अर्थशास्त्र विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ. राकेश तिवारी ने अपने व्याख्यान में पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के विचारों को सभी छात्र-छात्राओं के बीच रखते हुए बताया कि धर्म अर्थ काम और मोक्ष की लालसा हर मनुष्य में जन्मजात होती है और समग्र रूप में इनकी संतुष्टि भारतीय संस्कृति का सार है। वहीं व्यक्ति को राष्ट्र के परिपेक्ष्य में रखते हुए उन्होनें बताया कि व्यक्ति राष्ट्र की आत्मा को प्रकट करने का एक साधन हैं। इस प्रकार व्यक्ति अपने स्वयं के अतिरिक्त राष्ट्र का भी प्रतिनिधित्व करता हैं। इतना ही नहीं, अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए राष्ट्र जितनी भी संस्थाओं को जन्म देता हैं उसका उपकरण व्यक्ति ही हैं और इसलिए वह उनका भी प्रतिनिधि हैं। राष्ट्र में व्यापक जो समष्टियाँ हैं जैसे मनुष्य उनका प्रतिनिधित्व भी व्यक्ति ही करता हैं। वहीं सामाजिक परिदृश्य में व्यक्ति तथा समाज में किसी प्रकार विरोध नहीं हैं। विकृतियाँ तथा अव्यवस्था की बात छोड़ दे, उन्हें दूर करने के उपाय भी जरूरी होते हैं, किन्तु वास्तविक सत्य यह हैं कि व्यक्ति और समाज अभिन्न और अभिवाज्य हैं। सुंसस्कृत अवस्था यह हैं कि व्यक्ति अपनी चिन्ता करते हुए भी समाज की चिन्ता करेगा। अपने वक्तव्य में आपने दीनदयाल जी के विचारों एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के उद्देश्य मैं समानता की चर्चा करते हुए कहा कि जिस प्रकार राष्ट्रीय सेवा योजना व्यक्ति को समाज के उत्थान के लिए कार्य करने हेतु प्रेरित करती है उसी प्रकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार जैसे अंत्योदय एकात्म मानववाद इत्यादि समाज में सामाजिक समरसता एवं सर्वांगीण विकास की आधारशिला रखने में हमारे मार्गदर्शक हैं। आपने बताया कि भारतीय सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में सदैव से ही वसुधैव कुटुंबकम सर्वे भवंतु सुखिन: जैसे विचारों का उद्घोष रहा है जो भारत को एक राष्ट्र के रूप में उसके गुरुत्व को वैश्विक पटल पर स्थापित स्थापित करते हैं और पंडित दीनदयाल जी के विचार हमें उसी मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। आपने सेवा और सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के बीच के समन्वय समन्वय की बात करते हुए कहा कि सेवा का तात्पर्य ऐसे कार्यों से जिनसे समाज के वंचित वर्ग को उसके अधिकारों की प्राप्ति हो सके उसका हित हो सके और उसे समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके| ऐसी सेवा सेवा ही भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान की मूलभूत आधारशिला है। अतिथियों का स्वागत एवं विषय परिवर्तन करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के समन्वयक प्रोफेसर के.के.सिंह ने बताया कि राष्ट्र एक स्थायी सत्य हैं। राष्ट्र की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिये राज्य उत्पन्न होता हैं। राष्ट्र निर्माण केवल नदियों पहाड़ों मैदानों या भूमि के टुकड़े से ही नहीं होता और न ही यह केवल भौतिक इकाई ही हैं। इसके लिए देश में रहने वाले लोगों के ह्रदयों में उसके प्रति त्याग एवम समर्पण की अनुभूति होना प्रथम अनिवार्यता हैं। इसी श्रद्धा की भावना के कारण हम मातृभूमि कहते हैं। उन्होंने उपाध्याय जी के अंत्योदय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अंत्योदय दीनदयाल के अन्तः करण की आवाज थी। इसका प्रमुख कारण था उनके द्वारा बचपन से ही गरीबी और अभाव को झेलना समष्टि जीवन का कोई भी अंगोपांग समुदाय या व्यक्ति पीड़ित रहता है तो वह समग्र यानि विराट पुरुष को विकलांग करता है। इसलिए सांगोपांग समाज-जीवन की आवश्यक शर्त है अंत्योदय। अंत्योदय का अर्थ है कि समाज के सबसे निचले तबके के लोगों की मदद। आगे उन्होंने संगोष्ठी के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए विस्तार से बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य छात्रों को पण्डित दीन दयाल उपाध्याय जी के विचारों को विभिन्न कार्यों से जोड़ कर उनकी विशेषज्ञता का लाभ लेना है। कार्यक्रम में उपस्थित अन्य अतिथियों में विश्वविद्यालय उप कुलसचिव हरीश चंद्र एवं चीफ प्रोक्टर प्रो अमिता सिंह के अन्य वरिष्ठ शिक्षक यथा प्रो. शेफाली वर्मा ठकराल डॉ दुर्गेश कुमार उपाध्याय डॉक्टर सतीश कुमार कुशवाहा डॉ अश्विनी कुमार सिंह डॉ मुकेश कुमार पंत डॉक्टर धनंजय कुमार शर्मा डॉक्टर अनिल कुमार डॉ अश्विनी कुमार सिंह व छात्र-छात्राएं अनुप्रिया मनीषा नितेश श्वेता सुरभि केतन मुकेशअमन सौरभ विराट नवीन सागर उपस्थित रहे।
उक्त कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत डॉ. के. के. सिंह संचालन डॉ ऊर्जस्विता सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ पारिजात सौरभ किया।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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