कानपुर का चर्चित पुलिस हत्याकांड अब पछताय का होत है जब चिड़ियां चुंग गई खेत

*कानपुर का चर्चित पुलिस हत्याकांड* *अब पछताय का होत है जब चिड़ियां चुंग गई खेत।* कानपुर जनपद में हुई आठ पुलिस कर्मियों की नृशंस हत्या एक हिस्ट्रीशीटर द्वारा किए जाने का मामला प्रदेश की सरकार और पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है, क्योंकि लगातार इस केश की खुलने वाली परतों से स्पष्ट हो रहा है, कि इन आठ पुलिस वालों की शहादत के पीछे पुलिस की गद्दारी का ही हाथ है, एक बात का खुलासा बहुत जरूरी है, की इस प्रदेश में जितने भी हिस्ट्रीशीटर हैं वर्तमान में वे ही इस प्रदेश के माननीय व्यक्तियो की श्रेणी में गिने जाते हैं, पुलिस थानों से लेकर उच्चाधिकारियों के यहाँ उनको जो सम्मान दिया जाता है, वो किसी से छिपा नही है,यसे में गरीब जनता या वो पुलिस कर्मी की क्या हालत होगी ये भी सर्व व्याप्त है, कानपुर में शहीद हुए आठ पुलिसकर्मियों में सीओ द्वारा जब इंस्पेक्टर के विषय मे जब रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेज दी गई थी,फिर भी कोई कार्यवाही न होना, औऱ सम्बंधित व्यक्ति के द्वारा सारे मामले की जानकारी विकास दुवे तक पहुंचा देना ही इस जघन्य घटना का परिचायक है, जिन आठ पुलिसकर्मियों की पत्नियो के मांग के सिंदूर मिटा दिए गए,जिन मासूमों के सिर से बाप का साया हट गया,जिन माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा चला गया जो बहने अब रक्षाबंधन पर भाई की कलाई में राखी बांधने की खुशी में खोई हुई थी उनके घर जाकर देखो,तो वहाँ सन्नाटा पसरा हुआ नजर आएगा,घर एक जिंदा श्मशान की तरह हो गया,माँ का क्रंदन,पत्नी के ह्रदय से निकले वाली चीखे,अब कौन रोक सकता है, क्या मुख्यमंत्री जी थानों औऱ उच्चाधिकारियों के पास चाय की चुस्की लेने वाले हिस्ट्रीशीटरों जो कि अब माननीय हैं,को इन जगहों पर मिलने वाले सम्मान के विरोध में कोई प्रभावी कदम उठाने में सक्षम होंगे,पूर्व में भी सन 1981 में जनपद एटा में दुर्दांत दस्यु छविराम गिरोह द्वारा 9 पुलिसकर्मियों औऱ तीन जनता के लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी,उसमें भी पुलिस के ही लोगो ने गद्दारी की थी।सरकार ने भले ही विकास दुवे के ऊपर ढाई लाख का इनाम घोषित कर दिया हो,भले ही पूरे पुलिस महकमे को उसको पकड़ने के लिए निर्देशित कर दिया हो,पर जहाँ पुलिस में बैठे गद्दार,पैसों के लोभी हो, तो क्या यह सम्भव है, कि विकास दुवे पर शिकंजा इतना आसान हो सकता है,खुलासे पर खुलासे हो रहे,सीओ की चिठ्ठी का खुलासा,विकास दुवे की पत्नी से हुई बात औऱ उसके यकायक गायब ही जाना उस बातचीत का खुलासा,सब नाटक कब तक चलेगा,यह विचारणीय पहलू है, 1981 में इंस्पेक्टर राजपाल सिंह,कम्पिल में कलुआ गिरोह द्वारा ट्रेन लूट के समय दो पुलिस कर्मियों की हत्या एसओ कम्पिल राजेश कुमार की हत्या औऱ अब सीओ सहित आठ पुलिस कर्मियों की हत्या ये सिलसिला तब तक अनवरत चलता रहेगा,जब तक माननीय लोग उच्चाधिकारियों की खातिर खुशामद में लगे रहेंगे।सरकार को चाहिए जितने भी प्रदेश में हिस्ट्रीशीटर हैं उनकी पूर्व की सारी जांचे कराकर ये पता करे की आज ये माननीय कैसे बने,तभी जनता को राहत मिलेगी।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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