ऋषि सुनक ने अपने व्यवहार से भारतवासियों के दिलों में हमेशा के लिए खास जगह बनाई, रिपोर्ट योगेश मुदगल

भारत का गौरव बढ़ाने वाले जी-20 सम्मेलन में वैसे तो कई चीजें आकर्षण के केंद्र में रहीं, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान जिस बात ने खींचा, वह बात थी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का सनातन धर्म से प्रेम। नई दिल्ली में उन्होंने जो व्यवहार किया, वह उन लोगों के लिए बड़ा संदेश है, जो राजनीतिक स्वार्थ के कारण निरंतर सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं। सुनक ने भारत आते ही कहा कि उन्हें यहां की भूमि पर आकर गर्व महसूस हो रहा है, फिर यह भी जोड़ा कि उन्हें हिंदू होने पर गर्व है। वह शिखर सम्मेलन के बाद अपनी पत्नी के साथ अक्षरधाम मंदिर भी गए, जहां उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक, नंगे पैर ही भगवान के दर्शन किए। उनके वस्त्र भी भारतीय संस्कृति के अनुसार थे। मंदिर में पूजा करने के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह मंदिर विश्वास, भक्ति और सद्भाव के शाश्वत हिंदू आध्यात्मिक संदेशों को बढ़ावा देता है।
समझने की बात है कि एक तरफ ब्रिटेन का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति स्वयं के सनातन होने पर गर्व कर रहा है, तो वहीं भारत में रहने वाले कुछ नेताओं को खुद के हिंदू होने पर शर्म आती है। जबकि, असलियत यह है कि उन्हें शर्म केवल राजनीतिक स्वार्थ के कारण आती है। ऐसे में, इन नेताओं को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से सबक लेना चाहिए और समझना चाहिए कि अपने धर्म का सम्मान किस तरह किया जाता है? इतिहास गवाह है कि धर्म का अपमान करने वाला व्यक्ति कभी भी और कहीं भी सम्मान नहीं पाता। इसलिए, आज के जो नेता सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं, वे संभल जाएं और अपने लिए कुआं न खोदें।
यह पूरा प्रकरण बताता है कि आज के समय में भारत के सम्मान के साथ-साथ हिंदुत्व का प्रभाव व इसकी स्वीकार्यता बढ़ी है। जी-20 जैसे बड़े सम्मेलन में जिस तरह से विदेशी मेहमानों ने भारतीय व सनातन परंपरा को देखा और उससे निकटता बढ़ाई, उसने भारत के साथ-साथ सनातन की छवि भी संसार की नजरों में निखारी है। वसुधैव कुटुंबकम की सोच रखने वाले सनातन धर्मावलंबियों को अपमानित करने वाले कतिपय भारतीय नेताओं को ऋषि सुनक ने आईना दिखाया है। उन्हें कम से कम अब ब्रिटिश प्रधानमंत्री से सीख लेनी चाहिए कि तमाम सुख-सुविधाओं में रहते हुए और पश्चिमी सभ्यता में पलने-बढ़ने के बाद भी अपनी हिंदू परंपराएं जीवित रखी जा सकती हैं।