*राजनीतिक घमासान उपचुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा में शह और मात की जंग जितने के लिए बनने लगी रणनीति: बागियों के हराने विराधियों को साधेगी कांग्रेस*
छतरपुर
भोपाल। कोरोना वायरस के कारण किए गए लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक तौर पर राजनीतिक गतिविधियां पूरी तरह लॉक हैं। लेकिन कांग्रेस उपचुनाव जिनते की रणनीति पर लगातार काम कर रही है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी का मुख्य फोकस उन 22 विधानसभा सीटों पर है जहां के पूर्व विधायकों के बगावत के कारण कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। भगवाधारी इन बागियों को हराने के लिए कांग्रेस उनके विरोधियों को साधेगी। इसके लिए विधानसभा क्षेत्रों से सूची मांगी गई है। गौरतलब है कि प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। वर्तमान में जिस तरह की परिस्थितियां हैं, उससे लगता है सितंबर में ही उपचुनाव हो सकेंगे। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि हमारे पास पर्याप्त समय है कि बागी विधायकों को हराने के लिए हम मैदानी तैयारी कर लें। दलबदल होगा मुख्य मुद्दा
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सभी 24 विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे कौन से मुद्दे हैं जिनको उठाकर भाजपा प्रत्याशियों को घेरा जा सके इसकी सूची बनाई जा रही है। हमारे कार्यकर्ता इस पर 23 मार्च के बाद से ही काम करने लगे हैं। लेकिन बागियों की 22 विधानसभा सीटों पर दलबदल को ही मुख्य मुद्दा बनाया जाएगा। उपचुनाव में भी कांग्रेस अपने चेहरे के रुप में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को ही रखने जा रही है। इस दौरान ग्वालियर चंबल की सिंधिया के प्रभाववाली 16 सीटों पर भी उपचुनाव होने हैं। इन्हें कमलनाथ ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्र बना रखा है। बामुश्किल से प्रदेश में डेढ़ दशक के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार को उसकी अंदरूनी गुटबाजी और फूट ने अल्पसमय में ही बाहर कर दिया। इसके बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 24 सीटों पर उपचुनावों की तैयारी शुरू कर दी हैं। प्रदेश में कोरोना वायरस की स्थितियां सामान्य होते ही चुनावी सरगर्मी शुरू हो जाएगी।
राजनीतिक जमावट और प्रत्याशियों की खोज
कांग्रेस लॉकडाउन के समय का उपयोग हर सीट की राजनीतिक जमावट और संभावित प्रत्याशियों की खोज पर किया जा रहा है। दरअसल जिन दो दर्जन सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें से 23 कांग्रेस के पास थीं और एकमात्र आगर सीट ही भाजपा के पास थी। आगर से निर्वाचित मनोहर ऊंटवाल और जौरा विधायक रहे बनवारी लाल शर्मा के निधन के कारण ये दोनों सीटें रिक्त हुई हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में 22 कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा सदस्यता सं इस्तीफा दे दिया था, जिसके चलते ही सरकार के अल्पमत में आने की वजह से कमल नाथ सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा। कांग्रेस के सामने अब इन 23 सीटों पर जीत की कड़ी चुनौती है। चार दशक की सियासी यात्रा में यह दूसरा मौका है जब कमलनाथ को राजनीतिक शिकस्त खानी पड़ी।