
आरक्षण समाज के वंचित वर्गों के आर्थिक सुधार के तहत होना चाहिए जिससेआर्थिक विसमता खत्म हो सके
हमारा देश जातिगत व्यवस्था वाले समाज का है। इस हकीकत से मुंह मोड़कर हम इसकी तरक्की के लिए कोई काम नहीं कर पाएंगे। यह सच्चाई भी हमें स्वीकार करनी होगी कि जाति आधारित भेदभाव और पक्षपात होते हैं। सामाजिक या आर्थिक अपराध की वजहें गरीबी, अशिक्षा, पूंजी का असमान वितरण और बेरोजगारी भी हैं। सामाजिक असमानता इस कदर है कि अनगिनत लोगों का जीवन-स्तर सामान्य से भी बहुत नीचे है, तो कुछ सामान्य व बेहतर जीवन भी गुजारते हैं।
जब नौकरियों के लिए आवेदन करते हैं, तब अलग-अलग जीवन-स्तर से आए हुए अभ्यर्थियों से समान शैक्षणिक क्षमता की अपेक्षा करना व्यावहारिक नहीं है। यदि ऐसा किया जाएगा, तो हम पाएंगे कि एक वर्ग विशेष के लोगों को कभी भी सरकारी नौकरियों या उच्च शिक्षण संस्थाओं में स्थान नहीं मिला और पूरा का पूरा वर्ग ही वंचित रह गया। परिणामस्वरूप, समाज में अराजकता व अपराध बढ़ते जाएंगे और यदि ऐसे वर्ग की संख्या बढ़ती चली गई, तो वे संगठित होकर अराजकता पैदा करेंगे, जिसका शिकार हम सब होंगे। सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में इनका प्रतिनिधित्व न होने की वजह से इनके साथ न्याय होना भी संभव नहीं होगा, और प्रभु वर्ग अपने वर्ग के हित-चिंतन की प्रवृत्ति की वजह से न्याय नहीं करेगा। अत समाज के वंचित तबके को सामाजिक सरोकारों में बराबरी का भागीदार बनाने के लिए चिह्नित जातियों को आरक्षण देना देशहित में है। देश समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के खुशहाल होने, अभावों के बावजूद उसे अवसर मिलने और व्यवस्था में उसका भरोसा कायम रहने से ही बनता है।
आरक्षण को समाज के वंचित वर्गों के आर्थिक सुधार का औजार नहीं समझना चाहिए, बल्कि वंचित और शोषित वर्गों का शासन व प्रशासन में समुचित प्रतिनिधित्व दिए जाने का माध्यम माना जाना चाहिए। अभी इसरो द्वारा चंद्रमा पर सफलतापूर्वक यान उतारा गया। इस एजेंसी में कार्यरत कर्मचारियों, वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों की भी अगर जातीय आधार पर गणना की जाए, तो समाज के वंचित शोषित तबकों से आए कार्यकर्ता योग्यता में किसी से कम नहीं पाए जाएंगे। मगर वर्तमान में सरकारी उद्यमों का निजीकरण करके संस्थागत रूप से आरक्षण को खत्म किया जा रहा है। दूसरी तरफ, सार्वजनिक क्षेत्र में जहां आरक्षण है, वहां भी बहुत चतुराई के साथ आरक्षित सीटों को या तो खाली छोड़ दिया जा रहा है या उन पर अपात्र लोगों की नियुक्ति पिछले दरवाजे से की जा रही है। मगर इसकी चिंता है किसे? हम तो अभी धर्म बचाने में लगे हुए हैं।